सम्पादकीय

उत्सव-संस्कृति: भगवान राम का विजय प्रयाण दिवस है दशहरा

Gulabi
25 Oct 2020 2:36 PM GMT
उत्सव-संस्कृति: भगवान राम का विजय प्रयाण दिवस है दशहरा
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आश्विन अर्थात क्वार मास के शुक्ल पक्ष की दशमी देश में एक बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाई जाती है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आश्विन अर्थात क्वार मास के शुक्ल पक्ष की दशमी देश में एक बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाई जाती है, जिसे विजयादशमी या दशहरा कहते हैं। लोक मान्यतानुसार इस तिथि को श्रीराम द्वारा लंकापति रावण का वध किया गया था, जिसने उनकी पत्नी सीता जी का हरण कर अपने उद्यान अशोक वाटिका में रखा था। आइये देखें, प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इस तिथि और रावण वध के बीच क्या सह-संबंध हैं?

आदि कवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण श्रीराम की समकालीन रचना है। उसके अनुसार सीता जी की खोज करने वाले वानर यूथों की सभी दिशाओं में विदाई आश्विन मास के अंत में हुई थी और सभी को एक मास का समय वापसी के लिए दिया गया था। दक्षिण दिशा की ओर भेजे गए दल के साथ अंगद, हनुमान, जामवंत भी थे। हनुमान जी को श्रीराम ने पहचान के लिए अपनी अंगूठी दी थी। उत्तर, पूर्व और पश्चिम की दिशाओं की ओर गए खोजी वानर यूथ निर्धारित अवधि में निराश लौट आए थे, किंतु दक्षिण की ओर गए वानर डटे रहे। उन्हें इतना समय लग गया कि शिशिर ऋतु का अंत और बसंत ऋतु की आहट होने लगी। यानी फाल्गुन का उत्तरार्ध आ गया।

इस बीच उन्हें संपाति गिद्ध मिले और सीता जी का पता बताया। फिर समुद्र लंघन, सीता खोज, लंकादहन, सेतुबंधन आदि की घटनाएं हुईं। अत: युद्धारंभ चैत्र में ही हो पाया होगा! युद्ध छह-सात महीने चलने का सवाल ही नहीं है। हां, प्रयाण ह्यविजयह्ण मुहूर्त में किया, जो प्रतिदिन 11.48 बजे से 12.12 बजे तक होता है, जिसे ह्यअभिजितह्ण भी कहते हैं। यह मुहूर्त विजय/सफलता सुनिश्चित करता है। उस समय चंद्रमा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में थे।

हनुमन्नाटक, देवी भागवत और कृत्तिवास रामायण के अनुसार राम ने आश्विन शुक्ल दशमी को लंका की ओर आक्रमण के लिए प्रस्थान किया। अथ विजयदशम्यामश्विने शुक्ल पक्षे, दशमुखनिधनाय प्रस्थितो रामचंद्र:। (हनुमन्नाटक 7/2) देवी भागवत के अनुसार नारद मुनि ने श्रीराम को शारदीय नवरात्र व्रत रखने का परामर्श दिया, जिसका उन्होंने पालन किया। नौ दिन व्रत रखकर दसवें दिन पारण एवं दान कर देवी विजया को प्रसन्न कर विजय हेतु प्रयाण किया।

कृत्तिवास रामायण कहती है-दशमी ते पूजा करि विसर्जया महेश्वरी, संग्रामे चलिल रघुपति। (लंकाकांड)

स्कंद पुराण/ब्रह खंड के अनुसार यह युद्ध 87 दिनों तक चला, जिसमें अलग-अलग कारणों से अंतर दे-देकर 15 दिन युद्ध विराम रहा। ठोस युद्ध 72 दिनों तक हुआ। क्वार की शुक्ल पक्ष दशमी को राम शिव लिंगार्चन करके पर्वत कंदरा से बाहर आए। सुग्रीव के सहयोग से एक मास सैन्य उद्योग किया। अगहन कृष्ण अष्टमी को सेना लंका की ओर चली।

सात दिन में समुद्र तट पर पहुंचकर विविध तैयारियां की गईं। सेतु निर्माण में चार दिन लगे। पौष शुक्ल चतुर्दशी को राम का शिविर सुबेल पर्वत पर लग गया। रावण वध चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को और अंत्येष्टि अगले दिन अमावस्या को हुई। प्रतिपदा को राम रणभूमि में ही रहे। अगले दिन विभीषण का राज्याभिषेक हुआ। राम की अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक बैशाख शुक्ल सप्तमी को संपन्न हुआ। कुल मिलाकर रावण वध आश्विन शुक्ल दशमी को नहीं हुआ। अधिकतम यह विजय प्रयाण दिवस कहा जा सकता है। (पूर्व प्रशासनिक अधिकारी)

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