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- त्योहार तोड़ते हैं...
विकास सारस्वत। पिछले कई वर्षों से कोई भी हिंदू उत्सव उदारवादियों की झिड़की, महानुभावों के ज्ञान और न्यायिक दखलअंदाजी के बिना संपन्न नहीं हो पाया है। उनकी नजर में यदि करवा चौथ और रक्षाबंधन पितृसत्तात्मक व्यवस्था का रूप हैं तो होली पानी की बर्बादी। इसी तरह इस वर्ग की नजर में जल्लीकट्टू पशुओं से क्रूरता है तो गणोश चतुर्थी पर्यावरण पर आघात। मकर संक्रांति हो या दुर्गा पूजा, जन्माष्टमी हो या शिवरात्रि, इनके लिए हर त्योहार हिंदुओं में लज्जा भाव उत्पन्न करने का अवसर है। हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार होने के कारण दीपावली विशेष रूप से निशाने पर रहती है। अन्य वर्षों की तरह कहीं शासनादेश तो कहीं न्यायिक आदेशों के द्वारा पटाखे प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। साथ ही खिलाड़ियों, अभिनेताओं और तमाम विज्ञापनों के माध्यम से दीपावली जिम्मेदारी से मनाने के संदेशों का तांता लगा है। इन संदेशों का निहित अर्थ यह है कि हिंदू समाज अपने उत्सवों को लेकर गैर जिम्मेदार और अपरिपक्व है।