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तालिबान के तरफदार: तालिबान की तारीफ और तरफदारी करने वाले सभ्य समाज के हितैषी नहीं कहे जा सकते
![तालिबान के तरफदार: तालिबान की तारीफ और तरफदारी करने वाले सभ्य समाज के हितैषी नहीं कहे जा सकते तालिबान के तरफदार: तालिबान की तारीफ और तरफदारी करने वाले सभ्य समाज के हितैषी नहीं कहे जा सकते](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/08/19/1250620-10.gif)
काबुल पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान नेताओं ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में भले ही यह जताने की कोशिश की हो कि वे बदल गए हैं, लेकिन उन पर यकीन नहीं किया जा सकता। इसका प्रमाण खुद अफगानिस्तान के वे तमाम लोग हैं, जो उनके भय से देश छोड़ने के लिए बेकरार हैं। जो अफगानी देश छोड़कर जाने में सक्षम नहीं, वे तालिबान के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। सबसे ज्यादा दहशतजदा वहां की महिलाएं हैं और इसका कारण यही है कि तालिबान ने उन पर सख्त किस्म की पाबंदियां लगानी शुरू कर दी हैं। तालिबान नेता कथनी और करनी में अंतर दिखाने के साथ जिस तरह पुराने तौर-तरीकों पर चलते दिख रहे हैं, उससे यही लगता है कि वे सुधरने का स्वांग भर कर रहे हैं और उनका इरादा दुनिया की आंखों में धूल झोंकना है। तालिबान की हरकतें यह भी बयान करती हैं कि वे उसी धार्मिक कट्टरता और कबीलाई मानसिकता से ग्रस्त हैं, जिससे दो दशक पहले तब थे, जब अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज थे। जब तालिबान के तेवरों से करीब-करीब पूरी दुनिया सशंकित है और कई देश साफ तौर पर यह कह रहे हैं कि उन पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता, तब यह हैरान और परेशान करने वाली बात है कि भारत में कुछ लोग उन पर फिदा हुए जा रहे हैं।