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- पौंग बांध विस्थापितों...
कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म की दास्तान का फिल्मांकन अगर कश्मीर फाइल नामक फिल्म के जरिए किया जा सकता है, तो पौंग बांध विस्थापितों का दर्द भी कुछ कम नहीं है। कश्मीर फाइल की तर्ज पर ही पौंग बांध विस्थापितों के संघर्ष की कहानी पर आधारित फिल्म अब जरूर बननी चाहिए। करीब आठ हजार पौंग बांध विस्थापित आज भी अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं। दशकों गुजर जाने के बावजूद बेघर हुए लोगों को न्याय पाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़े तो इससे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था की त्रासदी और क्या हो सकती है। अफसोस इस बात का कि जमीन दी धानी, मगर बन न सके पौंग बांध विस्थापित अब तक भी राजस्थानी। केंद्र और हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकारें होने पर भी इन असहाय गरीब परिवारों के नाम पर सिर्फ राजनीति ही की जाती रही है। पीडि़त व्यक्ति को देरी से मिलने वाला न्याय, न्याय नहीं होता, जहां कई पीढि़यों के लोग बेबसी की वजह से मर चुके हों। सरकारें और न्यायालय बेघर हुए लोगों को आज दिन तक न्याय नहीं दिला पाए हैं। अब पौंग बांध विस्थापितों को न्याय की आस तो बस सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय से है। सात दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों की प्रक्रिया कब पूरी होगी, कोई नहीं जानता है। विधानसभा चुनाव नजदीक आते देख नेतागण एक बार इसी मुद्दे को हवा देकर ृवोट ऐंठने की फिराक में हैं।