सम्पादकीय

फोले आर्टिस्‍ट: आवाज की दुनिया के गुमनाम कलाकार

Gulabi
30 Oct 2021 4:28 PM GMT
फोले आर्टिस्‍ट: आवाज की दुनिया के गुमनाम कलाकार
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लगभग 10 बाई 16 का एक बेतरतीब सा कमरा, ऊलजलूल सामानों से भरा हुआ

लगभग 10 बाई 16 का एक बेतरतीब सा कमरा, ऊलजलूल सामानों से भरा हुआ. पुराने जूते चप्‍पलों का ढेर, पुराने कपड़ों का ढेर, कप-प्‍लेट्स, गिलास, पहली नज़र में लगता है कि किसी कबाड़ी के कमरे में आ गए हैं, सच कहें तो कबाड़ी का कमरा भी इससे अच्‍छा लगेगा. लेकिन, जिस जगह ये कमरे हैं उनकी लोकेशन बताएं तो आप चौंक जाएंगे. ये मुंबई के बहुत मंहगे इलाकों में हैं. ये फोली स्‍टुडियो हैं. इन्‍हें सब नहीं जानते ये भी नहीं जानते कि इनके बिना फिल्‍म बनती ही नहीं है.


ये बेतरतीब से कमरे अद्भुत क्रिएशन के जनक हैं, इन क्रिएशन को फोली इफेक्‍ट कहा जाता है और क्रिएटर को फोली आर्टिस्‍ट. फोली इफेक्‍ट की इम्‍पार्टेंस को आप यूं समझ लें एक एक्‍शन फिल्‍म में लगभग पांच लाख फोली इफेक्‍ट होते है. फिल्‍म के साउंड को प्राण वायु देने वाले इन इफेक्‍ट को फिल्‍म की लंबाई और महत्‍व के हिसाब से 100 से 300 घंटे में क्रिएट कि करण अर्जुन बारह साल की उम्र से यह काम कर रहे हैं.

एक फिल्‍म का दृश्‍य है एक्‍सट्रीम लॉंग शॉट में एक घोड़ा आता दिख रहा है. उस पर नायक बैठा हुआ है. उसके हाथ में दो खास तरह की पतली तलवारें हैं. घोड़े के गले में उसकी जीन(जेवर) डली हुई है. घोड़े के टॉप की आवाजें माहौल में गूंजती हैं, ठक, ठक, ठक… दूर से लिया हुआ शॉट है, टॉप की ये आवाजें नीचे जमीन के हिसाब से ध्‍वनि क्रिएट करेंगी, नीचे पक्‍की जमीन है तो अलग आवाज़ आएगी, मिट्टी वाली जमीन है तो अलग और रेत है तो अलग. हीरो तलवारें भी भांज रहा है.

उनसे एक खास तरह का साउंड निकल रहा है. चूंकि घोड़ा भाग रहा है और उसने अपनी जीन में ऑरनामेंट्स (जो घोड़े पहनता है) पहने हुए हैं. तो उसका भी साउंड क्रिएट होगा. फिल्‍म लोकेशन पर ये सब साउंड क्रिएट करना संभव नहीं होता. ये साउंड एक खास स्‍टुडियो में क्रिएट किए जाते हैं. इस स्‍टुडियो को ही फोली स्‍टुडियो के नाम से जाना जाता है. घ्‍वनि अंकन की नज़र से देखे तो ये फिल्‍म का अहम हिस्‍सा है.

मशहूर फोली आर्टिस्‍ट करण अर्जुन सिंह कहते हैं एक फिल्‍म में पांच लाख फोली इफेक्‍ट होते हैं. करण अर्जुन बारह साल की उम्र से यह काम कर रहे हैं. मुंबई में गिने चुने फौली आर्टिस्‍ट और स्‍टुडियो हैं. करण के काम की पहचान समझने के लिए 67 वें राष्‍ट्रीय फिल्‍म अवार्ड की लिस्‍ट भी देखी जा सकती है. हफ्ते भर पहले 25 अक्‍टूबर को इनकी घोषणा हुई है, इसमें साउंड तकनीक के लिए तीन पुरस्‍कार दिए गए हैं. ये तीनों पुरस्‍कार अलग-अलग फिल्‍मों को मिले हैं.

