सम्पादकीय

प्रवर्तन निदेशालय का भय

Rani Sahu
28 July 2022 7:01 PM GMT
प्रवर्तन निदेशालय का भय
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बहुत से लोग पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय गए थे। एक साथ नहीं, अलग-अलग समय में अलग-अलग ही गए थे

बहुत से लोग पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय गए थे। एक साथ नहीं, अलग-अलग समय में अलग-अलग ही गए थे। किसी धरना-प्रदर्शन के लिए नहीं बल्कि अपनी-अपनी याचिकाएं लेकर। उनकी प्रार्थना थी कि प्रवर्तन निदेशालय, जिसे संक्षेप में ईडी कहा जाने लगा है, किसी को गिरफ्तार न कर सके, ऐसा आदेश उच्चतम न्यायालय जारी करे। उच्चतम न्यायालय के पास ऐसी बहुत सी याचिकाएं एकत्रित हो चुकी थीं। फिलहाल ईडी के पास यह अधिकार है कि वह धनशोधन निवारण अधिनियम के अंतर्गत किसी को गिरफ्तार कर सकता है। धनशोधन का अभिप्राय ऐसे धन से है जिसे गलत तरीके से कमाया गया है और अब गलत तरीकों से ही उस काली कमाई को सफेद बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रकार की काली कमाई देश में आतंकवाद, अपराध बढ़ाने का काम तो करती ही है, इससे देश की एकता और अखंडता को भी खतरा पहुंचता है। आतंकवादियों के पास बहुत सा पैसा इसी तरीके से आता है। कश्मीर में आतंकवाद के प्रसार में तो ज्यादा पैसा इसी तरीके से एकत्रित किया जाता रहा है। जब से ईडी ने कश्मीर में इस प्रकार के धंधे में लगे नेताओं पर शिकंजा कसा है तब से वहां आतंकवादी व पत्थरबाज़ी की घटनाओं में कमी आई है।

