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- बाढ़ की विभीषिका
Written by जनसत्ता; देश के असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बिहार का पूर्वोत्तर सीमांचल क्षेत्र भी पानी से लबालब भरा हुआ है। बीते कई दिनों से बिहार में मानसून की बारिश नहीं हो रही है, लेकिन नेपाल से निकल कर उत्तर बिहार से होते हुए गंगा में प्रवेश पाने वाली अधिकांश नदियों में जल स्तर बढ़ा हुआ है।
इसका मुख्य कारण नेपाल में तेज बारिश है, जो हर साल बिहार और पश्चिम बंगाल के अधिकांश इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा कर देती है। कोसी नदी पर नवीनतम कोशी बराज बना हुआ है, लेकिन वह नेपाल से आने वाली नदियों के पानी को पूरी तरह रोकने में सफल नहीं है। जिससे जनजीवन अस्त व्यस्त होता ही है। बिहार जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य में बाढ़ और सुखाड़ अब भी अभिशाप बने हुए हैं। इसका कोई उचित समाधान निकालने की जरूरत है। राज्य और केंद्र आपसी सहयोग से उत्तर बिहार की नदियों पर छोटे-छोटे बांध बना कर बाढ़ के पानी को रोकने का उचित प्रयास करें तथा बिजली उत्पन्न करने वाले बांध लगाए जाएं, तो यह अच्छी पहल होगी।
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुज़र रहा हैं। श्रीलंका इस वक़्त दोहरे संकट से गुज़र रहा है। पहला, राजनीतिक अस्थिरता और दूसरा गहन आर्थिक संकट। इस कोहराम का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ राजपक्षे परिवार को ठहराया जा सकता है। उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को राजवंश की सत्ता समझ रखा था। देशसेवा के नाम पर परिवार की सेवा पूरे ऐशो-आराम से की जा रही थी। लंका गले तक कर्ज मे दब चुका है। चीन का ब्याज चुकाते-चुकाते ही वह दिवालिया हो गया।
गोटाबाया की नीतियों ने अर्थव्यवस्था का बेडा गर्ग कर डाला! विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका हैं, बिजली नहीं हैं, खाद्य सामग्री नहीं हैं, पेट्रोल डीजल बूंद-बूंद कर बांया जा रहा है, स्कूल बंद हैं, दवाई का आभाव है। ऐसे में वहां की जनता बुरी तरह से त्रस्त हो चुकी थी और आपातकाल के बावजूद वे सड़कों पर उतर आए। जन सैलाब राष्ट्रपति भवन मे घुस गया, खाना खाया, राष्ट्रपति के बिस्तर पर आराम किया, खूब धमा-चौकड़ी की।
अठारहवीं सदी की फ्रांसीसी क्रांति के बाद ऐसे दृश्य श्रीलंका मे ही दिखे हैं। आज श्रीलंका को तुरंत पांच-छह अरब डालर की जरूरत है। अगर श्रीलंका पहले की शर्तें पूरी करेगा, तो उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक से लोन मिल सकता है। श्रीलंका हमारा पड़ोसी देश है, भारत ने अभी तक खूब मदद की है, लेकिन अभी भी मदद की दरकार है, नहीं तो चीन उसे निगल जाएगा।