सम्पादकीय

अराजकता के पांव

Gulabi
17 Oct 2020 1:35 AM GMT
अराजकता के पांव
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उत्तर प्रदेश में जैसी आपराधिक घटनाएं लगातार आ रही हैं,उससे यही लगता है कि राज्य में अपराधी तत्त्वों का हौसला उफान पर है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तर प्रदेश में जैसी आपराधिक घटनाएं लगातार आ रही हैं, उससे यही लगता है कि राज्य में अपराधी तत्त्वों का हौसला उफान पर है और उनके भीतर पुलिस का कोई खौफ नहीं रह गया है। अब हालत यह सामने आ रही है कि पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में कोई नेता अपनी मनमानी और गुंडागर्दी को अंजाम दे रहा है और पुलिस मुंह ताकती रह जाती है।

ताजा घटना बलिया जिले के दुर्जनपुर गांव की है, जहां दो दुकानों को लेकर हुए विवाद में एसडीएम और अन्य पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में एक भाजपा नेता ने एक स्थानीय युवक की गोली मार कर हत्या कर दी। वह मौके से फरार भी हो गया था। सवाल है कि इस घटना को कैसे देखा जाएगा! आखिर उसके भीतर यह हिम्मत कहां से आई कि पुलिस और उच्च अधिकारियों के वहां मौजूद होने के बावजूद उसे गोली चलाने में कोई हिचक नहीं हुई? भाजपा अब यह कह सकती है कि उससे पार्टी का कोई वास्ता नहीं है, लेकिन ऐसी घटनाएं क्या प्रत्यक्ष या परोक्ष संरक्षण से मिली निश्चिंतता के बिना संभव हो पाती हैं?

इसके अलावा, राज्य में पिछले कुछ समय से लगातार महिलाओं के खिलाफ अपराध एक तरह से बेलगाम होते जा रहे हैं। हाथरस में एक दलित युवती के साथ हुई बर्बरता के बाद देश भर में पैदा हुए आक्रोश के बीच राज्य सरकार और पुलिस को कठघरे में खड़ा होना पड़ा है। कम से कम इसके बाद पुलिस और प्रशासन इस तरह सक्रिय होती कि अपराधी मानस वाले लोगों के भीतर खौफ पैदा होता और वे किसी अपराध को अंजाम देने से डरते। लेकिन अब भी बलात्कार और हत्या की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।

खासतौर पर दलितों और कमजोर तबकों के खिलाफ अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। हाल ही में अपने घर में सो रही तीन दलित बहनों पर तेजाब फेंक दिया गया। अब बाराबांकी में भी बुधवार को एक दलित लड़की खेत में धान काटने गई और वहीं कुछ बदमाशों ने उसके हाथ बांध दिए, बलात्कार किया और नृशंस तरीके से हत्या कर दी। लड़की के परिजनों का आरोप है कि शुरुआत से ही सब कुछ साफ होने के बावजूद पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की। लेकिन गुरुवार को जब पोस्टमार्टम में बलात्कार के बाद हत्या करने की पुष्टि हुई तब जाकर पुलिस ने बलात्कार से संबंधित धाराएं जोड़ीं।

विडंबना यह है कि जिन मामलों में पुलिस को तुरंत सक्रिय होकर कार्रवाई करनी चाहिए, अपराधियों को पकड़ने का अभियान चलाना चाहिए, पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए, वहीं उसका रवैया ऐसा रहता है मानो वह किसी तरह मामले से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है। उसकी इस उदासीनता से ऐसा संदेश जाता है कि वह अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही है। सवाल है कि कमजोर तबकों के खिलाफ अपराधों को लेकर पुलिस और प्रशासन का रुख पीड़ितों के प्रति इस कदर उपेक्षा से भरा हुआ या फिर आरोपियों के पक्ष में झुका हुआ क्यों दिखता है!

आखिर किन वजहों से उसके व्यवहार में ऐसी बेरुखी दिखती है? उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने से पहले भाजपा की ओर से सबसे बड़ा वादा यही किया गया था कि वह राज्य में अपराधियों और अपराध का खात्मा करेगी। लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान अपराधों का रिकॉर्ड देख कर इस दावे की हकीकत समझ में आती है। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश को महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में सबसे खतरनाक राज्य माना जाने लगा है! यह सवाल उठा है कि क्या राज्य में कानून-व्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण खत्म होता जा रहा है!

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