सम्पादकीय

धड़ाम से गिरने वाले इमरान के बेतहाशा पतन के जिम्मेदार हैं खुद फिदायीन खान

Rani Sahu
11 April 2022 1:29 PM GMT
धड़ाम से गिरने वाले इमरान के बेतहाशा पतन के जिम्मेदार हैं खुद फिदायीन खान
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इमरान खान (Imran Khan) को उनका हक देना होगा और सिर्फ इसलिए नहीं कि वह एक हैंडसम शरारती व्यक्ति थे, जो पाकिस्तान (Pakistan) और उसकी राजनीति की खामियों का मजाक बनने से पहले ही अपने प्रशंसकों (Fans) की नजर में फकीर बन गए

संदीपन शर्मा

इमरान खान (Imran Khan) को उनका हक देना होगा और सिर्फ इसलिए नहीं कि वह एक हैंडसम शरारती व्यक्ति थे, जो पाकिस्तान (Pakistan) और उसकी राजनीति की खामियों का मजाक बनने से पहले ही अपने प्रशंसकों (Fans) की नजर में फकीर बन गए. कम से कम इसके लिए इमरान को श्रेय दें कि लगभग हर नेता की तरह उम्मीद से नाकामी के बीच इस सफर के दौरान उन्होंने लंबा वक्त गुजार लिया. लेकिन उनकी लोकप्रियता पांच दशकों तक बरकरार रही – भारतीय उपमहाद्वीप या यहां तक कि दुनिया में अब तक किसी से भी अधिक लंबे समय तक.
इन वर्षों के दौरान इमरान खान कई लोगों के लिए कई तरह से मायने रखते हैं. खासकर अपने साथी पठानों और महिलाओं के लिए. जब आप उनके बारे में सोचते हैं, तो कराची के उस चालाक जावेद मियांदाद (Javed Miandad) की एक बात दिमाग में आती है, जिसे भुला नहीं सकते. मियांदाद ने एक बार इमरान के विरोधी होने का सपना देखा. 70 के दशक के दौरान कप्तान इमरान खान के साथ उनका कई बार आमना-सामना हुआ. उन्होंने एक बार यह भी दावा किया था कि वर्ल्ड कप सेमीफाइनल से पहले खिलाड़ियों ने इमरान खान के खिलाफ विरोध प्रकट किया था. लेकिन, अंत में मियांदाद उनके प्रशंसक बन गए और उन्होंने उस आदमी के लिए एक बेजोड़ बात कही. उन्होंने कहा जब इमरान गेंद को अपने सामने रगड़ते हैं, तो महिलाएं उत्साहित हो जाती हैं और जब वह इसे पीठ पर मलते हैं, तो पठान उत्तेजित हो जाते हैं.
इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान ने 1991 में जीता वर्ल्ड कप
इमरान का कल्ट उस जमाने का है जो अब युगों जैसा दिखता है. उस बीते हुए युग में, ऑक्सफोर्ड में वे दिन के दौरान ऑउटस्विंगर्स और रात को फ्री-स्विंगिंग से सुर्खियां बटोर रहे थे. उनका आदर्श उनकी टी-शर्ट पर लिखी लाइन में झलकता था: बिग बॉयज़ प्ले एट नाईट. 1991 में, एक और टी-शर्ट ने उनकी रिवायत को आगे बढ़ाया. उनकी टीम वर्ल्ड कप से बाहर होने की कगार पर थी, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच में इमरान टॉस के लिए एक शर्ट पहने हुए दिखाई दिए, जिस पर टाइगर छपा हुआ था. उन्होंने कहा, "मैं चाहता हूं कि वे आक्रामक टाइगर की तरह खेलें." उनकी टीम ने मैच और वर्ल्ड कप जीता.
आइए इन बातों को ठीक-ठीक संदर्भ में सामने रखते हैं. शनिवार रात के अपने इस्तीफे तक इमरान ने अपने देश की मानसिकता पर 50 सालों तक राज किया. आगे के संदर्भ के लिए, ध्यान रखें कि उनका कद जुल्फिकार भुट्टो (Zulfikar Bhutto) के साथ बढ़ा, जनरल जिया उल हक (General Zia ul Haq) के दिनों में उन्हें ख्याति मिली और बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ के दिनों में वे लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचे, और तीसरी पीढ़ी के भुट्टो और शरीफ के दिनों में वे दोबारा लौटे. पाकिस्तान जैसे देश में इतने लंबे समय तक नायक बने रहना (भले ही अब उनका पतन हो चुका है), एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.
