सम्पादकीय

राजनीतिक हिंसा का डर या मलाई की मजबूरी, TMC से BJP और वापस टीएमसी में जाने वाले नेताओं की इनसाइड स्टोरी

Gulabi
25 May 2021 6:12 AM GMT
राजनीतिक हिंसा का डर या मलाई की मजबूरी, TMC से BJP और वापस टीएमसी में जाने वाले नेताओं की इनसाइड स्टोरी
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राजनीति (Politics) में कुछ भी स्थिर नहीं होता है, सब कुछ बदलता रहता है

संयम श्रीवास्तव। राजनीति (Politics) में कुछ भी स्थिर नहीं होता है, सब कुछ बदलता रहता है. पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. विधानसभा चुनाव परिणामों (Assembly Election Result) से पहले जो नेता तृणमूल कांग्रेस (TMC) छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का हिस्सा थे और टीएमसी को भर-भर के कोस रहे थे, परिणाम आने के बाद वही नेता अब तृणमूल कांग्रेस में वापसी को लेकर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) से गुहार लगा रहे हैं. इन नेताओं में सोनाली गुहा (Sonali Guha), सरला मुर्मू (Sarla Murmu) और अमोल आचार्य (Amol Acharya) जैसे बड़े नाम शामिल हैं. इनके अलावा कई और नेता और कार्यकर्ता हैं जो खुले तौर पर भले ही तृणमूल कांग्रेस में जाने की बात ना कर रहे हों, लेकिन अंदर ही अंदर वह भी यही चाहते हैं.


दरअसल उन्हें पता है कि अब पश्चिम बंगाल में अगले 5 सालों तक तृणमूल कांग्रेस का ही राज रहने वाला है, ऐसे में उन नेताओं के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन की थी. क्योंकि चुनाव परिणाम आने के बाद से ही जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा की खबरें आई हैं उसे देख कर शायद टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए नेता डर गए हैं और यही वजह है कि वह चाहते हैं कि उन्हें फिर से दीदी की शरण मिल जाए. जिससे आने वाले 5 सालों तक उनकी राजनीति और जिंदगी दोनों बची रहे.

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के लिए उसके नेताओं का यूं तृणमूल कांग्रेस में जाना सही नहीं है, क्योंकि सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी का एक बड़ा नेतृत्व तृणमूल कांग्रेस से आए नेताओं द्वारा ही खड़ा किया गया है. ऐसे में अगर कुछ बड़े नेता वापस टीएमसी में जाने की बात करते हैं तो जाहिर सी बात है इससे कार्यकर्ताओं के मनोबल पर बुरा असर पड़ेगा और आम कार्यकर्ता भी भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस की ओर फिर से रुख कर सकते हैं. इसका नुकसान बीजेपी को आने वाले लोकसभा चुनाव में हो सकता है, क्योंकि बीजेपी लोकसभा चुनाव में ही ममता बनर्जी को करारी शिकस्त देकर अपने माथे पर लगे हार का कलंक धुलना चाहती है.

ऑपरेशन ग्रास फ्लॉवर से कैसे बचेगी बीजेपी
ग्रास फ्लॉवर यानि घास पर खिले फूल, टीएमसी की निशानी. भारतीय जनता पार्टी के लिए इन दिनों यह फूल बड़ी दिक्कत बनते जा रहे हैं. 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी ने अपना पूरा जोर लगा दिया था, यही वजह थी की उस दौरान टीएमसी के कई बड़े नेता जिन्हें ममता के बाद तृणमूल कांग्रेस में सबसे ऊपर माना जाता था, वह भी टीएमसी छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. इनमें शुभेंदु अधिकारी शरीखे के कई बड़े नेता थे. लेकिन 2 मई को जब विधानसभा के नतीजे आए और भारतीय जनता पार्टी को केवल 77 सीटों पर ही जीत मिली, तब उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया. दरअसल बंगाल में इस बार जो नेता तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे, उनके लिए करो या मरो की स्थिति थी. क्योंकि उन्हें पता था कि अगर भारतीय जनता पार्टी हारती है तो ममता बनर्जी कभी भी उन्हें क्षमा नहीं करेंगी.

