सम्पादकीय

अपनी प्रासंगिकता की खोज?

Gulabi Jagat
27 Sep 2022 1:07 PM GMT
अपनी प्रासंगिकता की खोज?
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By NI Editorial
चुनाव आयोग के सामने सबसे बड़ी प्राथमिकता अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को वापस पाने की होनी चाहिए। उसके बिना राजनीतिक दलों में अंदरूनी लोकतंत्र का मुद्दा उठाने के उसके रुख को लेकर उसकी मंशा पर कई हलकों से सवाल उठाए जा सकते हैँ।
निर्वाचन आयोग ने अब राजनीतिक पार्टियों के अंदर लोकतंत्र सुनिश्चित करने पर अपना पूरा जोर लगाया है। मई के बाद से इसी मुद्दे पर कई पंजीकृत पार्टियों को अपनी सूची से हटाने के बाद अब उसने अपना ध्यान मान्यता-प्राप्त दलों पर केंद्रित किया है। लेकिन दो बातें गौरतलब हैं। पार्टियों के अंदर का ढांचा कैसा हो, इस बारे में जन प्रतिनिधित्व कानून-1951 में कोई प्रावधान नहीं है। पंजीकरण कराते वक्त पार्टियों को यह नियम जरूर स्वीकार करना पड़ता है कि वे अपने अंदरूनी ढांचे के बारे में चुनाव आयोग को सूचित करती रहेंगी, यह खुद आयोग मानता है कि इस आधार पर उसे किसी पार्टी की मान्यता रद्द करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए उसने विधि मंत्रालय से प्रावधान करने को कहा है, लेकिन अभी तक केंद्र ने इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया है। इसके बावजूद अब आयोग ने अंदरूनी लोकतंत्र की अपनी वचनवद्धता निभाने पर मजबूर करने के लिए पार्टियों पर दबाव बनाने का फैसला किया है।
अगर आयोग अपनी पुरानी प्रतिष्ठा कायम रख पाया होता, तो बेशक उसके इस उत्साह की चौतरफा तारीफ होती। लेकिन गुजरे वर्षों में हालात ऐसे बने हैं कि अब विपक्षी नेता खुलेआम उस पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के हितों के मुताबिक काम करने का इल्जाम लगाते हैँ। ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं, जिनकी वजह से सार्वजनिक जीवन में भी एक बड़ा तबका अब आयोग की निष्पक्षता पर संदेह करता है। ऐसे में धीरे-धीरे ये धारणा बन गई है कि अब विधायिका के होने वाले चुनाव में सभी दलों को समान धरातल नहीं मिलता। उस परिस्थिति में चुनाव आयोग के सामने सबसे बड़ी प्राथमिकता इस धारणा को तोड़ना और अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को वापस पाने की होनी चाहिए। उसके बिना राजनीतिक दलों में अंदरूनी लोकतंत्र का मुद्दा उठाने के उसके रुख को लेकर उसकी मंशा पर कई हलकों से सवाल उठाए जा सकते हैँ। समाज के एक तबके में ये धारणा बन सकती है कि देश और राज्यों के चुनाव में अपनी प्रासंगिकता घटाने के बाद अब निर्वाचन आयोग अपनी नई प्रासंगिकता ढूंढ रहा है, ताकि मध्य वर्ग और मीडिया को उसका बचाव करने का एक नया मौका मिले।
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