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- पर्यटन में उत्सव
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By: divyahimachal
उत्सव पर्यटन की थाप पर मणिमहेश यात्रा ने अगर इस बार तीन लाख सैलानियों की पदचाप सुनी है, तो इस मंजिल के कदम पहचाने जाने चाहिएं। बेशक श्रद्धा के फलक पर मणिमहेश यात्रा एक प्राचीन परंपरा को अंगीकार करती है, लेकिन अब यह एक साहसिक अनुभव है जो साल दर साल न केवल यात्री सुविधाओं में इजाफा चाहता है, बल्कि ढांचागत सुधार की मांग भी करता है। जाहिर है अब यात्रा, उत्सव बन रही है, तो पर्यटन के तौर-तरीके भी बदलेंगे। यह इसलिए भी कि इसी दौर में जब राधाष्टमी की डुबकियों का गणित हो रहा था, तो लगभग सारा हिमाचल गणेशोत्सव की मांग बढ़ा रहा था। धार्मिक परंपराओं से सैलानी उत्सव तक के गठजोड़ में एक बड़ा वर्ग, बाजार व आर्थिक सरोकार पैदा हो रहा है। उदाहरण के लिए मणिमहेश या इसी तरह की कठिन यात्राएं हिमाचल के साहसिक पर्यटन की टोह भी लेती हैं। कई ट्रैकिंग टूअर दरअसल मणिमहेश जैसी यात्राओं के कारण खासी चर्चाओं में आते हैं और इस वजह से युवा पर्यटक बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस तरह से हिमाचल में पर्यटन की एक उत्सव परंपरा आगे बढ़ रही है, जहां सामाजिक जवाबदेही भी सुनिश्चित है।
मणिमहेश यात्रा का ही उल्लेख करें, तो तमाम कठिन रास्तों के पड़ाव पर इंतजार कर रहे लंगर आखिर एक ऐसी तहजीब का आश्वासन हैं जो आने-जाने वालों के लिए सेवाभाव लिए, सारे उत्सव को श्रेष्ठ बना देते हैं। विडंबना यह है कि वर्षों पुरानी मणिमहेश यात्रा को अमरनाथ यात्रा जैसा दर्जा नहीं मिल रहा। यह इसलिए भी कि इस दिशा में प्रयास ही नहीं हुए वरना चंबा-भरमौर-मणिमहेश पर्यटन सर्किट बनाकर यात्रा का वार्षिक कैलेंडर पुष्ट किया जाता। जो प्रदेश मंडी में शिवधाम जैसे संकल्प पर दो-ढाई सौ करोड़ की परियोजना से श्रद्धा की नई डेस्टिनेशन बना रहा हो, उसके माध्यम से भरमौर से मणिमहेश तक की यात्रा को एक परियोजना के तहत परिमार्जित करने की दरकार सदा रहेगी। इसी के साथ गणेशोत्सव को मात्र सामाजिक-सांस्कृतिक रौनक समझने के बजाय, इसे पर्यटन उत्सव के तौर पर देखना होगा। अभी तक प्रदेश में गणेशोत्सव को पर्यटन के खाके में नहीं रखा गया है, लेकिन जिस सांस्कृतिक, सामाजिक व व्यापारिक उजास में गणेश जी की मूर्तियां घर-घर या सार्वजनिक पंडाल तक पहुंच रही हैं, उससे कई त्योहार-उत्सव गांव-गांव, शहर-शहर उभर रहे हैं।
गणेशोत्सव से उभरी संभावनाएं और इसके निष्कर्ष से भविष्य की आर्थिक दिशा का बोध करें, तो कई कालेजों में कला छात्रों को व्यवसाय से जोड़ा जा सकता है। मूर्ति कला सीख रहे छात्रों के अलावा वोकेशनल स्टडीज के दायरे में वार्षिक तौर पर गणेशोत्सव की साधना में शिक्षार्थी, न केवल कमा सकेंगे, बल्कि कला क्षेत्र की संभावनाओं का माथा ऊंचा कर देंगे। पूरे प्रदेश का हिसाब लगाएं, तो इसी वर्ष चालीस से पचास हजार छोटी से बड़ी, गणेश जी की मूर्तियों का बाजार पैदा हुआ। इनमें से हजार से एक से डेढ़ लाख तक की मूर्तियों की बिक्री का सीधा लाभ राजस्थान के कारीगरों ने उठाया, जबकि पूरा धंधा दस से पंद्रह करोड़ का हो गया। यानी कलाकारों के लिए ऐसे उत्सव का महत्त्व बढ़ाने के लिए प्रदेश के भाषा-संस्कृति विभाग, कालेज व विश्वविद्यालयों के कला विभागों को कार्य करना होगा। गणेशोत्सव के साथ सांस्कृतिक समारोहों के पंडाल सज रहे हैं और इनकी रौनक के बीच व्यापारिक मांग भी बढ़ रही है। ऐसे में एक दशक का अध्ययन बता सकता है कि हिमाचल में सांस्कृतिक व धार्मिक मनोरंजन हर गांव से शहर तक नई संभावनाएं पैदा कर रहा है। बहरहाल प्रदेश के भाषा-संस्कृति विभाग के लिए इसकी कोई अहमियत दिखाई नहीं दी, लेकिन वक्त के साथ पर्यटन परियोजना के तहत गणेश विसर्जन के लिए कुछ घाटों का निर्माण करना होगा ताकि उत्सव के साथ मानवीय सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हो सकें।
Rani Sahu
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