इन तीनों ही फिल्‍मों में फौली इफेक्‍ट का काम करण अर्जुन ने ही किया है. यानि तीनों फिल्‍मों के तीनों अवार्ड में फोली आर्टिस्‍ट के रूप में करण की भागीदारी रही है. ये अवार्ड लोकेशन साउंड रिकार्डिंग, साउंड डिज़ाइनिंग, और बेस्‍ट साउंड मिक्सिंग के लिए दिए गए हैं. इसमें बेस्‍ट साउंड मिक्सिंग का अवार्ड रेसुल पुकुट्टी को मिला है ये वही पुकुट्टी हैं जिन्‍हें स्‍लम डॉग मिलियनेयर की साउंड मिक्सिंग के लिए दो अन्‍य के साथ अकादमी अवार्ड (ऑस्‍कर) मिल चुका है.

करण ने अब तक लगभग चार हजार से ज्‍यादा फिल्‍मों के लिए फोली किया है. इनमें शामिल हैं, सुलतान, नीरजा, सिंघम, रईस, सीक्रेट सुपर स्‍टार, गोलमाल अगेन, तुम्‍हारी सुलू, फुकरे रिटर्न, टाईगर जि़दा है, कृष3 और बाहुबली. करण ने यह काम अपने गुरू वरिष्‍ठ फोली आर्टिस्‍ट प्रह्लाद साल्‍वी से सीखा है. मुंबई में फोली आर्टिस्‍ट के रूप में सज्‍जन चौधरी और करनेल सिंह का जि़क्र भी खूब सुनाई देता है.

फोली का महत्‍व आप इससे भी समझ सकते हैं कि बाहुबली जैसी फिल्‍मों के लिए हॉलीवुड के टैक्‍नीशियन्‍स बुलाए गए थे, लेकिन बाहुबली को भी इस 10 बाई 16 के बेतरबतीब कमरे और करण की जरूरत पड़ी ही पड़ी. यही मजबूरी कृष 3 की भी थी. उठने, बैठने, चलने, फिरने, गिरने, उठने सहित फिल्‍म में कुछ भी हलचल होगी तो फोली आर्टिस्‍ट की जरूरत पड़ेगी. करण

अहम सवाल ये है कि ये सब आवाजें तो लोकेशन पर क्‍यों रिकार्ड नहीं की जा सकती. फोली की ज़रूरत ही क्‍यों. सिंक साउंड भी तो किया जा सकता है. सिंक साउंड यानि लोकेशन पर ही डायलाग्‍स और दूसरे साउंड रिकार्ड करना. इस बारें में करण कहते हैं. 'लोकेशन पर रिकार्डिंग इसलिए संभव नहीं क्‍योंकि वहां पर बाहरी शोर बहुत होता है. काम की कम और फालतू आवाजें ज्‍यादा रिकार्ड हो जाती हैं.

उनमें क्‍लेरिटी भी नहीं होती है. फोली दरअसल इन्‍हीं रोजमर्रा के आम नज़र आने वाले लेकिन फिल्‍म के नज़रिए से बहुत खास साउंड इफेक्‍ट का क्रिएटिव रिक्रिएशन है. ऑडियो गुणवत्‍ता बढ़ाने के लिए फोली एक जरूरी उपक्रम है. एक्‍शन फिल्‍में में सबसे ज्‍यादा फोली किया जाता है. हॉरर फिल्‍मों में बहुत फोली होता है.'

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि फिल्मांकन के दौरान फिल्म के सेट पर कैप्चर की गई अवांछित आवाज़ों को कवर करने के लिए फोली का इस्तेमाल किया जाता है., कपड़ों के सरसराने की आवाज़, झूला झूलने का स्‍वर, चीखने की आवाज़, दरवाजा खुलने की चरचर की खास आवाज, कदमों की आवाज़ आदि.

कदमों की आवाज निकालने में क्‍या खास है, इसमें क्‍या क्रिएशन है. जवाब में करण बताते हैं 'हर आदमी का वज़न अलग होता है, उसका पैर का साइज़ अलग होता है. उसके चलने का अंदाज़ अलग होता है. संजय दत्‍त उछलकर चलता है तो अजय देवगन अलग स्‍टाईल में. ये सब बातें मिलकर हर आदमी के कदमों की आवाज़ में फर्क पैदा कर देती हैं, इसलिए कदमों की जिन आवाजों को दर्शक सामान्‍य आवाज समझ कर इग्‍नोर कर देते हैं वो बहुत खास हैं, जिन्‍हें हमलोग क्रिएट करते हैं.'

