सम्पादकीय

Fly over North Pole: पराक्रम की नई ऊंचाई पर महिलाएं, उत्तरी ध्रुव की कठिन उड़ान

Gulabi
13 Jan 2021 3:32 PM GMT
Fly over North Pole: पराक्रम की नई ऊंचाई पर महिलाएं, उत्तरी ध्रुव की कठिन उड़ान
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प्रकृति ने सृष्टि रचना के साथ स्त्री-पुरुषों के कार्यो का जो स्वाभाविक विभाजन किया था,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रकृति ने सृष्टि रचना के साथ स्त्री-पुरुषों के कार्यो का जो स्वाभाविक विभाजन किया था, उसमें ऐसे नियम ज्यादा नहीं थे कि कौन-सा काम पुरुषों का है और कौन-सा महिलाओं का। आज भी दुनिया के कई इलाके ऐसे हैं, जहां महिलाएं वे काम पूरी लगन और मेहनत से करती हैं जो कई अविकसित और विकासशील देशों में सिर्फ पुरुषों के लिए आरक्षित माने जाते हैं। लेकिन भारत और कई अन्य एशियाई समाजों में ऐसी बाध्यताएं सामाजिक परंपराओं के नाम पर काफी ज्यादा रही हैं कि महिलाओं को घरेलू कार्यो से मतलब रखना है और घर की चारदीवारी से बाहर के काम पुरुषों के हैं।


वैसे तो ऐसी कई रूढ़ियों को हमारे समाज ने हाल के समय में तोड़ा है और महिलाएं सेना के अग्रिम मोर्चो तक पर दुश्मन से सीधे लोहा लेने तक की हैसियत में आ गई हैं, पर अब भारतीय स्त्रियों ने कीíतमान रचने वाले उन साहसिक मोर्चो पर भी विजय पताका फहराने का मंसूबा पाला है, जहां उनके पहुंचने की कल्पना भी नहीं की जाती थी। एक ऐसी ही उपलब्धि एयर इंडिया की महिला पायलटों ने हाल में उत्तरी ध्रुव होते हुए दुनिया के सबसे लंबे और दुर्गम हवाई मार्ग से 16 हजार किलोमीटर की सीधी (नॉन-स्टॉप) उड़ान भरते हुए हासिल की है। उनकी यह उपलब्धि यह साबित करने के लिए काफी है कि अगर भारतीय स्त्रियों को मौके दिए जाएंगे तो कठिन और कई मायनों में असंभव माने जाने वाले मोर्चो को भी वे साध लेंगी और हर कसौटी पर पुरुषों के मुकाबले इक्कीस ही ठहरेंगी।
ऐतिहासिक उपलब्धि : ताजा उपलब्धि की बात करें तो एयर इंडिया की उत्साही-युवा कैप्टन जोया अग्रवाल की अगुआई में कैप्टन पापागरी तनमई, कैप्टन शिवानी और कैप्टन आकांक्षा सोनावरे की एक टीम ने हाल में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से उड़ान की शुरुआत की और करीब 17 घंटे की सीधी उड़ान में पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होते हुए सोमवार को बेंगलुरु के केंपेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने कदम रखे। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ 16 हजार किलोमीटर का सफर तय किया, बल्कि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होते हुए एक दुर्गम वायुमार्ग को चुना। इस मार्ग की कई कठिनाइयां हैं, क्योंकि इसमें उड़ान के दौरान हवाई जहाज में बर्फ के प्रवेश करने, विमान के पंखों पर बर्फ जमा हो जाने और विमान के प्लास्टिक के उपकरणों का अत्यधिक ठंड के कारण संचालन बंद हो जाने का खतरा बना रहता है। वैसे तो एयर इंडिया के पुरुष पायलट इस वायु मार्ग पर विमान उड़ा चुके हैं, पर यह पहला मौका था जब कोई महिला पायलट टीम किसी विमान को संचालित कर रही थी। यह एक कीíतमान रचने वाली उड़ान होने वाली है, इसका अंदाजा लगाते हुए विमान के टेक ऑफ को भी एक जश्न की तरह मनाया गया था। जब महिला पायलट टीम विमान सैन फ्रांसिस्को से लेकर उड़ी तो नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने इसकी तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर साझा करते हुए लिखा, 'कॉकपिट में पेशेवर, योग्य और आत्मविश्वासी महिला चालक सदस्यों की टीम ने एयर इंडिया के विमान से सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु के लिए उड़ान भरी है और वे उत्तरी ध्रुव से गुजरेंगी। हमारी नारी शक्ति ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।'
जोया का साहस : एक टीम कप्तान के रूप में इस अभियान का संचालन करने वालीं कैप्टन जोया अग्रवाल का जोश भी उल्लेखनीय है। कैप्टन जोया का नाम बोइंग 777 जैसे भारी-भरकम यात्री विमान को उड़ाने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की पायलटों में दर्ज है। उन्होंने यह उपलब्धि सात वर्ष पूर्व हासिल की थी। उनकी यही योग्यता दुनिया के सबसे दुर्गम सफर का नेतृत्व करने के मामले में सहायक बनी। कैप्टन जोया के साहस की प्रशंसा विमानन विशेषज्ञ भी करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार उत्तरी ध्रुव पर उड़ान भरना अत्यंत तकनीकी मसला है और इसके लिए कौशल और अनुभव की आवश्यकता होती है।
नाविका सागर परिक्रमा अभियान: ऐतिहासिक कही जा रही इस विमान यात्र की तुलना यदि हाल के बरसों में भारतीय महिलाओं द्वारा अर्जति किसी अन्य उपलब्धि से करना चाहें तो एक छोटी-सी पाल नौका आइएनएसवी तारिणी द्वारा समुद्र के रास्ते दुनिया की परिक्रमा करने वाले अभियान को इसी श्रेणी में रख सकते हैं। दो साल पहले वर्ष 2018 में भारतीय नौसेना की जांबाज महिला अफसरों के एक दल ने ढाई सौ दिन की यानी करीब आठ महीने की बेहद कठिन समुद्री यात्र के दौरान दुनिया के अलग-अलग महासागरों की थाह ली थी। समुद्र की अनगिनत चुनौतियों को पार करते हुए उन महिला अफसरों ने नाविका सागर परिक्रमा नामक उस अभियान को साकार कर दिखाया था जो केंद्र सरकार ने नारी शक्ति को बढ़ावा देने की योजना के तहत शुरू किया था।
उल्लेखनीय है कि उस टीम ने 10 सितंबर, 2017 को विश्व परिक्रमा की अपनी यात्र शुरू की थी जो दुनिया का चक्कर लगाने के बाद 21 मई, 2018 को गोवा हार्बर पर वापसी के साथ खत्म हुई थी। उस परिक्रमा का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर वíतका जोशी ने किया था और उनकी टीम में लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, पी स्वाति और लेफ्टिनेंट ए विजया देवी, बी एश्वर्य तथा पायल गुप्ता शामिल थीं। उस यात्र में दल ने पांच देशों, चार महाद्वीपों और तीन महासागरों को पार करते हुए कुल 21 हजार 600 समुद्री मील का सफर तय किया। उस दौरान यह दल भूमध्य रेखा क्षेत्र से भी दो बार गुजरा और 41 दिन प्रशांत सागर में बेहद कठिन मौसम में गुजारे। उसने 60 समुद्री मील प्रति घंटे की रफ्तार से हवा तथा सात मीटर ऊंची लहरों को मात देते हुए लंबी दूरी तय की। दल ने बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए समुद्र का माउंट एवरेस्ट कहे जाने वाले दुर्गम समुद्री क्षेत्र केप हॉर्न में तिरंगा लहरा कर उसे पार किया था। जब यह दल उस मिशन से लौटा तो इन महिलाओं का स्वागत देश की तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया।
अभियान का संदेश : चाहे उत्तरी ध्रुव के ऊपर से उड़ान भरने का मामला हो या पाल नौका से विश्व परिक्रमा का, ये अभियान काफी दुस्साहसिक श्रेणी के हैं। ऐसे में यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि आखिर ऐसे कठिन अभियानों को संचालित करते हुए महिलाएं क्या हासिल कर सकती हैं तो इसका एक उत्तर यह है कि इससे उन सारे क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति दर्ज होती है, जिन्हें हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरे एशियाई समाज में महिलाओं के लिए वर्जति माना जाता रहा है और जहां अभी तक सिर्फ पुरुषों का एकाधिकार रहा है, लेकिन इन अभियानों से यह संदेश स्पष्ट तौर पर जाएगा कि महिलाएं अब सिर्फ टीचर बनकर नहीं रह जाना चाहती हैं, बल्कि वे आइटी, बैंकों, इंजीनियरिंग-साइंस और स्पेस से लेकर फौज जैसे सबसे कठिन माने जाने वाले पेशों में भी इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहती हैं कि अगर वहां वे दुश्मन के सामने मौजूद हों तो अपनी फौजी टुकड़ी में ऐसा जोश भर दें कि वह शत्रु पर संहारक हमला बोल दे। ऐसे में अब यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से दुनिया की सबसे लंबी उड़ान जैसे पराक्रमों से महिलाओं की क्षमताओं को लेकर हमारे देश और समाज में कायम रूढ़िवादी मानसिकता खत्म होगी और महिलाओं को अपनी क्षमताएं दिखाने का मौका पूरी निष्पक्षता के साथ मिलेगा।
अक्टूबर 2019 में पहली बार भारतीय पुरुष पायलटों ने इस क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरी थी। वह विमान नई दिल्ली से सेन फ्रांसिस्को गया था। उसमें एयर इंडिया के पायलट कैप्टन दिग्विजय सिंह और कैप्टन रजनीश शर्मा के अलावा इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल थे। वहीं 18-20 जून, 1937 को सोवियत पायलट वेल्री पाव्लोविच चाकलॉव ने सबसे पहले उत्तरी धुव्र के ऊपर से उड़ान भरने का कारनामा किया था। उन्होंने मास्को से अमेरिकन पैसिफिक कॉस्ट वैंकोवर की दूरी इसी के ऊपर से उड़ान भरकर पूरी की थी। उन्हें 8811 किमी लंबा सफर पूरा करने में 63 घंटों का समय लगा था। उन्होंने यह दूरी टॉपलेव एएनटी-25 के सिंगल इंजन विमान से पूरी की थी। इसके लिए उन्हें हीरो ऑफ द सोवियत यूनियन का खिताब दिया गया था। 15 दिसंबर, 1938 को एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी।

