सम्पादकीय

नफरत से मुकाबला

Rani Sahu
18 April 2022 6:59 PM GMT
नफरत से मुकाबला
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देश में छह से ज्यादा प्रदेशों में क्या नफरत भरी अभिव्यक्तियों की शृंखला चल रही है

देश में छह से ज्यादा प्रदेशों में क्या नफरत भरी अभिव्यक्तियों की शृंखला चल रही है? दिल्ली से आंध्र प्रदेश तक और गुजरात से बंगाल तक करीब पंद्रह-बीस घटनाएं ऐसी हैं, जिनकी गंभीरता को समझना राष्ट्रहित में जरूरी है। अगर चल रहे नफरती तीरों के तरकश देखें, तो कोई भी पक्ष निर्दोष नजर नहीं आता है। हर तरफ से हमले तेज हो गए हैं। कटु जवाब देने के साथ ही तत्काल हिसाब बराबर कर देने की जल्दी भी बहुत है। धर्म या मजहब के कथित जानकार और जिम्मेदार लोग भी नफरती बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। क्या कुछ लोग इतने भटक गए हैं कि मुंह खोलते ही जहर उगलने लगते हैं? क्या कथित धर्मक्षेत्र के लोगों की भाषा में प्रेम व मानवीयता का अभाव नहीं हो गया है? क्या प्रेम के बिना भक्ति या वैश्विक सद्भाव और सबका कल्याण संभव है? खतरे को ऐसे बढ़ाकर लोगों को भड़काया जा रहा है, मानो खतरा बस दरवाजे के बाहर खड़ा हो? हर पक्ष खुद को निर्दोष और पीड़ित मान रहा है। सकारात्मकता की चर्चा बंद करके नकारात्मकता में बराबरी की खोज हो रही है। कानून के विरुद्ध ही नहीं, बल्कि धर्म के विरुद्ध आचरण करने वालों का भी सम्मान करने वाले लोग कौन हैं? हम कैसा समाज बना रहे हैं? ऐसे सवालों का हुजूम उमड़ पड़ा है और दस से ज्यादा राज्यों में खतरे की घंटियां बज रही हैं।

कितनी घटनाओं और कितने भटके हुए लोगों का यहां जिक्र करें? सत्संग में बैठने वालों के मुंह से बदजुबानी की सूची लंबी है। जबकि सभी ने बचपन में यह पढ़ा है- रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय। लेकिन अब शायद बहुत से लोग इस दोहे या उसके भाव को भूलने लगे हैं। याद रहे, कट्टरता को भूलकर ही यह देश आगे बढ़ा था और आज विकास की डगर में आगे निकल आया है और अनेक देशों के लिए मिसाल बन गया है। आज लोगों को अनगिनत नकारात्मक टिप्पणियां और उदाहरण याद हैं, पर सकारात्मक टिप्पणियों और सद्भाव के अनगिन उदाहरणों को नजरंदाज करने वाले लोग क्या चाहते हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि कानून या संविधान क्या कहता है? इन दंगों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी अक्सर यह दावा करती रही है कि उसके राज में दंगे नहीं होते? क्या उसके शासन पर कोई साजिशन दंगे के दाग लगाना चाहता है? सुरक्षा एजेंसियों को अमन बनाए रखने के लिए सक्रिय हो जाना चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि नफरती बयार को काबू में करने के लिए हरेक कदम कानून-सम्मत उठाने पड़ेंगे। अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग किसी को नहीं करने देना चाहिए। ऐसे दंगे आर्थिक तरक्की को सीधे प्रभावित करते हैं। युवाओं को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त करना जरूरी है। खाली पड़े सरकारी पदों को तत्काल प्रभाव से भरने की जरूरत है। सेना में भर्ती भी जरूरी है, ताकि युवा शक्ति का देश की मजबूती में वाजिब उपयोग हो सके। किसने कितनी नौकरी का वादा किया था, यह बात भूल जाइए, लेकिन गौर कीजिए, एक अनुमान के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें अगर चाहें, तो करीब 60 लाख युवाओं को नौकरी मिल सकती है। जिस विकसित भारत का सपना हम देख रहे हैं, उसके लिए अमन-चैन बुनियादी जरूरत है। जो भी देश दुनिया में अपनी मेहनत से विकसित हुए हैं, उनके शासन-प्रशासन से हमें सीखना चाहिए। बेशक, आज विकास के जरूरी तत्वों-संसाधनों को जोड़े रखने के लिए सद्भाव भरे वचनों-वक्तव्यों की जरूरत है।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान


Rani Sahu

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