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कोविड-19 के वैश्विक आर्थिक असर का अंदाजा लगाना मुश्किल है। द इकोनॉमिस्ट का अनुमान है
बिबेक देबराॅय और आदित्य सिन्हा। कोविड-19 के वैश्विक आर्थिक असर का अंदाजा लगाना मुश्किल है। द इकोनॉमिस्ट का अनुमान है कि 'पिछले साल और इस साल कोविड-19 के कारण 10.3 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा।' ये अनुमान जनवरी 2021 के हैं। आंकड़ा और बड़ा हो सकता है। भारत भी प्रभावित हुआ है। पहली लहर में आवागमन (मोबिलटी) पर सख्ती के कारण भारत की जीडीपी 2020-21 में 7.3% संकुचित हो गई। खुशकिस्मती से अप्रैल-जून तिमाही में 'वी' आकार रिकवरी दिखी है।
2021-22 की पहली तिमाही के वृद्धि के आंकड़े आशाजनक हैंं। 2020-21 की पहली तिमाही में ₹26.95 लाख करोड़ की तुलना में 2021-22 की पहली तिमाही में स्थिर कीमतों (2011-12) पर जीडीपी ₹32.38 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। यानी 2020-21 की पहली तिमाही में 24.4% संकुचन की तुलना में 20.1% की वृद्धि। इस वृद्धि के पीछे सिर्फ लो बेस इफेक्ट ही नहीं है, कई अन्य कारक भी हैं-
(1) कृषि ने 4.5% की वृद्धि दर्शाई है। कृषि काफी हद तक लॉकडाउन से अप्रभावित रही। वित्तीय वर्ष 20-21 की पहली तिमाही में इसकी वृद्धि 3.5% रही थी। कृषि क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप लाभकारी सिद्ध हुए हैं।
(2) निवेश लाने के लिए सरकार द्वारा किए गए सुधारों और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव जैसी पहल से भारत को 2020-21 में अब तक का रिकॉर्ड $81.5 बिलियन एफडीआई प्राप्त हुआ। जबकि इसी दौरान वैश्विक एफडीआई 35% कम हुआ है।
(3) भारत में निजी इक्विटी/वेंचर कैपिटल ने पिछले दशक में बड़े पैमाने पर वृद्धि देखी है। यह 19% की सीएजीआर के साथ 2010 के $8.4 बिलियन से 2020 में $47.6 बिलियन पर पहुंच गई है। अर्नेस्ट एंड यंग, भारत के मुताबिक कोविड-19 के बावजूद 2020 में रिकॉर्ड $47.6 बिलियन डॉलर निजी इक्विटी/वेंचर कैपिटल निवेश हुए हैं। हुरुन इंडिया के मुताबिक भारत ने 2021 में हर महीने तीन 'यूनिकॉर्न' (एक बिलियन डॉलर से ज्यादा मूल्य के स्टार्टअप) जोड़े हैं।
(4) मजबूत वृद्धि का रुझान जुलाई से सितंबर तिमाही में भी देखा जाएगा क्योंकि रिकवरी के मजबूत संकेत हैं। 2021-22 की पहली तिमाही में कोरोना की दूसरी लहर के कारण स्थानीय आवागमन पर प्रतिबंधों में तेजी देखी गई। हालांकि पहली लहर जितना सख्त लॉकडाउन नहीं था। गूगल मोबिलिटी इंडेक्स बताता है कि मोबिलिटी अप्रैल 2021 में गिरी लेकिन जुलाई मध्य तक महामारी से पहले के स्तर तक पहुंच गई।
पहली तिमाही की वृद्धि आशा अनुरूप नहीं थी। हालांकि दूसरी तिमाही में ऐसा नहीं होगा क्योंकि लगभग सभी प्रतिबंध हट गए हैं। इसी तरह जुलाई व अगस्त में जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रु. तक पहुंचा और आगे भी अच्छे जीएसटी रेवेन्यू की उम्मीद है। उम्मीद है कि 2021-22 के लिए वार्षिक वास्तविक जीडीपी कम से कम 11% रहेगी।
हालांकि अभी सुधार की गुंजाइश है। अगर महमारी से पहले की वृद्धि दर से तुलना करें तो अभी लंबा सफर करना है। वृद्धि चार कारकों से चलती है- उपभोग, निवेश, सरकारी व्यय और शुद्ध निर्यात। पहली लहर की तुलना में, दूसरी लहर में शुद्ध निर्यात अच्छा रहा और खपत बढ़ी है। हालांकि वित्तीय वर्ष 2021-22 की तुलना में निजी उपभोग और निवेश अब भी कोविड से पहले के स्तर से कम रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 2021-22 में घोषित 5.6 लाख करोड़ के निवेश में 70% निजी निवेश हैं। सरकार ने सुधार के कई कदम उठाए हैं, जिन्हें कारगर साबित होने में वक्त लगेगा। टीकाकरण भी वर्तमान गति से चलते रहना जरूरी है ताकि तीसरी लहर का अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव न हो।
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