सम्पादकीय

असावधानी के चलते कहर ढाती है आग

Rani Sahu
18 May 2022 6:08 PM GMT
असावधानी के चलते कहर ढाती है आग
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पिछले शुक्रवार की शाम पश्चिमी दिल्ली में मुंडका की एक बहुमंजिला व्यावसायिक इमारत में हुए भीषण अग्निकांड ने अनेक देशवासियों को 13 जून 1997 को दिल्ली के ही ग्रीन पार्क में स्थित उपहार सिनेमा में हुए आग के तांडव की याद दिला दी है

कृष्णप्रताप सिंह

पिछले शुक्रवार की शाम पश्चिमी दिल्ली में मुंडका की एक बहुमंजिला व्यावसायिक इमारत में हुए भीषण अग्निकांड ने अनेक देशवासियों को 13 जून 1997 को दिल्ली के ही ग्रीन पार्क में स्थित उपहार सिनेमा में हुए आग के तांडव की याद दिला दी है, जिसमें 59 दर्शक जल मरे थे. संयोग देखिए कि उक्त अग्निकांड 13 जून को घटित हुआ था और यह 13 मई को हुआ है. उस अग्निकांड के दिन भी शुक्रवार था और यह अग्निकांड भी शुक्रवार को ही घटा.

इस कारण लगी है आग
उसके बाद बताया गया था कि आग की पहली चिंगारी बिजली के उस ट्रांसफार्मर से निकली थी, बिजली विभाग ने अरसे से जिसके रखरखाव की फिक्र नहीं की थी. इस अग्निकांड के बाद कहा जा रहा है कि पहली चिंगारी इमारत में लगे जनरेटर से निकली. लेकिन विडंबना देखिये कि ये संयोग यहीं नहीं ठहरते.
उपहार सिनेमा में भी थी ऐसी ही स्थिति
पच्चीस साल पहले हुए उस अग्निकांड के वक्त उपहार सिनेमा में ऐसी किसी आकस्मिकता के वक्त दर्शकों को सुरक्षित बाहर निकालने का कोई इंतजाम नहीं था, तो इस अग्निकांड के बाद भी यही पता चला है कि उक्त इमारत से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था.
दिल्ली के कई इमारतों का यही है हाल
आपको बता दें कि उसी रास्ते पर जनरेटर भी लगा था और उसी से आग भड़क गई तो इमारत में फंसे लोगों को बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं मिला था. कहते हैं कि दिल्ली की अनेक अन्य बहुमंजिला इमारतों का हाल भी ऐसा ही है, लेकिन किसी को भी इसकी फिक्र नहीं है.
25 साल में कुछ नहीं हुआ है बदलाव
क्या आश्चर्य कि उपहार अग्निकांड के वक्त भी अग्निशमन के फौरी उपाय अपर्याप्त सिद्ध हुए थे और इस अग्निकांड में भी वे अपर्याप्त ही सिद्ध हुए. साफ है कि पिछले 25 सालों में कई बार सरकारें बदलने के बावजूद इस लिहाज से कुछ नहीं बदला है.
सावधानी ही अग्निकांडों से निपटने का है सबसे प्रमुख साधन
अन्यथा दिल्ली का जो अग्निशमन अमला यह कहकर अपनी पीठ ठोंक रहा है कि उसने बिना देर किए चौबीस अग्निशमन वाहन मौके पर भेज दिए थे और पचास लोगों को बचा लिया है, वह पछता रहा होता कि 27 लोगों को मौत के मुंह में जाने से क्यों नहीं रोक पाया.
साथ ही सरकारें समझतीं कि ऐसे हर कांड के मुआवजे के ऐलान भर से उसकी कर्तव्यनिर्वहन की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती. यकीनन, सावधानी ही अग्निकांडों से निपटने का सबसे प्रमुख साधन है, लेकिन हम व्यक्तिगत व व्यवस्थागत दोनों स्तरों पर उससे हीन हैं.
Rani Sahu

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