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- तेजी से पिघलती बर्फ
धरती पर प्राकृतिक रूप से जमी बर्फ का पिघलना अगर तेज हुआ है, तो यह न केवल विचारणीय, बल्कि चिंताजनक भी है। विगत कुछ दशकों में धरती के बढ़ते तापमान अर्थात ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के कुछ प्रयास होते दिख रहे हैं, लेकिन तब भी बर्फ का पिघलना रुकना तो दूर, तेज होता जा रहा है। द क्रायोस्फीयर जर्नल में प्रकाशित शोध में पाया गया है कि 1994 और 2017 के बीच पृथ्वी ने 28 ट्रिलियन टन बर्फ खो दी है। पूरे ग्रह में बर्फ के पिघलने की दर तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 1990 में 0.8 ट्रिलियन टन बर्फ प्रतिवर्ष पिघल रही थी, लेकिन 2017 में प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन टन बर्फ पिघलने लगी है। अगर दुनिया में बर्फ को पिघलने से रोकने के प्रयास हो रहे हैं, तो फिर बर्फ का पिघलना भला क्यों तेज हुआ है? धरती को हो रहा यह नुकसान महज कागजी हिसाब-किताब पर आधारित नहीं है। ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की टीम ने सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करते हुए बर्फ के नुकसान का ठोस अनुमान लगाया है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कुल 23 साल के सर्वेक्षण में बर्फ के नुकसान की दर में 65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।