यह भी आश्चर्य की बात है कि इस प्रकार की काली कमाई के सूत्र घूम फिर कर कहीं न कहीं राजनेताओं से जुड़े मिल जाते हैं। कश्मीर में हुर्रियत कान्फ्रेंस के पास ज्यादा धन हवाला से ही पहुंचता था। जब तक ईडी का घेरा जाने-माने अपराधियों तक रहता है तब तक तो राजनेता भ्रष्टाचार समाप्त करने का भांगड़ा डाल कर वाह-वाह बटोरते रहते हैं, लेकिन जब अपराधियों को लगता है कि बे बुरे फंस गए हैं और ईडी के शिकंजे से बचना मुश्किल है तो वे अपने आका राजनेताओं के नाम ही उगलना शुरू नहीं करते बल्कि सबूत भी मुहैया करवाना शुरू कर देते हैं। इतना तो सब जानते हैं कि बिना राजनीतिक प्रश्रय के काली कमाई के अनंत भंडार निर्माण नहीं किए जा सकते। ज़ाहिर है तब ईडी का शिकंजा राजनेताओं पर भी कसना शुरू हो जाता है। ऐसे मौकों पर लोकतंत्र खतरे में पडऩे लगता है। विपक्ष के बोलने के अधिकार को खतरा होने लगता है। ऐसा भी कहा जाने लगता है कि सरकार एजेंसियों को विपक्ष का गला दबाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। कश्मीर में मनी लांड्रिंग के किस्सों को छोड़ भी दें तो पिछले दिनों दो मामलों की सर्वाधिक चर्चा रही है। पहला कि़स्सा नैशनल हैराल्ड की करोड़ों की सम्पत्ति का है। इस मामले में आरोप है कि कुछ लोगों ने नैशनल हैराल्ड नामक अखबार चला रही एक कम्पनी की करोड़ों की सम्पत्ति एक नया ट्रस्ट बना कर हड़प कर ली। कहा जाता है इसमें नैशनल हैराल्ड कम्पनी के अंशधारकों को भी विश्वास में नहीं लिया।
दिनदिहाड़े कानून की दांवपेंच का लाभ उठा कर कुछ लोगों ने यह सम्पत्ति तो अपने ट्रस्ट के नाम कर ली लेकिन वे शायद यह भूल गए कि जिन क़ानूनों के गली मुहल्लों का लाभ उन्होंने उठाया, उन्हीं क़ानूनों के कुछ और गली मुहल्लों का लाभ उठा कर सुब्रहमण्यम स्वामी ने इनको घेर लिया। मामला जांच के लिए ईडी के सुपुर्द हो गया। मामला यहां तक बढ़ा कि इन 'कुछ लोगों' को कचहरी से ज़मानत तक लेनी पड़ी। अब ईडी इन 'कुछ लोगों' को जांच पड़ताल के लिए बुला रही है। इसलिए ये कुछ लोग बहुत ग़ुस्से में हैं। ये कुछ लोग सोनिया गांधी और उनके सुपुत्र राहुल गांधी हैं। ईडी की इतनी हिम्मत कि मां-बेटे को जांच के लिए बुलाए। इसलिए इनकी अपनी पार्टी रोज़ प्रदर्शन कर रही है। उनका कहना है ईडी बाक़ी लोगों को पूछताछ के लिए बुलाती रहती है, यहां तक तो ठीक है। लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ करना तो लोकतंत्र की हत्या ही मानी जानी चाहिए। अभिजात्य वर्ग के एक सज्जन यशवंत सिन्हा की व्यथा तो हदें पार कर गई। कहने लगे, यदि सोनिया गांधी से कुछ पूछना ही था तो ईडी के अधिकारियों को स्वयं समय लेकर उनके घर जाना चाहिए था। दूसरा मामला पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सचिव और उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य पार्थ चटर्जी का है। वे पहले महकमा तालीम के मंत्री हुआ करते थे।
ऐसा कहा जाता है कि वे विभाग में नौकरी देने से पहले दक्षिणा बगैरह लिया करते थे। इस प्रकार के मामलों में ली गई दान दक्षिणा कोई इस प्रकार का पैसा तो नहीं है जिसे बैंक इत्यादि में जमा करवाया जा सके। इसलिए उसका हिसाब किताब रखने के लिए, कहा जाता है, उन्होंने अर्पिता चटर्जी नाम की बंगला फिल्मों की एक अभिनेत्री को रख लिया। उसके घरों से करोड़ों की सम्पत्ति मिली ही नहीं, बल्कि निरंतर मिल रही है। ईडी ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। पार्थ ठहरे ममता के मंत्री। वे गिरफ़्तारी से बचने के लिए पुरानी राजनीतिक पद्धति के अन्तर्गत अस्पताल में भर्ती हो गए। उच्चतम न्यायालय तक को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा कि इसे कोलकाता से निकाल कर भुवनेश्वर के अस्पताल में लेकर जाओ। तब पता चलेगा कि इसे सचमुच कोई पुरानी बीमारी है या फिर मंत्रियों वाली गिरफ़्तारी से बचने के लिए मेडिकल बीमारी है। भुवनेश्वर के डाक्टरों ने तो उसे अस्पताल में भरती करने तक से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि साहब को कोई बीमारी नहीं है। अब साहिब ईडी की गिरफ़्तारी में है। ज़ाहिर है इस प्रकार की घटनाओं से आभिजात्य राजनीतिक दलों में हडक़म्प मचता। कितना कुछ खुल सकता था। बहुत सी याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में लम्बित थीं। लेकिन अब उच्चतम न्यायालय का भी निर्णय आ गया है। न्यायालय ने कहा ईडी प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत संदिग्धों के यहां तलाशी ले सकती है, उनको गिरफ्तार कर सकती है और इस प्रकार की सम्पत्ति को ज़ब्त कर सकती है।
इतना ही नहीं, इनफोर्समेंट केस सूचना रपट की प्रति भी तथाकथित अभियुक्तों को प्रदान करना अनिवार्य नहीं है। ज़ाहिर है भविष्य को लेकर डरे हुए लोगों की ओर से बड़े-बड़े नामी वकील उनके केस की पैरवी कर रहे थे। लेकिन उनकी अंतिम शरण न्यायालय ने भी ईडी के पक्ष में निर्णय दे दिया। इसे कोई भी स्वीकार नहीं करेगा कि पार्थ चटर्जी जो कर रहे थे उसके बारे में ममता बनर्जी को जानकारी नहीं थी। यदि सचमुच ही उनको जानकारी नहीं थी तब तो और भी चिंताजनक है। उनकी नाक के नीचे बंगाल के गऱीब लोगों को लूटा जा रहा था और ममता को ख़बर तक नहीं थी। सोनिया-राहुल नैशनल हैराल्ड की करोड़ों की राष्ट्रीय सम्पत्ति एक घरेलू ट्रस्ट के नाम हस्तांतरित की जा रही थी और वरिष्ठ कांग्रेसजनों को ख़बर नहीं थी, इसको कौन सच मान लेगा? ताज्जुब है जब ईडी यह ख़बर दे रहा है तो वरिष्ठ कांग्रेस जन सोनिया-राहुल से सवाल पूछने की बजाय सडक़ों पर रुदाली रोदन कर रहे हैं।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:[email protected]

By: divyahimachal

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