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- नफरत से मुकाबला
देश में छह से ज्यादा प्रदेशों में क्या नफरत भरी अभिव्यक्तियों की शृंखला चल रही है? दिल्ली से आंध्र प्रदेश तक और गुजरात से बंगाल तक करीब पंद्रह-बीस घटनाएं ऐसी हैं, जिनकी गंभीरता को समझना राष्ट्रहित में जरूरी है। अगर चल रहे नफरती तीरों के तरकश देखें, तो कोई भी पक्ष निर्दोष नजर नहीं आता है। हर तरफ से हमले तेज हो गए हैं। कटु जवाब देने के साथ ही तत्काल हिसाब बराबर कर देने की जल्दी भी बहुत है। धर्म या मजहब के कथित जानकार और जिम्मेदार लोग भी नफरती बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। क्या कुछ लोग इतने भटक गए हैं कि मुंह खोलते ही जहर उगलने लगते हैं? क्या कथित धर्मक्षेत्र के लोगों की भाषा में प्रेम व मानवीयता का अभाव नहीं हो गया है? क्या प्रेम के बिना भक्ति या वैश्विक सद्भाव और सबका कल्याण संभव है? खतरे को ऐसे बढ़ाकर लोगों को भड़काया जा रहा है, मानो खतरा बस दरवाजे के बाहर खड़ा हो? हर पक्ष खुद को निर्दोष और पीड़ित मान रहा है। सकारात्मकता की चर्चा बंद करके नकारात्मकता में बराबरी की खोज हो रही है। कानून के विरुद्ध ही नहीं, बल्कि धर्म के विरुद्ध आचरण करने वालों का भी सम्मान करने वाले लोग कौन हैं? हम कैसा समाज बना रहे हैं? ऐसे सवालों का हुजूम उमड़ पड़ा है और दस से ज्यादा राज्यों में खतरे की घंटियां बज रही हैं।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान