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कल्पना के घायल पंख की उड़ान
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:
महामारी के जाते हुए दौर में भी अनावश्यक मिलना-जुलना कम किया जाना चाहिए और एहतियात रखने की हर समय बहुत जरूरत है। यह भी सच है कि एक-दूसरे से मिलना-जुलना कम होता है तो कई लोगों का समय निकलना भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन इस दशा में अजीबोगरीब और असंभव कल्पनाएं करने से भी काफी कुछ समय कट जाता है। इसी तरह की एक कवायद यह है कि फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं करने वालों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया है और सबसे घातक पात्र के लिए चुनाव किया जाना है।
मतदान के पहले सभी को अपना-अपना पक्ष रखना है। इसी बीच गब्बर सिंह ने अपना विरोध प्रस्तुत किया कि वहां जय और वीरू को आमंत्रित किया गया है और गब्बर इसे विदेशी हस्तक्षेप मानता है। जय और वीरू अपने-अपने आधार कार्ड और मतपत्र दिखाते हैं परंतु उनमें उनके उस समय के नाम दर्ज हैं जब वे छोटे-मोटे काम करते थे और एक ट्रेन डकैती को विफल करना उनके अपने बचाव के लिए आवश्यक था।
इस समय अमरीश पुरी अभिनीत मोगेम्बो, प्रकट हुआ और अमरीश जैसे खलनायक की शिकायत है कि दादा मुनि के अदृश्य होने वाले उस घड़ीनुमा गैजेट के कारण ही मोगेम्बो के बुरे दिन आए। काल नामक खलनायक पात्र दावा करता है कि उसके बनाए वायरस के कारण वह दुनिया पर राज कर सकता था परंतु उसके जुड़वां भाई के रक्त से वायरस का इलाज निकल आया। यह खलनायक दावा करता है कि उसका वायरस तो चीन को भी तबाह कर देता।
इन भयावह खलनायकों की तुलना में फिल्म 'श्री 420' का सोना चंद धर्मानंद नामक पात्र बड़ा ही मासूम नजर आता है। सेठ सोनाचंद को लगता है कि उसके इरादों को गांव के गंवई एक मामूली से आदमी ने परास्त कर दिया। आमिर खान की फिल्म 'दंगल' का खलनायक कोच केवल उस बात का क्रेडिट लेना चाहता है जो काम उसने किया ही नहीं। इस मानदंड से चलने पर तो कोई खलनायक बचेगा ही नहीं। आज तो क्रेडिट बैंक तक लूटे जा रहे हैं।
खास बात यह रही कि इस सम्मेलन में विदेश से किसी खलनायक को आमंत्रित नहीं किया गया। यह पूरी तरह स्वदेशी मामला है। राजकुमार हिरानी का बोमन अभिनीत खलनायक पात्र तो बड़ा मासूम लगता है। उसके परीक्षा परिणाम को मानदंड मानना गलत भी नहीं है। शिक्षा के रोजमर्रा के जीवन की कठिनाइयों को दूर करना आवश्यक है। महात्मा गांधी के नवजीवन केंद्र का यही उद्देश्य था। अब वह आदर्श हताहत और निस्पंद रह गया है।
गौरतलब है कि राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, विकी कौशल इत्यादि युवा कलाकारों के सामने कोई गब्बर या मोगेम्बो नुमा खलनायक नहीं है परंतु उनका काम भी कठिन है। वे मनुष्य के भीतर बैठे खलनायक से लड़ रहे हैं। यह सच है कि एस.एस राजमौली के कटप्पा के समान पात्र खोजना आसान नहीं है। विज्ञान, मनुष्य जीवन बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है परंतु अफसोस की बात तो यह है कि लोभ-लालच की ताकतें बहुत बड़ी रुकावटें बन गई हैं।
बहरहाल इस खलनायक सम्मेलन का अंत यह हुआ कि वे सब आपस में ही भिड़ गए। सांभा को सारे समय ऊंची टेकरी पर सबसे अलग और दूर बैठाए रखा गया तो उसने ही गब्बर पर गोली दाग दी। मोगेम्बो नए द्वीप की तलाश में मारा-मारा फिर रहा है। खाड़ी देश में तेल के कुएं सूख रहे हैं और वहां हड़कंप मच रहा है।
चीन के आम आदमी में आक्रोश है। आम आदमी को लगता है कि सभी के पास भौतिक सुुख-सुविधाओं के सामान, घर और भरपेट भोजन से अधिक आवश्यकता है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की। आज चहुं ओर अभिव्यक्ति के लिए शोर मचाया जा रहा है। बहरहाल, यह भी सच है कि वो सुबह तो आएगी और सुबह हमीं से आएगी।
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