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सम्पादकीय
नदियों को बाधित करने से आती है बाढ़, उनको अविरल बहने दें और उनके मार्ग पर नहीं करें कोई निर्माण
Gulabi Jagat
16 July 2022 6:00 AM GMT
![नदियों को बाधित करने से आती है बाढ़, उनको अविरल बहने दें और उनके मार्ग पर नहीं करें कोई निर्माण नदियों को बाधित करने से आती है बाढ़, उनको अविरल बहने दें और उनके मार्ग पर नहीं करें कोई निर्माण](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/07/16/1792623-15072022-floodinindia22894877-1.webp)
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सम्पादकीय न्यूज
पंकज चतुर्वेदी। जहां आधा देश अभी बारिश की बाट जोह रहा है, वहीं कुछ राज्यों खासकर असम, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना में वर्षा का पानी कहर ढा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि गुजरात के शहरों में विकास और नगरीकरण स्तरीय है, लेकिन अहमदाबाद से लेकर नवसारी तक सब कुछ एक बरसात में ही धुल गया। महाराष्ट्र के वे हिस्से जो अभी एक हफ्ता पहले एक-एक बूंद को तरस रहे थे, अब जलमग्न हैं। इन दोनों प्रदेशों की जल कुंडली बांचें तो लगता है कि प्रकृति चाहे जितनी वर्षा कर दे, यहां की जल-निधियां उसे सहेजने में सक्षम हैं, लेकिन अंधाधुध रेत-उत्खनन, नदी क्षेत्र में अतिक्रमण, तालाबों के गुम होने के चलते स्थितियां बिगड़ गई हैं।
महाराष्ट्र, गुजरात से बुरे हालात तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के हैं, जहां गोदावरी नदी अब गांवों-नगरों में बह रही है। यदि बारीकी से देखें तो इस बाढ़ का असल कारण वे बांध हैं, जिन्हें भविष्य के लिए जल संरक्षण या बिजली उत्पादन के लिए अरबों रुपये खर्च कर बनाया गया। किन्हीं बांधों की उम्र पूरी हो गई है तो किसी में गाद भरी है। कई जगह जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे के चलते अचानक तेज बारिश के हिसाब से उनकी संरचना ही नहीं की गई है।
जहां-जहां बांध के दरवाजे खोले जा रहे हैं या फिर ज्यादा पानी जमा करने के लालच में खोले नहीं जा रहे, वहां-वहां पानी बस्तियों में घुस रहा है। इससे हुई संपत्ति का नुकसान और लोगों की मौत का आकलन करें तो पाएंगे कि बांध महंगा सौदा साबित हो रहे हैं। यदि असम और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ दें तो करीब एक करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं।
अकेले गुजरात और महाराष्ट्र में जल भराव से मरने वालों की संख्या 150 पार कर चुकी है। अभी तक बाढ़ के कारण संपत्ति के नुकसान का सटीक आंकड़ा नहीं आया है, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति जैसे सड़क, खेतों में खड़ी फसल, मवेशी, मकान आदि की तबाही करोड़ों रुपये में है। बाढ़ के कारण सैकड़ों गांवों से संपर्क टूट गया है। वहां बिजली आपूर्ति ठप पड़ी हुई है।
गुजरात में नर्मदा नदी पर बने बांध का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। गुजरात के अन्य प्रमुख बांधों में उनकी क्षमता का 33.61 प्रतिशत जल संग्रह हो गया है। जिस सरदार सरोवर बांध को देश के विकास का प्रतिमान कहा जाता है, उसे अपनी पूरी क्षमता से भरने की उद्देश्य से उसके दरवाजे खोले नहीं गए। लिहाजा मध्य प्रदेश के धार जिले तक नर्मदा नदी की दिशा विपरीत हो गई है। यहां नदी पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती है, लेकिन अब पश्चिम से पूर्व की तरफ बह रही है।
स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में जब मध्य प्रदेश के इन इलाकों में बरसात होगी तो भारी तबाही देखने को मिलेगी। बिहार में तो हर साल 11 जिलों में बाढ़ का कारण केवल बांधों का टूटना या फिर क्षमता से ऊपर बहने वाले बांधों के दरवाजे खोलना होता है। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में जब बादल जम कर बरस रहे थे, तभी सीमा पर तेलंगाना के मेडिगड्डा बांध के सारे 65 दरवाजे खोल दिए गए।
एशियाई विकास बैंक के अनुसार भारत में प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे ज्यादा कहर बरपाती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले कुल नुकसान का 50 प्रतिशत केवल बाढ़ से होता है। बाढ़ से पिछले 65 वर्षों में 1,09,414 लोगों की मौत हुई है और 25.8 करोड़ हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है। अनुमान है कि कुल आर्थिक नुकसान 4.69 लाख करोड़ रुपये का होगा। मौजूदा हालात में बाढ़ महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई है, बल्कि मानवजन्य साधनों की त्रासदी बन गई है।
वास्तव में बड़े बांध जितना लाभ नहीं देते, उससे ज्यादा विस्थापन, दलदली जमीन और हर बरसात में तबाही देते हैं। यह दुर्भाग्य है कि हमारे यहां बांधों का रखरखाव भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता रहता है। न उनकी गाद ठीक से साफ होती है और न ही सालाना मरम्मत। उनसे निकलने वाली नहरें भी अपनी क्षमता से जल-प्रवाह नहीं करतीं, क्योंकि उनमें भरी गाद की सफाई केवल कागजों पर होती है।
कुछ लोग नदियों को जोडऩे में इसका निराकरण खोज रहे हैं। हकीकत में नदियों के प्राकृतिक बहाव, तरीकों, विभिन्न नदियों के ऊंचाई-स्तर में अंतर जैसे विषयों का हमारे यहां कभी निष्पक्ष अध्ययन ही नहीं किया गया। इसी का फायदा उठाकर कतिपय ठेकेदार, कारोबारी और जमीन लोलुप लोग इस तरह की सलाह देते हैं। पानी को स्थानीय स्तर पर रोकना, नदियों को उथला होने से बचाना, बड़े बांध पर पाबंदी, नदियों के करीबी पहाड़ों पर खुदाई पर रोक और नदियों के प्राकृतिक मार्ग से छेड़छाड़ को रोकना कुछ ऐसे सामान्य प्रयोग हैं, जो बाढ़ सरीखी भीषण विभीषिका का सटीक जवाब हो सकते हैं।
पानी इस समय विश्व के संभावित संकटों में शीर्ष पर है।
पीने, उद्योग चलाने, खेती करने और बिजली पैदा करने के लिए पानी चाहिए। पानी की मांग के सभी मोर्चों पर आशंकाओं और अनिश्चितताओं के बादल मंडरा रहे हैं। बरसात के पानी की हर एक बूंद को एकत्र करना एवं उसे समुद्र में मिलने से रोकना ही इसका एकमात्र निदान है। इसके लिए बनाए गए बड़े-बड़े बांध कभी विकास के मंदिर कहलाते थे। आज यह स्पष्ट हो रहा है कि लागत उत्पादन, संसाधन आदि मामलों में ऐसे बांध घाटे का सौदा सिद्ध हो रहे हैं। विश्व बांध आयोग के अध्ययन के अनुसार ऐसे निर्माण उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। यदि पानी बचाना है और तबाही से भी बचना है तो नदियां को अविरल बहने दें और उनके मार्ग पर कोई निर्माण न करें।
(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)
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