सम्पादकीय

छिछली राजनीति से कमजोर ही होगी आतंक के खिलाफ लड़ाई

Rani Sahu
4 July 2022 5:09 PM GMT
छिछली राजनीति से कमजोर ही होगी आतंक के खिलाफ लड़ाई
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उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों में से एक मोहम्मद रियाज की फोटो भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेताओं के साथ दिखने के आधार पर कांग्रेस ने जिस तरह यह अभियान छेड़ दिया है

सोर्स- जागरण

उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों में से एक मोहम्मद रियाज की फोटो भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेताओं के साथ दिखने के आधार पर कांग्रेस ने जिस तरह यह अभियान छेड़ दिया है कि वह भाजपा का सदस्य था, वह सस्ती राजनीति का प्रमाण ही है। समस्या केवल यह नहीं कि कन्हैयालाल के हत्यारे को भाजपा का सदस्य सिद्ध करने पर जोर दिया जा रहा है, बल्कि यह प्रश्न भी उछाला जा रहा है कि कहीं इसी कारण तो इस मामले की जांच आनन-फानन एनआइए को नहीं सौंप दी गई? स्पष्ट है कि कांग्रेस की ओर से यह कहने की चेष्टा की जा रही है कि एनआइए के जरिये जांच को प्रभावित करने या फिर इस तथाकथित सच को छिपाने की कोशिश की जाएगी कि कन्हैयालाल का हत्यारा भाजपा का सदस्य था। कुछ ऐसी ही कोशिश जम्मू-कश्मीर के रियासी में पकड़े गए लश्कर के आतंकी तालिब हुसैन को लेकर भी की जा रही है।

आतंकी तालिब ने पत्रकार के तौर पर सक्रिय होकर भाजपा नेताओं से संपर्क-संवाद बढ़ाया और फिर इंटरनेट मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ टिप्पणियां करके उनका भरोसा जीता। इसके बाद वह भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे के आइटी सेल का प्रभारी बन गया। कुछ समय बाद वह न केवल निष्क्रिय हो गया, बल्कि उसने भाजपा से त्यागपत्र भी दे दिया।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि तालिब किसी षड्यंत्र के तहत पत्रकार बनकर भाजपा में सक्रिय हुआ होगा। जम्मू-कश्मीर में यह कोई नई-अनोखी बात नहीं। यहां तो प्रशासन में भी आतंकियों के समर्थक मिलते रहे हैं। ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं, जिनमें पुलिस कर्मी सरकारी हथियार लेकर आतंकियों से जा मिले। यह सही है कि भाजपा को किसी को भी अपना सदस्य बनाने के पहले सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन यह बात तो अन्य दलों पर भी लागू होती है। आखिर यह कोई पहला मामला नहीं, जब किसी आपराधिक तत्व ने किसी दल में घुसपैठ न की हो या फिर सार्वजनिक कार्यक्रमों में नेताओं के साथ अपनी फोटो खिंचाकर खुद को उनके करीबी के तौर पर प्रचारित करने की कोशिश न की हो।
अपने देश में कोई भी किसी नेता के साथ फोटो खिंचाकर उसका दुरुपयोग कर सकता है। ऐसे तत्वों के आधार पर राजनीतिक दल विशेष को कठघरे में खड़ा करना और यहां तक कि उसे आतंकी घटनाओं में लिप्त बताना न केवल गैर जिम्मेदाराना, बल्कि छिछली राजनीति है। इस तरह की सस्ती राजनीति आतंक से लड़ाई को कमजोर करने का ही काम करेगी, जबकि आज आवश्यकता इस बात की है कि उदयपुर, अमरावती सरीखी दिल दहलाने और देश को आतंकित करने वाली घटनाओं की एक स्वर में निंदा की जाए।
Rani Sahu

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