सम्पादकीय

बापू से फिफ्टी परसेंट मुलाकात

Gulabi
6 Oct 2021 4:47 AM GMT
बापू से फिफ्टी परसेंट मुलाकात
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‘महामारी की तीसरी लहर के बीच आने का मकसद?’ ‘अपने सपनों को छोड़ा भारत देखने आया हूं अबके भी।

रोज सुबह बीवी के उठने से पहले बीवी को चाय बनाने का सत्कर्म करने से पहले आज सुबह सुबह चाय बनाने को बीवी की चिंघाड़ के बदले वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे…भजन की मधुर आवाज कानों में पड़ी तो चौंके बिना न रह सका। आह! कितनी मर्मभेदी आवाज! आज मेरे पास तिल भर भी जो मर्म बचा होता तो सच्ची को यह आवाज उसे चीर कर रख देती। झूठ की दया से आज मेरे पास सब कुछ है, पर बस, एक मुआ यह मर्म ही नहीं है। फिर अपने को कोसते कोसते अपने आप ही सोचा, बीवी का वाणी और हृदय परिवर्तन हो गया क्या? वैसे अब सत्ता से लेकर वोटर तक सबका परिवर्तन तो हो रहा है, हृदय परिवर्तन नहीं। हृदय परिर्वतन तो किसी का तब हो जो किसी के पास हृदय हो। ध्यान से कान लगा सुना, आंखें मलते देखा तो बापू थे। अकेले ही। उनको बात बात पर अपने साथ रखने वालों में से कोई भी नहीं, पर फिर भी अपना भजन गा रहे थे पूरी धुन के साथ। सो उन्हें पहचानने में देर न लगी। नोट से लेकर हर राजनीतिक नट तक पर उनकी फोटो जो लगी हुई है। 'गुडमार्निंग बापू! कब आए?' मैंने आंखें मलते किचन की ओर लपकते पूछा तो वे बोले, 'अपनी जयंती पर आया हूं।' 'कब तक रुकने का इरादा है?' 'सब ठीक ठाक रहा तो पुण्यतिथि तक तो रुक ही लूंगा।' 'मतलब स्वर्ग से तीन चार महीने के प्रवास पर हो?' 'हां!' 'महामारी की तीसरी लहर के बीच आने का मकसद?' 'अपने सपनों को छोड़ा भारत देखने आया हूं अबके भी।


देखने आया हूं कि मेरे सपनों का भारत मेरे छोड़े से अबके और कितना आगे गया है?' उन्होंने अपना चश्मा ठीक करते कहा तो मैंने दो के बदले तीन जनों को पतीले में चाय को पानी, पानी में चीनी डालने से पहले बापू से पूछा, 'बापू! चीनी कैसी लेते हो?' 'जैसी लीदर डाल दें!' तो मैंने उनके और अपने हिसाब के बीच की चीनी पानी में डालते उनसे कहा, 'डांट माइंड बापू! तुम्हारी आंखों के सपनों का भारत बनाने का वक्त आज है ही किसके पास? सब अपने अपने सपनों का भारत बनाएं या तुम्हारी आंखों के सपनों का? एक साथ एक ही समय में दो दो आंखों के सपनों की चीज तो बन नहीं सकती न! इसलिए हम तुम्हारे सपनों वाली आंखों को बंद कर अपनी खुली आंखों के सपनों का भारत बना उसे नचाए जा रहे हैं, नचा नचाकर थकाए जा रहे हैं, थका थकाकर हड़काए जा रहे हैं। अब तो सारे सारे काम छोड़ सब अपने अपने सपनों का भारत बनाने में जुटे हैं बापू! अपना अपना भारत बनाने में इनकम भी अच्छी है।

आज कोई और कुछ बनाना चाहे या न, पर भारत जरूर बनाना चाहता है। आज कोई कुछ बनना चाहे या न, पर भारत मेकर जरूर बनना चाहता है। भारत बनाने का साझा प्रोग्राम आज है ही किसके पास? सच कहूं जो यों ही सबके सपनों का अपना अपना भारत बनता रहा तो मुझे तो डर है कि कल को सबका अपना अपना भारत न बन जाए। बापू! ये आते हैं तो उनके सपनों के भारत को सिरे से खारिज कर अपने सपनों का भारत बनाने को मिट्टी गारा घोलने में जुट जाते हैं। इन्हें छल बल से इनकी कुर्सी से च्युत कर वे आते हैं तो अपने सपनों का भारत बनाने को उनके घुले मिट्टी गारे को सिरे से खारिज कर अपना नया मिट्टी गारा घोलने लग जाते हैं, ओनली और ओनली अपने सपनों का भारत बनाने के लिए…।' मैं चाय भी बनाता रहा और उनसे बतियाता भी रहा। पर जितने को बीवी के सपनों की चाय बनकर तैयार हुई, मैंने दो कप के बदले तीन में डाल उनकी ओर उन्हें एक कप चाय पकड़ाने को हाथ बढ़ाया तो देखा, बापू वहां थे ही नहीं। कहां गए होंगे? आप के यहां तो नहीं आए हैं क्या? आए हों तो उनको कहना उनके हिस्से की चाय अभी भी कप में वैसे ही पड़ी है।

अशोक गौतम


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