विधानसभा चुनाव के दौरान जब इन नेताओं ने टीएमसी छोड़ बीजेपी ज्वॉइन की थी तब भी ममता बनर्जी ने इन्हें गद्दार करार दिया था. पश्चिम बंगाल की जनता ने भी इन्हें एक गद्दार की तरह ही देखा, यही वजह है कि टीएमसी से छोड़कर बीजेपी में कई नेता शामिल हुए थे, लेकिन उनमें से जीत सिर्फ छह नेताओं को ही मिली. भारतीय जनता पार्टी आज भले ही पश्चिम बंगाल सरकार में नहीं है, लेकिन वह बंगाल में एक बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में खड़ी है. हालांकि अगर उसके नेता और विधायक ऐसे ही बीजेपी छोड़ तृणमूल कांग्रेस ज्वॉइन करने लगे तो बंगाल में भी बीजेपी का वही हाल हो जाएगा जो इस वक्त कांग्रेस और लेफ्ट का है. इसलिए भारतीय जनता पार्टी को किसी भी हाल में ऑपरेशन ग्रास फ्लावर से अपने विधायकों और कार्यकर्ताओं को बचाना होगा. लेकिन भारतीय जनता पार्टी अभी इस मामले यह कहते नजर आ रही है जो लोग अपनी पुरानी पार्टी में जाना चाहते हैं वह जा सकते हैं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि अगर कोई अपनी पुरानी पार्टी में लौटकर शांति पाता है तो हमें कोई समस्या नहीं है.

यह नेता लगा रहे हैं दीदी से वापसी की गुहार
बीजेपी से तृणमूल कांग्रेस में वापस जाने वाले जिन तीन नेताओं का नाम मुख्य रूप से सामने आ रहा है, उनमें सोनाली गुहा, अमोल आचार्य और सरला मुर्मू शामिल हैं. सबसे पहले बात सोनाली गुहा की करते हैं, ममता बनर्जी की सबसे करीबी नेताओं में रही सोनाली गुहा पश्चिम बंगाल के सतगछिया से तृणमूल कांग्रेस की पूर्व विधायक थीं. लेकिन जब 2021 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टीएमसी की ओर से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने ममता बनर्जी पर बदल जाने का आरोप लगाते हुए दिलीप घोष की मौजूदगी में बीजेपी ज्वॉइन कर ली. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने भी उन्हें कहीं से उम्मीदवार नहीं बनाया. शायद सोनाली सोच रही थीं कि भले ही पार्टी ने उन्हें कहीं से उम्मीदवार नहीं बनाया लेकिन सरकार बनने के बाद कोई मलाईदार पद उन्हें मिल ही जाएगा. अब जब बीजेपी की बंगाल में सरकार नहीं बनी तो उन्हें यहां रहने का कोई फायदा नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि सोनाली गुहा फिर से ममता बनर्जी के पास वापस जाना चाहती हैं. ममता बनर्जी को लिखे पत्र में सोनाली गुहा ने कहा 'दीदी आप मुझे माफ नहीं करेंगी तो मैं जिंदा नहीं रहूंगी. सोनाली ने आगे लिखा कि जिस तरह एक मछली बिना पानी के नहीं रह सकती मैं भी उसी तरह आपके बिना नहीं रह सकती हूं'

सोनाली गुहा के बाद सरला मुर्मू जिन्हें तृणमूल कांग्रेस ने 2021 के विधानसभा चुनाव में मालदा के हबीबपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया था, वह अब वापस तृणमूल कांग्रेस में लौटना चाहती हैं. दरअसल सरला मुर्मू को टीएमसी ने 2021 विधानसभा चुनाव में हबीबपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया था लेकिन सरला ने टीएमसी का टिकट छोड़ भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर ली थी. लेकिन अब जब बीजेपी की सरकार बंगाल में नहीं बनी तो सरला मुर्मू का बीजेपी से मोहभंग हो गया है और सरला मुर्मू यह कहकर बीजेपी छोड़कर टीएमसी में जाना चाहती हैं कि उन्होंने बीजेपी में शामिल होकर गलती कर दी, बीजेपी बहुत प्रतिहिंसा करने वाली पार्टी है.

तीसरा बड़ा नाम है उत्तर दिनाजपुर के जिला अध्यक्ष अमोल आचार्य का, अमोल आचार्य दो बार से तृणमूल कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. लेकिन जब 2021 विधानसभा चुनाव में उन्हें टीएमसी की ओर से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर ली. लेकिन यहां भी उन्हें विधायकी का टिकट नहीं मिला, यही वजह है कि जब बंगाल में बीजेपी की सरकार नहीं बनी तब अमोल आचार्य अब बीजेपी छोड़कर टीएमसी में घर वापसी करना चाहते हैं. उन्होंने ममता बनर्जी को लिखे पत्र में उनसे माफी मांगी और कहा कि मैंने सीबीआई के दबाव में टीएमसी छोड़ी थी. लेकिन मैं हमेशा से अपना लीडर ममता बनर्जी को ही मानता आया हूं और आगे भी मानता रहूंगा.

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस इन गद्दार नेताओं को वापस अपनी पार्टी में जगह देगा या नहीं इस पर फिलहाल कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. लेकिन इसकी पूरी उम्मीद जताई जा रही है कि ममता बनर्जी शायद इन नेताओं को वापस अपनी पार्टी में ले लें. क्योंकि उन्हें भी पता है कि राजनीति में ना तो स्थाई दोस्ती होती है ना ही स्थाई दुश्मनी, अगर बीजेपी को 2021 की तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में भी शिकस्त देनी है तो उनके पास एक बड़ी फौज का होना काफी कारगर साबित होगा. खासतौर से उन नेताओं की फौज जो टीएमसी छोड़कर बीजेपी गए थे और बीजेपी से फिर से टीएमसी में आ गए हैं. इससे ममता बंगाल में संदेश दे सकती हैं कि तृणमूल कांग्रेस छोड़कर जाने वालों का कोई ठिकाना नहीं रहता.

बंगाल में दल बदल का रहा है इतिहास
पश्चिम बंगाल में नेताओं का चुनाव परिणाम आने के बाद दल बदलना कोई खास बात नहीं है. ऐसा दशकों से होता आ रहा है. जब वहां तीन दशक तक वामदल की सरकार थी और उसके बाद 2011 में ममता बनर्जी की सरकार बनी तो उन्होंने कांग्रेस और लेफ्ट से कई बड़े नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया. कुछ को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए ममता बनर्जी को हथकंडे अपनाने पड़े, तो कुछ नेता खुद से सरकार का हिस्सा बनने तृणमूल कांग्रेस में चले आए. 2021 के विधानसभा चुनाव में लोगों को लगा कि अब पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी जीत सकती है, तो टीएमसी के साथ भी ऐसा ही हुआ और उसके सैकड़ों कार्यकर्ता और बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. लेकिन जब 2 मई के बाद चुनाव परिणाम आए और तृणमूल कांग्रेस 213 विधानसभा सीटों पर चुनाव जीतकर बहुमत में आ गई, तो इन नेताओं को समझ आ गया कि अब बीजेपी में रहने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए वह टीएमसी में वापसी करने की ओर अग्रसर हैं.

बीजेपी को अपना जनाधार बचाना होगा
2016 विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के पास केवल 3 सीटें हैं, उसे 2021 के विधानसभा चुनाव में 77 सीटों पर जीत मिले तो जाहिर सी बात है बंगाल में बीजेपी का जनाधार काफी बढ़ा है. भारतीय जनता पार्टी के जनाधार बढ़ने की एक वजह यह भी थी कि उसने सत्ताधारी पार्टी के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया था, जिससे जनता में एक संदेश गया था कि बीजेपी अब मजबूत स्थिति में है. लेकिन अगर वह नेता जो टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, वापस तृणमूल कांग्रेस में जाने लगे तो इससे न केवल बीजेपी का कैडर कमजोर होगा, बल्कि जनता में भी भारतीय जनता पार्टी के कमजोर होने का बड़ा संदेश जाएगा. इससे होगा यह कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का जनाधार फिर से गिर सकता है. जो भारतीय जनता पार्टी कभी नहीं चाहेगी. 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी इस बार बंगाल में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का प्लान बना रही है, जिससे वह देश में यह संदेश दे सके कि आज भी मोदी ब्रांड के सामने खड़ा होने वाला कोई नाम नहीं है.

