सम्पादकीय

कंगाली में मछली मगरमच्छ

Gulabi
22 Sep 2021 5:50 AM GMT
कंगाली में मछली मगरमच्छ
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महीने बाद ही होरी पंचम ने देखा कि मछलियां मगरमच्छों में बदलने लगी हैं तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही न हुआ।

होरी पंचम के खेत अबके फिर ज्यों बाढ़ की भेंट चढ़े तो उसने तनिक दिमाग लगा तय किया कि क्यों न इन तालाब बने खेतों में मछली पालन कर इनकम बढा़ई जाए, आपदा को अवसर में ही नहीं, सुनहरे अवसर में बदला जाए। इसका फायदा यह भी रहेगा कि वह सरकार के साथ भी चलेगा और इनकम भी हो जाएगी। मतलब, एक पंथ दो लाभ। यह सोच वह मछली बाबू के दफ्तर जा पहुंचा। उसे अपने ऑफिस में आया देख मछली खालन विभाग के हेड ने उससे पूछा, 'कौन? मत्स्य कन्या? 'नहीं साहेब, होरी पंचम! गांव लमही जिला कोई भी रख लो। 'तो मछली बाबू को क्यों डिस्टर्ब किया दोपहर में? अब क्या चाहते हो? 'साहेब! गाय पाल कर इनकम तो न बढ़ी, पर अब मछली पाल कर इनकम बढ़ाना चाहता हूं। 'गुड! वैरी गुड! आदमी की साइड की इनकम भी होनी चाहिए। वेतन से तो अखराजात पूरे ही नहीं होते। तो…। 'तो साहब! वैसे भी बाढ़ ने खेतों का खेतों से तालाब बना दिया है। सो सोच रहा हूं जब तक खेतों का पानी उतरे, क्यों न तब तक मछली की खेती ही कर ली जाए। मछलियों से इनकम के लिए क्या करना होगा साहेब? 'करना क्या! हमसे मछलियों का बीज ले जाओ और पांच महीने में ही हमारी तरह हाथ पर हाथ धरे इनकम दस गुणा पाओ। 'पर बीज असली ही होगा न मछली साहेब? होरी पंचम ने मछली बाबू के आगे सवाल खड़ा किया तो मछली बाबू यों उछलते बोले ज्यों पानी से बाहर मछली निकालने पर उछलती है, 'क्या मतलब तुम्हारा?

सरकार पर तो आए दिन सवाल खड़े करते ही रहते हो, पर अब सरकारी बीज पर भी सवाल खड़ा करते हो?' 'नहीं साहेब! माफ करना! मेरा मतलब वह नहीं। पर पिछली दफा भी मैं आम के पौधे ले गया था सरकार की नर्सरी से। बड़े हुए तो बबूल निकले। बस, इसीलिए जरा सा तसदीक करना चाहता था कि…', होरी पंचम ने मछली साहेब के आगे हाथ जोड़ते सच कहा तो मछली साहेब बोले, 'देखो! ये ऐसी वैसी मछलियां नहीं। हजार टेस्टों से गुजरी हैं। असाधारण मछलियां हैं होरी पंचम! पांच महीने में ही बीस बीस किलो की न हो जाएं तो…।' महीने बाद ही होरी पंचम ने देखा कि मछलियां मगरमच्छों में बदलने लगी हैं तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही न हुआ।
फिर उसने सोचा कि खास ही किस्म की मछलियां होगीं। …पर फिर उसने नोट किया कि वह उन्हें चारा देने जाता है तो वे उसे खाने को पड़ती हैं। आखिर उसने जब धनियां पंचम को यह बात बताई तो वह अपना सिर पीटती पीटती खेत बने तालाब के पास आई। उसने देखा तो उसके भी होश उड़़ गए। सच्ची को मछलियां मगरमच्छों की शक्ल ले रही थीं। होरी पंचम दौड़ा दौड़ा फिर मछली बाबू के ऑफिस गया। जाते ही मछली बाबू के पांव पड़ फरियाद की। मछल बाबू उस वक्त कुर्सी पर मगरमच्छ की तरह पसरे थे, 'मछली बाबू! मछली बाबू!' 'अब क्या हो गया? फसल तैयार हो गई क्या? मछली बाबू को फसल चढ़ाने आए हो? और मछली बीज चाहिए क्या?' 'नहीं मछली बाबू साहेब! जो ले गया था वही नहीं संभाला जा रहा', कहते कहते होरी पंचम रोन सा लगा। 'क्या मतलब तुम्हारा?' 'मछली बाबू! जो असली मछलियों का बीज आपसे इनकम दस गुणा करने की चक्कर में ले गया था, वह तो मछलियों से मगरमच्छ हुई जा रही हैं।' 'तो क्या हो गया! म से मछली तो म से मगरमच्छ! है तो दोनों की सिंह राशि ही न! शुक्र करो, दोनों की अलग अलग राशि न निकली। ऊपर से दोनों जल में रहने वाले। जो बीज आकाश में रहने वाले का और देह जमीन पर चलने वाली की निकलती तो बता क्या होता? खुदा कसम! बड़े लक्की हो यार होरी पंचम! वर्ना यहां तो कई बार मछली बाबू से किसान ले मछलियों का बीज जाता है और बाद में वह निकलता दरियाई घोड़ों का है।' 'तो साहेब अब?' मछली बाबू चुप है। कुर्सी पर मगरमच्छ सा पसरा हुआ।
अशोक गौतम
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