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हिमाचल के चिकित्सा क्षेत्र के लिए यह उपलब्धि काफी अहमियत रखती है
divyahimachal.
हिमाचल के चिकित्सा क्षेत्र के लिए यह उपलब्धि काफी अहमियत रखती है, क्योंकि कोविड काल में कई प्रतिष्ठित अस्पताल भी अपनी निम्र भूमिका के लिए प्रश्नांकित हुए हैं। शिमला स्थित आईजीएमसी में जागते हुए व्यक्ति के दिमाग का आपरेशन हुआ और इस तरह सुखद एहसास के पल, सरकारी मेडिकल कालेज के इतिहास को फिर से लिख गए। आठ डाक्टरों का दल नई तकनीक के जरिए चिकित्सा विज्ञान का सफल सूत्रधार बना और हिमाचल के लिए यह फख्र के साथ-साथ विश्वास का माहौल भी पैदा कर गया। हालांकि कहानियां हर बार सरकारी संस्थानों में खलनायक ढूंढती हैं या प्राय: मरीजों के अनुभव अस्पताल की दीवारों से टकराकर घायलावस्था में ही रहते हैं।
कोविड काल ने आशा वर्कर जैसे अस्थायी व मामूली से पद की गरिमा को ऊंचा किया या वार्डों के भीतर पैरामेडिकल स्टाफ ने सांसें बचाईं, लेकिन किस्सों के किरदार में दक्ष या वरिष्ठ डाक्टरों द्वारा दर्शायी गई उपेक्षा से सारी व्यवस्था ही असहाय व लचर रही है। चिकित्सा सेवाओं के लिए कोविड काल एक मानक की तरह असंवेदनशीलता माप गया है और इसीलिए आज भी सरकारी अस्पताल की पर्चियां मरीज के सामने कई किंतु-परंतु पैदा करती हैं। कोविड उपचार घर की दहलीज के भीतर आत्मविश्वास से जिंदगी के एहसास से जुड़ा रहता है, लेकिन घटते मरीजों के बावजूद कोविड अस्पतालों के अनुभव में बिछुड़ते रिश्तों की सिसकियां सुनी जा सकती हैं। ऐसे में क्या हम कोविड के खिलाफ हिमाचली डाक्टरों की प्रतिष्ठित सेवाओं का सुख हासिल कर पाए या कोविड वॉरियर जैसी घोषणाओं में चिकित्सा सेवाओं का वास्तविक मूल्यांकन हुआ। चिकित्सा संस्थानों के वर्तमान स्वरूप में राष्ट्रीय औसत से बेहतर गिनती हिमाचल कर सकता है, लेकिन बेहतर संस्थानों की गिनती में प्रदेश को अभी कई मंजिलें हासिल करनी हैं। इमारतों के घनत्व के बीच मेडिकल कालेजों का वर्तमान, अतीत के जिला अस्पतालों से बेहतर हो पाया है क्या। आश्चर्य यह कि मेडिकल कालेज तक सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे उपकरणों को तरस रहे हैं और यह भी एक तथ्य है कि बढ़ते सरकारी अस्पतालों के बावजूद हिमाचल के चिकित्सा क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ रहा है। दूसरी ओर सरकारी ढांचा भी आउटसोर्स सेवाओं पर केंद्रित होकर निजी क्षेत्र के आईनों को विस्तार दे रहा है।
हकीकत भी यही है कि चिकित्सा सलाह के नाम पर सरकारी पर्चियों पर निजी अस्पतालों के नाम प्रस्तावित किए जा रहे हैं। बहरहाल ऐसी अवधारणा के बीच अगर आईजीएमसी अपनी उपलब्धियों के सन्नाटे तोड़ता है, तो यह सरकारी संस्थाओं की प्रासंगिकता को नए मुकाम तक पहुंचाना है, क्योंकि गांव-देहात की जनता आज भी सरकारी मेडिकल कालेजों को ही तरजीह देती है। इसमें दो राय नहीं कि अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल का चिकित्सा ढांचा सुदृढ़ हुआ है, लेकिन अभी बाहरी राज्यों के लिए रैफरल सिस्टम रुका नहीं। हिमाचल की चिकित्सकीय जरूरतों को समझते हुए मेडिकल कालेज व मेडिकल यूनिवर्सिटी आगे चल कर व्यवस्था सुधार सकते हैं, लेकिन इसी के साथ प्रदेश के करीब पचास शहरों को सुपर स्पेशियलिटी सिटी अस्पताल चाहिएं, जिन्हें पीपीपी मोड पर चलाया जा सकता है। इसके अलावा कम से कम दस जिला अस्पतालों को किसी रोग विशेष का राज्य स्तरीय अस्पताल बना देना चाहिए ताकि चिकित्सकीय प्रतिबद्धता, अनुसंधान और जनता के विश्वास पर आधारित सेवाओं का विस्तार हो सके। ऐसे राज्य स्तरीय अस्पताल मेडिकल टूरिज्म की दिशा में अपना औचित्य निभा सकते हैं तथा इमारतों के समूहों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी।
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