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Written by जनसत्ता: घरेलू सहायकों-सहायिकाओं के प्रति आज भी बहुत सारे लोगों का व्यवहार सामंती जमाने वाला ही देखा जाता है, जब उन्हें नौकर मान कर छोटी-छोटी बातों पर प्रताड़ित करना अपना अधिकार समझा जाता था। मगर यह मानसिकता जब पढ़े-लिखे, अच्छे पदों पर काम करने वाले, समाज के संभ्रांत माने जाने वाले लोगों में प्रकट होती है, तो समाज के सभ्य होने पर स्वाभाविक ही सवाल उठने लगता है।
ताजा घटना दिल्ली के एक संभ्रांत माने जाने वाले इलाके की है, जिसमें हवाई जहाज उड़ाने वाली एक महिला और एक निजी विमान कंपनी में कर्मी उसके पति के अपनी घरेलू सहायिका को पीटने का तथ्य उजागर हुआ। वे मामूली बातों पर उसे पीटा करते थे। जब यह व्यवहार अपनी हदें पार गया और घरेलू सहायिका के रिश्तेदारों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने मालिक पति-पत्नी को सरेआम पीटा।
ऐसी कई घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं। कुछ में तो मालिक क्रूरता की इस हद तक पहुंचते देखे गए, जब उन्होंने किसी मामूली गलती पर अपने घरेलू सहायक को सिगरेट से दाग दिया। गुरुग्राम की एक रिहाइशी इमारत में कुछ अरब नागरिक लंबे समय तक अपनी सहायिका का यौन शोषण करते और उसे मारते-पीटते रहे।
घरेलू सहायक लोग इसलिए रखते हैं कि वे उनके कामकाज में मदद करेंगे। मगर बहुत सारे लोग खुद को उनका मालिक समझ कर उन्हें प्रताड़ित करने का जैसे हक हासिल कर लेते हैं। कई लोग तो घरेलू सहायक अपने गांव से लाते हैं या किसी परिचित के जरिए उन्हें मंगा लेते हैं। उनका पुलिस में पंजीकरण भी नहीं कराते, जबकि नियम के मुताबिक बिना पंजीकरण के घरेलू सहायक नहीं रखा जाना चाहिए।
कई लोग घरेलू सहायक उपलब्ध कराने वाली एजंसियों के माध्यम से उन्हें काम पर रखते हैं। ऐसे सहायकों के पास एक सहारा होता है कि वे अपने खिलाफ होने वाली ज्यादतियों की शिकायत संबंधित एजंसी से कर सकते हैं। बहुत सारी ऐसी एजंसियां घरेलू सहायकों को प्रशिक्षण देकर उन्हें घरों में काम कर लगाती हैं, वे उनके बारे में जानकारी भी लेती रहती हैं।
मगर बहुत सारी एजंसियां अपना कमीशन पा जाने के बाद जैसे उन घरेलू सहायकों की सुध लेना ही भूल जाती हैं। अगर कभी कोई सहायक अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार की शिकायत करता भी है, तो वे उसे समझा-बुझा कर सहन करने की सीख देतीं या फिर चुप्पी साध जाती हैं। ऐसे में घरेलू सहायक यातना सहने को मजबूर होते हैं।
देश के कई हिस्सों में, जहां अतिशय गरीबी है, वहां से लड़के-लड़कियां घरेलू सहायक के रूप में काम करने के मकसद से महानगरों में आ जाते हैं। आदिवासी इलाकों से ऐसी भी शिकायतें बहुतायत में हैं कि कुछ एजंट उनकी लड़कियों को काम दिलाने के नाम पर ले आते हैं और फिर उन्हें घरेलू सहायक उपलब्ध कराने वाली एजंसियों के हवाले करके गायब हो जाते हैं।
ऐसे में बहुत सारी लड़कियों के बारे में उनके माता-पिता को पता भी नहीं चल पाता कि वे कहां हैं, क्या काम कर रही हैं। ऐसी लड़कियां अक्सर शोषण का शिकार होती हैं। दिल्ली में घरेलू सहायक उपलब्ध कराने वाली एजंसियां हर मुहल्ले में मिल जाएंगी, मगर उन पर नजर रखने का कोई तंत्र आज तक नहीं बन पाया है। जब तक घरेलू सहायक रखने को लेकर कड़े नियम-कानून नहीं बनते, कोई पुख्ता तंत्र विकसित नहीं होता, तब तक उनके साथ ऐसी घटनाओं पर रोक लगने का दावा नहीं किया जा सकता।