बेशक भाग्य ने अपनी भूमिका निभाई. यदि 1991 के वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ बारिश ने पाकिस्तान को नहीं बचाया होता, तो उनकी ख्याति 90 के दशक में ही दफन हो जाती. अगर इमरान की टीम हार जाती नज़ारा कुछ और होता, लेकिन बारिश ने टीम को एक पॉइंट अर्जित करने में मदद की जिससे वे क्वालीफाई करने में सफल रहे. अब जेनेटिक्स की बात करें तो दरअसल यह एक बहस का विषय है कि क्या वाकई इमरान के बारे में सोचकर लड़कियां, पठान और मतदाता इतने उत्साहित होते, अगर वह उनकी सूरत ऐसी नहीं होती या उनकी आवाज में वह जादू नहीं होता – जिसे कई लोग उनींदापन और लुभावनापन नहीं होता.
किस्मत और जेनेटिक्स के साथ इमरान खान ने काफी लंबा सफर तय किया
लेकिन, इमरान खान ने अपनी किस्मत और जेनेटिक्स के साथ काफी लंबा सफर तय कर लिया है. अपने निकाहों के साथ प्रयोग – इस सफर में वे हर एक कदम पर उदारवादी से जादू-टोने वाले रूढ़िवादी साबित होते चले गए – ने उन्हें मजाक का विषय बना दिया. कम से कम लड़कियां इससे उत्साहित नहीं थीं और राजनीति के साथ भी ऐसे ही ट्रायल एंड रिजेक्ट के रवैये ने पाकिस्तान को मजाक का किरदार बना दिया.
मतदाताओं को चांद का वादा करने के बाद इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. शायद, उन्होंने सोचा होगा कि राजनीति रोमांस के समान है. उनकी प्रतिज्ञाओं की सूची अब काफी हास्यास्पद लगती है: कोई भ्रष्टाचार नहीं, पाकिस्तान पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना होगा, विदेशों में जमा धन पाकिस्तान में वापस आएंगे, नौकरियों की भरमार होगी, कोई कर्ज नहीं होगा. उन्होंने एक नया पाकिस्तान बनाने का वादा भी किया था कि लोग दुनियाभर से यहां तक कि स्विट्जरलैंड से भी उनके देश आना चाहेंगे.
किसी बाहरी व्यक्ति, खासतौर पर एक भारतीय के लिए, ये वादे मुंगेरीलाल के सपनों की तरह पढ़े जाते हैं. लेकिन, उन वजहों से जिसका आकलन जरूरी है, पाकिस्तान के लोग उनके बहवाक में आ गए, जैसे कि वे उनके आउटस्विंगर की चाल में फंस गए हों. बेशक, एक कारण यह है कि पाकिस्तान अपनी सेना और राजनीतिक घरानों से इतना निराश है कि वह किसी तीसरे की लगभग हर बात पर यकीन कर लेता है. वे लफ्फाजी और कॉमेडी में भी उम्मीद की तलाश करने लगते हैं.
अपने वादों पर खरे नहीं उतरे इमरान खान
लेकिन इस अविश्वास को हमेशा के लिए दरकिनार नहीं किया जा सकता है. दुर्भाग्य से इमरान विफल रहे, क्योंकि वे अपने वादों पर खरे नहीं उतरे, जो भरोसा दिया उससे ठीक उल्टा किया. विपक्ष और सेना के साथ ऐसा व्यवहार किया जैसा वे कभी गेंदबाजों से करते थे, साजिशों की कहानियों को हवा देने में वे अपनी पूर्व-पत्नी रेहम खान से प्रतिस्पर्धा करते नजर आए. आमतौर पर लोगों को यही एहसास कराया कि नया पाकिस्तान अगर किसी एक चीज का सपना देख सकता है तो वो है अपने पीएम के लिए हर साल एक बेगम का सपना.
इमरान के जादू का अब लगभग अंत हो चुका है. विडंबना यह है कि ऐसा खुद उसी आदमी के फिदायीन हमले में हुआ है. कई-कई महीने पहले, भारत ने उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया था. फिर अमेरिका ने उनकी उपेक्षा की जब राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उनसे बात तक करने की जहमत नहीं उठाई. केवल चीनियों ने उन्हें कुछ महत्व दिया, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपने देश को लगभग अपने उत्तरी पड़ोसी का अंग ही बना दिया. अब तो उनके अपने देश ने भी उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है.

धड़ाम से गिरने वाले बेचारे Humpty Dumpty का हम बेकार ही मजाक उड़ाते हैं. इस कविता को फिर से लिखे जाने की जरूरत है, शीर्षक होना चाहिए: इमरान की शख्सियत का जुनून खत्म.


Rani Sahu

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