सम्पादकीय

आंकड़े और हकीकत

Subhi
16 Oct 2021 12:42 AM GMT
आंकड़े और हकीकत
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थोक महंगाई के जो ताजा आंकड़े आए हैं वे आम आदमी को तो राहत देने वाले नहीं कहे जा सकते।

थोक महंगाई के जो ताजा आंकड़े आए हैं वे आम आदमी को तो राहत देने वाले नहीं कहे जा सकते। थोक महंगाई अभी भी दो अंकों में बनी हुई है। बस तसल्ली की बात इतनी है कि अगस्त के मुकाबले इसमें थोड़ी कमी आई है। अगस्त में थोक महंगाई दर 11.39 फीसद थी जो सितंबर में 10.66 फीसद दर्ज की गई। इस बार महंगाई में गिरावट का कारण खाद्य वस्तुओं के दाम में कमी आना बताया गया है। पर हकीकत में ऐसा दिखने में आ कहां रहा है? पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस से लेकर दूध, खाने-पीने की चीजें, सब्जियां, फल आदि के आसमान छूते दामों ने आम आदमी के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है।

ऐसे में यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि महंगाई सिर्फ आंकड़ों में नीचे आ रही है, जबकि जमीनी हकीकत कहीं अलग है। सरकार के लिए आंकड़ों में थोक महंगाई में गिरावट राहत की बात इसलिए हो सकती है कि मई में यह 13.11 फीसद के स्तर पर थी, उसमें अब कमी आ गई है। अगर महंगाई में वाकई कमी आती है तो उसका असर भी दिखना चाहिए। लेकिन ऐसा दिखने में आ नहीं रहा।
गौरतलब है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के लगातार बढ़ते दामों ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने का तर्क देते हुए लगभग रोजाना ही दाम बढ़ा रही हैं। ज्यादातर शहरों में इस वक्त पेट्रोल और डीजल दोनों सौ रुपए लीटर के पार बिक रहे हैं। यह सिलसिला लंबे से चल रहा है। फिर इन दोनों उत्पादों के दाम बढ़ने का असर हर चीज की लागत पर पड़ता है। कच्चे माल से लेकर तैयार उत्पाद तक की ढुलाई महंगी होती जाती है और आखिरकार पैसा उपभोक्ता की जेब से ही निकलता है।
इन दिनों खाद्य वस्तुओं और फल-ब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, उसका बड़ा कारण पेट्रोल-डीजल महंगा होना ही है। कहने को आंकड़ों में खुदरा महंगाई दर भी नीचे आई है, पर बाजार में चीजें तो महंगी ही मिल रही है। ऐसे में कैसे माना जाए कि महंगाई से अब राहत मिल रही है। आम आदमी के लिए तो महंगाई से राहत का मतलब यह होता है कि आंकड़ों में महंगाई घटने के साथ-साथ उसकी जेब से पैसे निकलने की दर में भी कमी आए।
ऐसा नहीं कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम और इसके कारण होने वाली महंगाई ही संकट का कारण बनी हुई है। खाद्य तेलों के दामों ने भी खासा बजट बिगाड़ा है। रसोई गैस के दाम जिस तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, वह और भी चिंताजनक है। चाहे गैस सिलेंडर हो या पाइप के जरिए आपूर्ति की जाने वाली गैस, दोनों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। रसोई गैस सिलेंडर इस साल जनवरी से हर महीने पच्चीस-पच्चीस रुपए महंगा होता रहा है। पांच किलो वाला सिलेंडर पांच सौ के पार चला गया है।
व्यावसायिक इस्तेमाल वाला सिलेंडर भी महंगा होता जा रहा है। जाहिर है होटल, रेस्टोरेंट जैसी जगहों पर भी खाने-पीने की चीजें महंगी होती जाएंगी। गैस की दामों में बढ़ोतरी का जैसा रुख बना हुआ है, उसे देखते हुए तो भविष्य में इसके दाम कम होना तो दूर, थमने की भी उम्मीद नहीं भी नहीं लग रही। सरकार साफ कह चुकी है कि पेट्रोल, डीजल और गैस के बढ़ते दामों को रोक पाना फिलहाल उसके बस में है नहीं। ऐसे में आंकड़ों में ही महंगाई कम होने से खुश हुआ जा सकता है, भले आम जनता कराहती रहे।


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