सम्पादकीय

भुखमरी और कुपोषण से जंग: जरूरतमंदों की उम्मीद है यह 'रोटी बैंक'

Rani Sahu
24 Feb 2022 9:44 AM GMT
भुखमरी और कुपोषण से जंग: जरूरतमंदों की उम्मीद है यह रोटी बैंक
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साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी और कुपोषण के मामले में 117 मुल्कों की सूची में हमारा देश 102वें स्थान पर है

अर्चना किशोर

साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी और कुपोषण के मामले में 117 मुल्कों की सूची में हमारा देश 102वें स्थान पर है। वैश्विक भूख सूचकांक साल 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को कुल 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर रखा गया है। साल 2017 की नेशनल हेल्थ सर्वे (एनएचएस) की रिपोर्ट बताती है कि देश में 19 करोड़ लोग हर रात खाली पेट सोते हैं। भारत के लगभग सभी शहरों में सड़क किनारे आज भी कुछ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं। हर साल बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं ऐसे लोगों की गिनती को और भी बढ़ा देती हैं।
पिछले दो वर्षों से कोविड-19 ने भी लोगों की हालत खराब कर रखी है। लेकिन इस समाज में कुछ ऐसे गुमनाम लोग भी हैं, जो जरूरतमंदों के लिए रोटी उपलब्ध कराने का प्रयास करते रहते हैं। इन्हीं में एक हैं छपरा, बिहार के रविशंकर उपाध्याय, जो अपने संगठन 'रोटी बैंक, छपरा' के जरिये नि:स्वार्थ भाव से भूखे को भोजन कराते हैं। पेशे से शिक्षक रविशंकर क्षेत्र में समाज सेवी के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें यह विचार ऑल इंडिया रोटी बैंक ट्रस्ट, वाराणसी के संस्थापक दिवंगत किशोरकांत तिवारी और उनके सहयोगी रौशन पटेल के नेक कार्य को देखकर आया।
रोटी बैंक, छपरा साल 2018 से गरीब, असहाय और भूखे लोगों को भोजन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है। रविशंकर उपाध्याय बताते हैं कि फेसबुक पर ऑल इंडिया रोटी बैंक, वाराणसी के कार्यों को देखकर छपरा शहर में भी एक ऐसा ही संगठन शुरू करने का खयाल आया था। वह कहते हैं कि शुरुआत में उनकी टीम में चार-पांच सदस्य थे, जिनमें मुख्य रूप से उनके करीबी मित्र सत्येंद्र कुमार, अभय पांडेय, राम जन्म मांझी और बिपिन बिहारी शामिल थे। हर रोज रात नौ बजे भूखे लोगों का पेट भरने के लिए यह टीम शहर में निकल पड़ती है। गरीब व भूखे लोग हर रात नौ बजे इस टीम की राह भी देखते हैं।
रोटी बैंक, छपरा के महासचिव अभय पांडेय पेशे से रेलवे में ट्रैफिक इंस्पेक्टर हैं। वह बताते हैं, 'हमने भोजन के सात पैकेट से शुरुआत की थी, आज 200 पैकेट्स तक बांट रहे हैं। हम जब किसी को खाना देते हैं, तो उसके पैकेट लेने और खाने के अंदाज से लगता है कि हमने आज कोई बहुत अच्छा काम किया है।' एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि लॉकडाउन के समय जब राजेंद्र स्टेडियम में बाहर से बसें आती थीं, हम वहां भी खाना बांटते थे, तब वहां खाने की छीना-झपटी होती थी। एक बार एक अपेक्षाकृत समृद्ध परिवार का लड़का भी वहां नजर आया। जब हमने उससे पूछा कि खाना खाओगे? उसने कहा, 'भूख तो है, लेकिन खाना नहीं खा सकते, क्योंकि पैसे नहीं हैं।' फिर हमारी टीम ने उससे कहा, इसका ऋण किसी भूखे को खाना खिलाकर चुका सकते हो, इसके बाद उसने भी वहां भोजन किया।
सावन के महीने में जब बिहार बाढ़ की चपेट में आ जाता है, तब भी यह संगठन लोगों की मदद करने में अहम भूमिका निभाता है। टीम द्वारा पहले सर्वे किया जाता है, फिर चिह्नित इलाके में, जहां लोग बहुत लाचार हैं और बिल्कुल भी सक्षम नहीं हैं, उन तक रोटी बैंक, छपरा के सदस्य खाने का पैकेट पहुंचाते हैं। साल 2020 में जब कोविड-19 और बाढ़ ने वहां के लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी थी, तब उनकी जिंदगी वापस पटरी पर लाने के लिए रोटी बैंक, छपरा ने भी मदद की। लॉकडाउन में भी वृहत स्तर पर इस संगठन द्वारा जरूरतमंदों के बीच राशन व भोजन का वितरण किया गया था। साथ ही साथ सभी प्रवासियों के लिए भी भोजन की व्यवस्था की गई थी। फिलहाल इस टीम में और भी नए सदस्य जुड़ गए हैं और अब कुल 20 लोगों की टीम बन गई है।
उनमें से कुछ लोग नौकरी करते हैं, तो कुछ व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। ये सभी लोग अपने-अपने काम से समय निकाल कर समाज सेवा करते हैं। दरअसल रोटी बैंक केवल जरूरतमंद लोगों को सिर्फ भोजन ही नहीं उपलब्ध कराता है, बल्कि उन लोगों के लिए उम्मीद का एक टुकड़ा है, जो अपने और अपने परिवार के लिए एक वक्त का भोजन भी उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं।
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