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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पुण्यतिथि विशेष
30 जनवरी यानी आज ही के दिन सन् 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो हुई थी। राष्ट्रपिता की शहादत का यह दिन गांधी जी को दुनिया में सर्वाधिक प्रासंगिक बना गया। बापू के देह से तो संसार में नहीं रहे लेकिन उनके विचारों ने पूरे विश्व को एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हिंसा का रास्ता दुनिया की सारी समस्यासओं का समाधान है?
आज बापू की शहादत के 74 वर्ष हो गए। जब समूचे विश्व में एक अलग किस्म का फ़सात है, हिंसा है और एक पागलपन का होड़ है जिसका अंजाम शायद तृतीय विश्व युद्ध तक में तब्दील हो सकता है। कोरोना महामारी के दौर में जिन्दगी और मौत से लड़ती दुनिया अगर मानवीय का मूल्यों को समझने में असफल रही तो परिणाम बहुत ही विभत्स होगा। ऐसे में गांधीजी और प्रासंगिक हो उठते हैं।
हाल ही के दिनों में घटित ऐसी घटना जिसमे गांधी जी के ऊपर अपशब्द कहे गए सुनकर मन कचोटता है। एक ऐसे दौर में जबकि हिंसा हर समस्या के समाधान के रूप में देखी जा रही है वहां मनुष्य सभ्यता के लिए गांधी जी के विचार सर्वाधिक जरूरी हो गए हैं।
प्रधानमंत्री जी ने बापू की 150वी जयंती पर सबसे आह्वान किया था-
"भारत के नागरिकों के रूप में यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है कि 2019 में गांधी की 150वीं जयंती तक स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने में मदद करें।"
गांधी जी कहते थे-
"मैं अकेला ही इस दुनिया में आया, अकेला ही मौत के साए की घाटी में चला हूं और समय आने पर अकेला ही यह दुनिया छोड़ जाउंगा।"
बापू के विचारों में सपष्टता थी, सत्य का मार्ग था और अहिंसा का मूल मंत्र भी।
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था-
"भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था"।
विश्व शांति और गांधीवाद
सत्याग्रह गांधीजी के अहिंसक पद्धति का मूलमंत्र रहा है, इसका अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ आत्म-शक्ति का प्रयोग करना। आज के मौजूदा हालत और वैश्विक परिदृश्य में गांधी का यही मंत्र विश्व शांति को स्थापित कर सकता है। अहिंसा गांधीवाद के इस एक प्रमुख तत्व ने ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधीजी इसका सही इस्तेमाल करते हुए अंग्रेजी हुकूमत को असहाय कर दिया था।
अहिंसा और सहिष्णुता
गांधीजी मानते थे अहिंसा और सहिष्णुता के लिए बड़े स्तर के साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। हिंसा और आतंकवाद से प्रभावित दुनिया, युद्ध के दौर से गुजर रही दुनिया, गृहयुद्ध जैसे हालात से जूझती यह दुनिया और वैश्विक महामारी के संकट में मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ती यही दुनिया को गांधी के बताए सत्य, अहिंसा, स्वराज और आत्मनिर्भरता को अपनाना होगा ।
सर्वोदय का मंत्र: गांधीजी कहते थे-
'सार्वभौमिक उत्थान' या 'सभी की प्रगति' ही सर्वोदय है। गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक "अनटू दिस लास्ट" को अनुवाद करते हुए सर्वोदय का मंत्र दिया था । पिछले दिनों की तुलना में आज गांधीवादी विचार की महत्वपूर्ण देने की आवश्यकता है।
भारतीय संविधान और गांधी
भारतीय संविधान के भाग चार में गांधी दर्शन की झलक दिखती है। ऐसे संविधान सभा की बैठक में शिब्बन लाल सक्सेना ने प्रस्तावना में गांधी के नाम और उनके प्रयास, प्रेरणा और सत्य और अहिंसा के सिद्धांत को शामिल करने का विचार दिया था जो स्वीकार नही हो पाया।
गांधीवादी अर्थशास्त्री श्रीमन नारायण अग्रवाल द्वारा, स्वतंत्र भारत का गांधीवादी संविधान 1946 में प्रकाशित हुआ था। जिसपर गांधी की सहमति थी। गांधी भारतीय न्यायिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के पक्षधर थे और विवाद का वैकल्पिक समाधान करने की बात करते थे ।
शांति के दूत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 1937, 1938, 1939, 1947 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था और आखिरी बार जनवरी 1948 में उनकी हत्या से कुछ दिन पहले। लेकिन विडंबना देखिए, गांधी के पढ़ाए पाठ पर जब मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया तो उन्होंने बेहिजक स्वीकार किया कि वे गांधी के अहिंसा मार्ग से प्रेरित रहे हैं।
आज गांधी के लिए सही श्रद्धांजलि उनके बताये मार्ग को अपनाकर ही दिया जा सकता है जिसमे विश्व शांति का पाठ और लोक-कल्याण का मंत्र भी छिपा है, इसलिए गांधीजी कहते थे-
"खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं" ।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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