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- अरण्य में आग
Written by जनसत्ता; कहीं आग लगने की घटना के पीछे लापरवाही से लेकर अन्य कई कारण हो सकते हैं। लेकिन अगर कई स्तरों पर सुरक्षित और संरक्षित माने जाने वाले इलाके में ऐसी घटना होती है, तब यह ज्यादा चिंता की बात है। अभयारण्यों को ऐसा ही संरक्षित क्षेत्र माना जाता है, जिसकी देखरेख और उसमें अवांछित गतिविधियों की रोकथाम के लिए एक विशेष व्यवस्था की गई है।
इसके बावजूद अगर अभयारण्यों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं, तो यह पड़ताल का मामला है। रविवार को राजस्थान के अलवर जिले में फैले सरिस्का बाघ अभयारण्य के जंगलों में लगी आग ने भीषण शक्ल ले ली। आग की भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि शुरुआती दौर में उस पर काबू पा लिया गया, मगर मंगलवार को फिर वह भड़क गई। उसके बाद हालत यह हुई कि आग जंगल के दस वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े इलाके में फैल गई। आग बुझाने के लिए अन्य उपायों सहित वायुसेना के दो हेलिकाप्टरों की भी मदद ली गई, मगर पहाड़ी और ऊंचाई वाला क्षेत्र होने की वजह से उस पर पूरी तरह काबू पाना एक बड़ी चुनौती थी।
हालांकि राजस्थान के मुख्यमंत्री ने जल्दी ही आग पर काबू पा लिए जाने की उम्मीद जताई थी और ठोस कोशिशों के बीच यह संभव भी हुआ। सवाल है कि किसी भी वजह से जंगलों में ऐसे हादसों से निपटने के पूर्व-इंतजामों को लेकर सरकार के पास क्या योजना है! सरिस्का में आग लगने की कोई साफ वजह अब तक सामने नहीं आ सकी है, मगर यह कहा जा सकता है कि वैसे कुछ हालात पर नजर रखने में चूक हुई, जो बिगड़ जाए तो समूचे जंगल को खाक कर दे सकते हैं।
यों मौसम के लिहाज से देखें तो तापमान में बढ़ोतरी के मद्देनजर कहा जा सकता है कि किसी संवेदनशील जगह पर एक चिंगारी दावानाल की वजह हो सकती है। मगर इसके समांतर अन्य वजहों पर गौर करना और आग लगने की अनुकूल परिस्थितियों से बचाव वक्त का तकाजा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में सरिस्का के अलावा छत्तीसगढ़ के सेमरसोत अभयारण्य और ओड़ीशा के मयूरभंज जिले में स्थित शिमिलीपाल अभयारण्य में भी आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
करीब चार साल पहले इस तरह की खबरें आई थीं कि प्रशासन की ओर से सरिस्का अभयारण्य में चिह्नित दो सौ इकसठ जगहों से अतिक्रमण हटाने की तैयारी की जा रही है। इसके अलावा, सरिस्का में बाघों और वन्यजीवों के लिए खतरा बताते हुए वहां बने अवैध होटल और फार्म हाउस आदि को हटवाने की भी सरकार से मांग की गई थी। यों यह अपने आप में जांच का विषय है कि अभयारण्य जैसे संरक्षित वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होटल और फार्म हाउसों का निर्माण कैसे संभव हुआ!
अगर यह नियम-कायदों का उल्लंघन करके किया गया तो इसके लिए जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों ने समय रहते सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य में अवैध निर्माण को रोकने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए? इस तरह की गतिविधियों के मद्देनजर देखें तो यह आशंका निराधार नहीं है कि जंगल में आग लगने की घटना में अभयारण्य में अतिक्रमण या अवैध निर्माण कराने वालों का हाथ हो सकता है!
इसके अलावा, शिकारियों या जंगल की जमीन पर कब्जा जमाने वालों की भी अवांछित हरकतों की खबरें आती रहती हैं। लेकिन सच्चाई का पता चलना तभी संभव है जब न केवल आग पर काबू पाया जाए, बल्कि इसके कारणों का भी पता लगाया जाए और अगर इसके लिए किसी की जिम्मेदारी बनती है तो उसके खिलाफ कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई की जाए।