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Written by जनसत्ता: तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच अब साफ देखा जा सकता है कि विकसित और महाशक्ति माने जाने वाले देशों के बीच भारत अपनी एक सशक्त उपस्थिति दर्ज कर रहा है। वह चाहे अलग-अलग देशों के बीच आर्थिक साझेदारी हो या रूस-यूक्रेन जैसी युद्ध की स्थिति, अमूमन सभी क्षेत्रों में भारत की अहमियत को अब दर्ज किया जा रहा है।
इस क्रम में पिछले दो दिनों में अमेरिका और फ्रांस से विमानों की खरीद को लेकर जो नया समझौता हुआ है, उसे न केवल भारत की मजबूत होती स्थिति, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से भी एक बेहद अहम सौदा माना जा रहा है। गौरतलब है कि मंगलवार को भारत अमेरिका और फ्रांस की ओर से एअर इंडिया के चार सौ सत्तर विमानों के सौदे की घोषणा हुई।
इसके तहत फ्रांस की एअरबस से ढाई सौ और अमेरिका की बोइंग से दो सौ बीस विमानों का सौदा तय हुआ है। इसमें एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि एअरबस के विमान में इस्तेमाल होने वाले इंजन के अलावा अन्य कई हिस्से ब्रिटेन की कंपनी बनाएगी। यानी इस सौदे में एक तरह से ब्रिटेन भी एक अहम पक्ष है।
उड्डयन और विमानन क्षेत्र में इस समझौते को एक बड़ी कामयाबी माना जा सकता है और इसके पूरा होने पर यह तस्वीर और साफ होकर उभरेगी। मगर इससे पहले संबंधित देशों में रोजगार के क्षेत्र में नए अवसरों के पैदा होने की जो उम्मीद बंधी है, वह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। एक तरह से देखें तो विमानों के इस सौदे के साथ भारत ने वैश्विक बिसात पर सबसे ताकतवर दखल रखने वाले दो देशों से एक साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने की कोशिश की है। इसे उड्डयन कूटनीति कहा जा सकता है।
इसका संकेत इससे भी मिलता है कि जहां अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस समझौते को ऐतिहासिक करार दिया है, वहीं फ्रांस के राष्ट्रपति ने भी भारत के साथ अपने देश के गहरे रणनीतिक रिश्ते में मील का पत्थर बताया। ऐसे में स्वाभाविक ही इसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की बढ़ती हैसियत के तौर पर भी देखा जा रहा है।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन केंद्र बनने को तैयार है। यों भी सरकार नागरिक उड्डयन क्षेत्र को मजबूत करने पर ज्यादा जोर दे रही है और पिछले आठ सालों में देश में हवाई अड्डों की संख्या चौहत्तर से बढ़ कर एक सौ सैंतालीस हो गई है।
इसके अलावा, एक अन्य घटनाक्रम में एअरो इंडिया में लगभग अस्सी हजार करोड़ रुपए के दो सौ छियासठ साझेदारियों की भी घोषणा हुई है। साथ ही रक्षा क्षेत्र में काम करने वाली एक जर्मन कंपनी भारतीय हेलिकाप्टरों के लिए बाधा निवारण प्रणाली बनाने के लिए हिंदुस्तान एअरोनाटिक्स लिमिटेड के साथ महत्त्वपूर्ण तकनीकों की पूरी शृंखला साझा करने के लिए तैयार है।
यह छिपा नहीं है कि पिछले कुछ सालों के दौरान महाशक्ति माने जाने वाले देशों के बीच किस तरह नए समीकरण खड़े हो रहे हैं। खासतौर पर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के संदर्भ में यह ज्यादा साफ उभरा। लेकिन इस दौर में भारत ने जिस तरह अलग-अलग ध्रुवों के बीच संतुलन कायम करने, विरोधी खेमों के बीच संवाद बनाने और युद्ध जैसी जटिल स्थिति में भी हल के रास्ते तैयार करने में एक कड़ी के रूप में अग्रणी भूमिका निभाई है, वह दुनिया के सभी देशों ने देखा।
अमेरिका और रूस के बीच मतभेदों के बीच भी भारत ने अपनी स्वतंत्र हैसियत स्पष्ट रखी और इस तरह एक समांतर शक्ति के ध्रुव के रूप में खड़ा हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेमों के बीच खींचतान के बीच अपनी कामयाब उपस्थिति दर्ज करने के बाद अब व्यापार के क्षेत्र में भी इस अहम समझौते के जरिए भारत ने अपना कूटनीतिक कौशल दिखाया है। उम्मीद है कि उड्डयन क्षेत्र में हुए इस ऐतिहासिक समझौते के बाद आने वाले वक्त में भारत की छवि और ज्यादा सशक्त रूप में दर्ज होगी।
क्रेडिट : jansatta.com