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पंजाब के चुनाव परिणामों ने बता दिया कि एक बार फिर से पंजाब के लोगों ने वही इतिहास रचा है
बलजीत बल्ली का कॉलम:
पंजाब के चुनाव परिणामों ने बता दिया कि एक बार फिर से पंजाब के लोगों ने वही इतिहास रचा है जो उन्होंने 1989 के संसदीय चुनावों में रचा था। उस पार्टी ने पूरी तरह से क्लीन स्वीप किया, जो पारंपरिक राजनीतिक दल नहीं माना जाता है। ऐसी पार्टी का 90 सीटों तक पहुंचना 1989 के संसदीय चुनावों का एक दोहराव है। तब ऐसे ही शानदार चुनाव परिणाम सामने आए थे। तब अंजान चेहरे और नई पार्टी ने इसी तरह से शानदार जीत हासिल की थी।
उस समय तरनतारण सीट से सिमरजीत सिंह मान ने पांच लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी। वह रिकॉर्ड आज तक नहीं टूटा है। अंजान और नए चेहरे पुरानी पार्टियों के स्थापित चेहरों को हरा कर जीते थे। उन परिणामों का एक आंशिक प्रभाव साल 2014 में नजर आया था, जब आम आदमी पार्टी ने चार लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। अब 2022 में उस जीत का दोहराव दिखाई दे रहा है।
इतनी बड़ी जीत का अनुमान 'आप' के नेताओं को भी नहीं था। पंजाब के लोगों ने 1972 से कभी भी खंडित जनादेश नहीं दिया है। हमेशा एकतरफा फैसला किया है। साल 2012 में एक बदलाव जरूर हुआ था, जब अकाली-भाजपा सरकार फिर सत्ता में आई थी। पंजाब की जनता विकल्प खोज रही थी। साल 2012 में भी लोक इंसाफ पार्टी के तौर पर एक प्रयास हुआ था लेकिन सफलता नहीं मिली। इस बार कैप्टन ने भी विकल्प बनने का प्रयास किया, पर परिणाम सबके सामने हैं।
केजरीवाल का दिल्ली मॉडल पंजाब में चर्चा में था। प्राइवेट स्कूलों की फीस का मुद्दा, मोहल्ला क्लीनिक, बिजली-पानी सस्ता होने की बात भी होती थी। हालांकि 'आप' के साथ विवाद भी रहे, पर पार्टी के नेताओं की ईमानदार छवि ने अच्छा असर डाला। भगवंत मान 2014 में भारी अंतर से लोकसभा चुनाव जीते, 2019 में भी दूसरी बार जीतेे। उनका समर्थन भी लगातार बढ़ता रहा। एनआरआई में भी उनका काफी समर्थन रहा है। वे लगातार 'आप' को समर्थन देते रहे हैं।
पंजाब के परिणाम सिर्फ पंजाब को ही नहीं, पूरे देश में नजर आएंगे। पंजाब को जीतकर 'आप' के पास पहली बार एक पूरी सरकार नियंत्रण में आएगी, जिसमें वे हर फैसला कर सकेंगे। राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का प्रयास है कि वे भाजपा के सामने विकल्प के तौर पर सामने आएं। पंजाब में उनकी सरकार बनना उनकी इच्छापूर्ति की पहली सीढ़ी साबित हो सकती है। 'आप' की इस जीत का असर अगले लोकसभा चुनावों पर भी दिख सकता है। वे अब खुद को राष्ट्रीय राजनीति में पेश करेंगे।
दूसरा असर दुनिया पर होगा। पंजाबी पूरी दुनिया में बैठे हैं और इस लिहाज से उनका समर्थन राष्ट्रीय राजनीति की राह खोलेगा। इन चुनाव परिणामों ने कुछ और तथ्यों को भी स्पष्ट किया है कि पंजाब के वोटर्स के सामने वर्गों में विभाजित दल नहीं चल सकते हैं। समुदाय, धर्म, जाति को लेकर वोटर्स कभी नहीं बंटते हैं।
राहुल गांधी और कांग्रेस ने चन्नी को एक दलित मुख्यमंत्री के नाम पर प्रोजेक्ट किया, पर इसका कोई खासा फायदा नहीं हुआ। विपक्षी दलों को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा, नहीं तो उनका आगे भी जीतना मुश्किल होगा। लोगों का भरोसा जीतना जरूरी है, जिसे इस बार आम आदमी पार्टी ने कर दिखाया है।
'आप' का संसद गणित
संसद में 'आप' का प्रतिनिधित्व कम है। राज्यसभा में पंजाब की पांच सीटों के चुनाव हैं और जिस तरह से 'आप' के 90 से अधिक विधायक हैं, ऐसे में उनके पास तीन से चार सीट बड़ी आसानी से आ जाएंगी। इस जीत का असर आसपास के राज्यों पर भी होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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