सम्पादकीय

डर, उम्मीद और लालच

Subhi
4 Aug 2022 5:48 AM GMT
डर, उम्मीद और लालच
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हमारा जीवन डर, उम्मीद और लालच के इर्द-गिर्द घूमता है। चाहे हम गलत काम करें या ठीक, हर काम इसी त्रिकोण से संचालित होता है। इनके अभाव में पढे-लिखे और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी अज्ञानी साबित होते हैं और धोखा खा जाते हैं। डर के खौफ में अक्सर लोग घबराकर सही या गलत फैसले ले लेते हैं।

सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी; हमारा जीवन डर, उम्मीद और लालच के इर्द-गिर्द घूमता है। चाहे हम गलत काम करें या ठीक, हर काम इसी त्रिकोण से संचालित होता है। इनके अभाव में पढे-लिखे और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी अज्ञानी साबित होते हैं और धोखा खा जाते हैं। डर के खौफ में अक्सर लोग घबराकर सही या गलत फैसले ले लेते हैं। अगर मौत का डर हो तो आदमी घबराकर ऊपर से नीचे कूद भी जाता है, भले ही इस कोशिश में उसकी जान क्यों न चली जाए! ऐसी स्थिति में मन में तो बचने का ही भाव होगा। यानी मौत से बचने की कोशिश में भी आदमी मर सकता है। ऐसी अनेक घटनाएं हमें याद होंगी, जब हमने देखा या सुना होगा कि कैसे जान बचाने के प्रयास में लोग रेल, बस या कार से कूद पडते हैं।

इसी तरह, उम्मीद के दम पर भी लोग जीते हैं। सकारात्मक सोच जीने की प्रेरणा देता है। एक गीत है- हम होंगे कामयाब, एक दिन, ये मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन। असफलता कोई नहीं चाहता। हर बार लोग नया प्रयास करते हैं। कहा भी गया है कि एक जतन और, बस एक जतन और। बिना उम्मीद के जीने का कोई अर्थ नहीं। अच्छा डाक्टर अंतिम क्षण तक इलाज करता है और लोगों को दिलासा भी देता है।

यह बात अलग है कि कभी उम्मीद से अधिक पा जाने पर आश्चर्य का भाव पैदा हो, पर यह भी उम्मीद का प्रतिफल है। फिराक गोरखपुरी का शेर है- 'गरज कि काट दिए जिंदगी के दिन ऐ दोस्त, वो तेरी याद में हो या तुझे भुलाने में।' कहा भी गया है-'आशा पर आकाश थमा है। उम्मीद पर दुनिया कायम है।' जो हमारे पास है, उससे बेहतर पाने की कोशिश से ही तरक्की मिलती है। आत्ममुग्ध बने रहने से तो तृष्णता प्रकट होगी। स्पर्धा है ही, इसलिए कि प्रयास ऊपर उठने का होता रहे। प्रयोग और आविष्कार हिम्मत की देन हैं।

आज जीवन के हर क्षेत्र में कडी प्रतिस्पर्धा है। चाहे खेल हो, पढ़ाई या फिर नौकरी। प्रतिस्पर्धी बडी संख्या में इस उम्मीद से आते हैं कि वे कामयाब हों। वे जानते हैं कि सफलता तो एक को या उनमें से कुछ को मिलेगी, फिर भी वे सफलता की उम्मीद कायम रखते हैं। यही जीवन की निशानी है। इसलिए उम्मीद की किरण ही रास्ता दिखाती है। जीवन में कुछ भी बिना संघर्ष व मेहनत के नहीं मिलता और हिम्मत ही कामयाबी दिलाती है। रास्ता कितना भी मुश्किल भरा और चुनौतीपूर्ण हो, हिम्मत से पार किया जा सकता है।

हालांकि डर और उम्मीद की तरह लालच भी प्रेरित करता है और इंसान को आगे बढने का मार्ग दिखाता है। पर यह भी सच है कि लालच ही इंसान को हर तरह का खतरा उठाते हुए भी बढ़ने का रास्ता दिखाता है। हमेशा से लालच इंसान का मूलभूत स्वभाव रहा है फिर डिजिटल और मोबाइल तथा इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने लालच का पैमाना और बढ़ाया है। खासकर पिछले तीन-चार वर्षों में झूठी खबरें, सोशल मीडिया के पोस्ट और साइबर अपराध बढ़ता जा रहा है। पढे-लिखे व होशियार और समझदार लोग भी इसके शिकार हो रहे हैं।

यह लालच का ही प्रतिफल है। यहां तक कि टीवी पर एक धारावाहिक लोगों को जागरूक करने वाली एक अभिनेत्री ने गफलत में अपने बैंक का ब्योरा टेलीफोन पर ठगी करने वाले व्यक्ति को बता बैठी। देखते ही देखते उसके खाते से रुपए निकल गए। हालांकि समय रहते पुलिस की मदद से उसने अपना पैसा निकलवा लिया। ऐसे सैकड़ों मामले अक्सर होते रहते हैं। ताज्जुब यह है कि कई कम उम्र के बच्चे भी इस ठगी में पारंगत होते जा रहे हैं।

गुजरात के मेहसाना के एक युवा ने केवल फोन और इंटरनेट में माहिर होने का फायदा उठाकर नकली आइपीएल ही आयोजित करके लोगों से लाखों रुपए ठग लिए। यह भी लालच का ही परिणाम था। उसने लालच के लिए ही यह फरेब रचा और लोगों ने भी लालच में आकर ही लाखों रुपए लगाए। उस गुजराती युवक ने झारखंड के गरीब युवाओं को मुंबई, चेन्नई, बंगलुरु, कोलकाता और दिल्ली की टीमों के कपडे पहना कर व उन्हें 200-200 रुपए देकर खेत में क्रिकेट खेलने में लगा दिया।

ट्रिक फोटोग्राफी और इंटरनेट की मदद से सारे मैच फेसबुक की मदद से यूट्यूब की मदद से पूरी दुनिया में भेजकर लाखों कमाए। रूस जैसे देश में बहुत से लोग इसी ठगी के शिकार हुए। उन शातिरों ने एक मशहूर कमेंटेटर की आवाज से मिलती-जुलती आवाज वाले व्यक्ति को ढूंढ़ कर उससे कमेंट्री भी करवाई। यह सब करतूत कम पढ़े-लिखे बेरोजगार लोगों ने कर दिखाई और पढे-लिखों को ठग लिया। यह भी लालच का ही खेल था। क्या इसका कोई अंत है या यह सब चलता ही रहेगा? यह चिंता का विषय है। लगता है यह सब डर, उत्साह व लालच का मिला-जुला असर ही है। पढे-लिखों को ठगे जा रहे हैं, यह त्रासदी है और विडंबना भी।


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