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- बापू से फिफ्टी परसेंट...
रोज सुबह बीवी के उठने से पहले बीवी को चाय बनाने का सत्कर्म करने से पहले आज सुबह सुबह चाय बनाने को बीवी की चिंघाड़ के बदले वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे…भजन की मधुर आवाज कानों में पड़ी तो चौंके बिना न रह सका। आह! कितनी मर्मभेदी आवाज! आज मेरे पास तिल भर भी जो मर्म बचा होता तो सच्ची को यह आवाज उसे चीर कर रख देती। झूठ की दया से आज मेरे पास सब कुछ है, पर बस, एक मुआ यह मर्म ही नहीं है। फिर अपने को कोसते कोसते अपने आप ही सोचा, बीवी का वाणी और हृदय परिवर्तन हो गया क्या? वैसे अब सत्ता से लेकर वोटर तक सबका परिवर्तन तो हो रहा है, हृदय परिवर्तन नहीं। हृदय परिर्वतन तो किसी का तब हो जो किसी के पास हृदय हो। ध्यान से कान लगा सुना, आंखें मलते देखा तो बापू थे। अकेले ही। उनको बात बात पर अपने साथ रखने वालों में से कोई भी नहीं, पर फिर भी अपना भजन गा रहे थे पूरी धुन के साथ। सो उन्हें पहचानने में देर न लगी। नोट से लेकर हर राजनीतिक नट तक पर उनकी फोटो जो लगी हुई है। 'गुडमार्निंग बापू! कब आए?' मैंने आंखें मलते किचन की ओर लपकते पूछा तो वे बोले, 'अपनी जयंती पर आया हूं।' 'कब तक रुकने का इरादा है?' 'सब ठीक ठाक रहा तो पुण्यतिथि तक तो रुक ही लूंगा।' 'मतलब स्वर्ग से तीन चार महीने के प्रवास पर हो?' 'हां!' 'महामारी की तीसरी लहर के बीच आने का मकसद?' 'अपने सपनों को छोड़ा भारत देखने आया हूं अबके भी।