जहां तक व्यावसायिक विमानों के इस क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरने की बात है तो इसकी शुरुआत 15 नवंबर, 1954 को लॉस एंजेलिस से कोपेनहेगन जाने वाली डगलस डीसी-6बी विमान की उड़ान से हुई थी। इसके बाद 1955 में वैंकोवर से एम्सटर्डम जाने वाली फ्लाइट ने भी इस खतरनाक सफर को सफलतापूर्वक पूरा किया था। एयर फ्रांस ने पहली बार 1960 में इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाली अपनी पहली व्यावसायिक फ्लाइट सेवा शुरू की थी।

हालांकि अमेरिका और रूस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के दौरान यहां से गुजरने वाले विमानों ने अपना रास्ता बदल लिया था। 1978 में इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरते हुए कोरियाई विमान बोइंग 707 को सोवियत रूस ने मार गिराया था। शीतयुद्ध के बाद इस हवाई क्षेत्र के ऊपर कई रूट खुले, लेकिन यहां पर एयर ट्रैफिक कंट्रोलर, रडार की क्षमता, फंड की कमी, क्षमता की कमी, तकनीकी अव्यवस्था की दिक्कतों के चलते पायलटों को काफी समस्या आती थी। इसमें सबसे बड़ी समस्या भाषा की थी। इस हवाई क्षेत्र के ऊपर से जाने वाले विमानों को रूसी भाषा वाले एटीसी से तालमेल बैठाना होता था जो बेहद मुश्किल था। इसके समाधान के तौर पर रशियन अमेरिकन कोऑíडनेटिंग ग्रुप ऑफ एयर ट्रैफिक का गठन किया गया था। सात जुलाई, 1998 में पहली बार कैथे पैसिफिक फ्लाइट 889 ने न्यूयॉर्क से हांगकांग की सीधी नॉन स्टॉप उड़ान भरकर एक नया कीíतमान बनाया था। इसमें करीब 16 घंटे का समय लगा था। मौजूदा समय में कई विमानन कंपनियां इस क्षेत्र से उड़ान भर रही हैं। इसमें एयर इंडिया भी शामिल है।


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