- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- उड़ती बुद्धि...
दिमाग कहें या बुद्धि, इसी की उड़ान ने, इसी से जन्मे आइडिया, खोज ने इंसान को गुफा से चंद्रमा तक पहुंचाया है। सहस्त्राब्दियां आईं-गईं, साम्राज्य बने-बिगड़े लेकिन बुद्धि की फितरत में उत्तरोत्तर वह सब होता गया, जिससे पाने, चाहने, कुछ करने, अमर होने की भूख में सब कुछ बनता गया! फिर भले तलवार बनी हो या परमाणु हथियार या मौजूदा महाबली आईटी कंपनियां! जाहिर है हर युग, हर क्रांति, हर खोज बुद्धि की कुलबुलाहट, इनोवेशन, नवोन्मेषी धुन से जनित है। इंसान का शरीर भले जैविक रचना में एक सा हो लेकिन शरीर विशेष में बुद्धि और उसके उड़ने के रसायनों, परिवेश का जो फर्क होता है उससे यह होड़ भी स्थायी हैं कि उड़ने का, खोजने का, वर्चस्व बनाने का माद्दा किसमें अधिक है! अफ्रीका की गुफा से आदि मानव जब बाहर निकला तो वह भी बुद्धि और साहस से शुरू यात्रा थी जो सहस्त्राब्दियों के लंबे सफर के बाद आज भी जस की तस है। बावजूद इस सबके अनुभव के रसायनों, मनोविश्व की भिन्नता की हकीकत को बतलाता यह प्रमाण है जो पृथ्वी के साढ़े सात अरब लोगों पर आज अमेरिका की पांच आईटी कंपनियों का एकाधिकार है!