क्या बंगाल में बीजेपी अंदरूनी कलह से जूझ रही है
जब कोई पार्टी किसी राज्य में या देश में चुनाव हारती है तो पार्टी में कई ऐसे नेता सामने आते हैं जिनकी राय पार्टी से अलग होती है या यूं कह लें कि जो पार्टी के फैसलों से खुश नहीं होते वह हार का परिणाम आने के बाद मुखर हो जाते हैं. 2 मई को जब पश्चिम बंगाल के नतीजे सामने आए और भारतीय जनता पार्टी 77 सीटों पर ही सिमट गई, तब बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने पार्टी के खिलाफ बयान दिया, इसमें बीजेपी के बड़े नेता तथागत रॉय का भी नाम शामिल है. जिन्होंने परिणाम आने के बाद यहां तक कह दिया था कि यह बंगाल में बीजेपी के अंत की कहानी है. दरअसल चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस से लगभग डेढ़ सौ बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे, लेकिन इन नेताओं को बीजेपी के अंदरूनी मामलों में खास तवज्जो नहीं दी गई. उनके साथ बिल्कुल मेहमान के जैसा बर्ताव किया गया. यही वजह है कि यह नेता विधानसभा चुनाव के समय से ही बीजेपी से नाराज चल रहे थे, जाहिर सी बात है जिस तरह से सोनाली गुहा, सरला मुर्मू और अमोल आचार्य ने अपना ममता प्रेम चुनाव परिणाम आने के बाद दिखाया है, यह भी दिखा सकते हैं. इसलिए बीजेपी को बंगाल में अपना कैडर कमजोर होते देखने के लिए तैयार रहना होगा.

हिंसा और डर भी हो सकती है एक वजह
पश्चिम बंगाल में हिंसा की राजनीति का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पुराना इतिहास बंगाल में दल बदल का है. दरअसल जब 2 मई को विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए और बंगाल में ममता बनर्जी की फिर से सरकार बनी तब से ही पूरे राज्य में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ जमकर हिंसा हो रही है. चुनाव परिणाम आने वाली दिन ही बीजेपी के कई दफ्तर जला दिए गए. कई नेताओं पर हमले हुए और कई कार्यकर्ताओं के घरों में घुसकर टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा तोड़फोड़ किए जाने का आरोप लगा. इनमें ज्यादातर मामले उन कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ हुए जो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. सरला मुर्मू का तो जीते जी मालदा में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने सांकेतिक अंतिम संस्कार भी कर दिया था. यही नहीं शुभेंदु अधिकारी के काफिले पर भी पथराव हुए थे और उनका ऑफिस जला दिया गया था. इंटरनेट पर कई ऐसे वायरल वीडियो मौजूद हैं जिनमें बीजेपी के कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा हो रही है. बंगाल की राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ जब राज्य के विपक्षी नेताओं को सीआरपीएफ द्वारा सुरक्षा प्रदान किया जा रहा है. बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी इस वक्त बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा को लेकर चिंतित हैं और हर उस जगह का दौरा कर रहे हैं जहां राजनीतिक हिंसा के मामले ज्यादा हुए हैं. भारतीय जनता पार्टी भी अपने कार्यकर्ताओं पर हो रहे हिंसा का आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा रही है. जाहिर सी बात है यह सब देख कर कुछ नेताओं में भय समा गया है. और उन्हें शायद लग रहा होगा कि अगर बंगाल में सही सलामत रहना है और अपना जीवन बचाना है तो ममता बनर्जी के शरण में चले जाना ही सबसे उचित होगा.
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