सच बात है अगर इन बारीकियों का ध्‍यान नहीं रखा जाए तो फिल्‍म का साउंड सिनेमा हाल में अपेक्षित प्रभाव ही छोड़ने में सफल नहीं हो पाएगा. और साउंड की जो नई-नई तकनीकों वाले स्‍पीकर्स थिएटर में लगे हैं बेमानी हो जाएंगे.

आल द बेस्‍ट (2009) में जॉनी लीवर ने गूंगे का रोल किया था. वो अपनी बात कांच के गिलास को चम्‍मच से बजाकर कहते हैं. टोबू जिस पात्र को जॅानी निभा रहे थे, का असिस्‍टेंट टोबू के कोड को डिकोड करके संवाद सामने वाले कलाकार को कन्‍वे करता है. ये थोड़ा मुश्किल था, करण अर्जुन कहते हैं 'गिलास पर चम्‍मच से साउंड निकालना यूं तो आसान लगता है पर चम्‍मच और कांच की आवाज को इस तरह क्रिएट करना था कि दर्शक भी इसे कुछ हद तक समझ सके कि टोबू असल में क्‍या कहना चाह रहा है.'

यह आइडिया संभवत: कर्ज से लिया होगा, 1980 में ऋषिकपूर की फिल्‍म कर्ज से. इसमें मुख्‍य विलेन सर जूडा का रोल प्रेमनाथ ने निभाया था. सर जूडा गूंगा था, उसे जो भी कहना होता था वो एक कांच के गिलास पर उंगलियों से खास ध्‍वनि पैदा करता जिसे उनका असिस्‍टेंट मेकमोहन सामने वाले पात्र को कन्‍वे करता था. अब आप कल्‍पना कीजिए जो कलाकार अपनी आवाज़ के जादू से दर्शकों को रोमांच से भर देता हो उसकी कलाकार से उसकी आवाज छीनकर अभिनय कराया जाए तो कैसा लगेगा. लेकिन प्रेमनाथ ने कमाल किया था लेकिन उनके इस कमाल में फोली आर्टिस्‍ट की बड़ी भूमिका थी. अफसोस इस बात को कोई नहीं जानता.

आप जानकर आश्‍चर्य में पड़ जाएंगे कि कैसी-कैसी चीजों से कैसे साउंड इफेक्‍ट क्रिएट किए जाते हैं. एक उदाहरण, आपने बारिश की टप टप फिल्‍मों में सुनी होगी. फोली आर्टिस्‍ट अपने छोटे से कमरे में शक्‍क्‍र के दानों को एक खास अंदाज़ में खास सतह पर गिराकर उससे ऐसा साउंड क्रिएट करता है मानों बारिश हो रही है. वो सबकुछ स्‍टुडियो में ही क्रिएट करता है रिमझिम बारिश हो या मूसलाधार वर्षा.

फोली आर्टिस्‍ट और फोली इफेक्‍ट के बिना एक फिल्‍म गूंगी फिल्‍म की मानिंद है फोली के ये प्रभावशाली साउंड ही फिल्‍म को परफेक्‍ट और प्रभावी बनाते हैं. लेकिन फिल्‍म के सुनहरे परदे पर आने वाले इनके नाम गुमनामी के अंधेरे में ही छिपे रह जाते हैं. दुख की बात ये है कि इन्‍हें नाम तो नहीं ही मिलता, दाम भी अच्‍छे नहीं मिलते. आजकल वेबसीरीज़ और ओटीटी प्‍लेटफार्म का जमाना है वहां इस तरह की बारीक तकनीकी बातों पर उतना फोकस नहीं किया जाता, जितना फिल्‍मों में किया जाता है. वेबसीरीज़ आदि का बजट भी फिल्‍म के मुकाबले बहुत कम होता है. यानि गरीबी में गीला आंटा. सो, जब आप फिल्‍म देखें तो और उसमें चूड़ी की खनखन या पायल की रूनझुन खास आवाज़ में सुनाई दे. या फिर घोडे़ की ठक-ठक या फिर बारिश की छप-छप की आवाज अलग से सुनाई दे तो समझ लेना ये फोली आर्टिस्‍ट की कलाकारी है. उसे शाबासी जरूर देना, उसके लिए एक क्‍लेप भी बनता है.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

शकील खान, फिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.


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