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साल 2021 हम में से कोई भी शायद ही भूल पाए। अप्रैल और मई के महीने में कोविड की दूसरी लहर में जो भयावह स्थिति पैदा हुई
डॉ चन्द्रकांत लहारिया का कॉलम:
साल 2021 हम में से कोई भी शायद ही भूल पाए। अप्रैल और मई के महीने में कोविड की दूसरी लहर में जो भयावह स्थिति पैदा हुई, उसने लोगों को झकझोर दिया। खैर, बुरा समय भी गुजर जाता है। अब यह साल खत्म होने वाला है। पिछले कुछ महीने हर किसी के लिए कठिन थे, लेकिन क्या हम इस साल से कुछ सीखें ले सकते हैं जो भविष्य में काम आए, आइए इस बारे में बात करें।
पहली सीख : कोई भी बीमारी, व्यक्तिगत जीवन, परिवार, समाज और देश के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। हम पुराने समय से सुनते आए हैं कि 'पहला सुख निरोगी काया।' कोविड महामारी से सीख लेकर हर व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना स्वार्थी नहीं बल्कि सही व्यवहार है। खास तौर से, महिलाएं अपने स्वास्थ्य की कीमत पर दूसरों का ख्याल रखती है, लेकिन याद रखिए, जब आप खुद स्वस्थ रहेंगे, तभी परिवार के दूसरे सदस्यों के स्वास्थ्य का ख्याल रख पाएंगे। अगर हम सब अपने-अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें, तो पूरा समाज स्वस्थ रहेगा।
दूसरी सीख : शारीरिक और मानसिक बीमारियां एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। कोविड-19 की बीमारी ने लोगों और परिवार के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा प्रभावित किया। उसी तरह, अधिक चिंता और तनाव- मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य गंभीर शारीरिक बीमारियों को जन्म दे सकता है। कई लोग मानसिक बीमारियों को हेय दृष्टि से देखते हैं और इनको छुपाते हैं। अब समय आ गया है कि बीमारी चाहे शारीरिक हो या मानसिक, समय पर डॉक्टर से सलाह लें और उसका पूरा इलाज कराएं।
तीसरी सीख : सेहत से जुड़े कुछ व्यवहार हमें कई गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं। नियमित व्यायाम, योग और प्राणायाम तथा हर दिन घूमना स्वास्थ्य पर चमत्कारी असर करता है। साथ ही, समय पर सोना और उठना, कम से कम आठ घंटे की नींद, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की लिए जरूरी है। धूम्रपान छोड़ देने से कई सांस की बीमारियों और कैंसर रोग से बचा जा सकता है। अच्छा और पौष्टिक आहार जिसमें फल, सब्जियां और दूध की सही मात्रा हो, स्वस्थ रखता है। साथ में खट्टे फलों के लेने से शरीर का सुरक्षा तंत्र मजबूत रहता है।
चौथी सीख : हमें लोगों और समाज को स्वस्थ रखने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी उठानी होगी। कुछ महीने पहले आए राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण में पाया गया कि देश में एनीमिया अर्थात खून की कमी और कुपोषण लगभग सभी आयु वर्ग में बड़ी चुनौती हैं। बच्चों और महिलाओं में यह समस्या विकट है और वर्षों से इसमें बहुत काम सुधार हुआ है। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए, हमें अपने गांव और कॉलोनी में स्कूल और आंगनवाड़ियों में बच्चों को पोषण शिक्षा और आहार वितरण सक्रिय भागीदारी देनी चाहिए।
पांचवीं सीख : कोविड-19 की महामारी में बच्चे तुलनात्मक रूप से सुरक्षित रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस दौरान स्कूलों के बंद रहने से सबसे अधिक नुकसान देश के 25 करोड़ बच्चों की शिक्षा का हुआ है। बच्चों की शिक्षा पर घर, समाज और देश की प्रगति निर्भर करती हैं। पिछले दो साल में हुए शिक्षा के नुकसान की पूरी भरपाई तो कभी संभव नहीं होगी लेकिन कुछ कदम उठाए जा सकते हैं।
अगर आप युवा हैं और कुछ समय निकाल सकते हैं, तो आसपास के स्कूलों, खासतौर से सरकारी और ऐसे स्कूल जिसमें गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं, वहां संपर्क करके बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ समय दीजिए। उनके अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा में आपका योगदान दूर तक जाएगा। साथ ही, इस चुनौती को एक अवसर में बदलते हुए, हमें स्कूल स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने के प्रयास करने चाहिए।
हम आने वाले साल में इस वर्ष की सिर्फ बुरी यादें रखेंगे या कुछ सीखों को लेकर आगे बढ़ेंगे। यह आपके हाथ में हैं। एक बात पूरी तरह सुनिश्चित है कि यह महामारी जल्द ही खत्म होगी। आने वाले वर्ष के लिए आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामनाएं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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