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बच्चों की जुबान पर चढ़ते बाजार के तुरंता आहार का स्वाद अब उनके स्वास्थ्य पर असर डालने लगा है।
बच्चों की जुबान पर चढ़ते बाजार के तुरंता आहार का स्वाद अब उनके स्वास्थ्य पर असर डालने लगा है। हालांकि पिछले कई सालों से अनेक अध्ययन चेतावनी देते आ रहे हैं कि डिब्बाबंद आहार की वजह से बच्चों में मोटापा, सुस्ती, बेचैनी, एकाग्रता की कमी, हृदय और गुर्दे संबंधी परेशानियां बढ़ रही हैं। ताजा अध्ययन में उजागर हुआ है कि ऐसी परेशानियां चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी हैं। स्वाभाविक ही इसे लेकर अभिभावक परेशान हैं।
ज्यादातर अभिभावकों ने मांग की है कि डिब्बाबंद आहार के पैकेटों पर चीनी, नमक, वसा आदि की मात्रा का स्पष्ट उल्लेख किया जाए, ताकि अभिभावक ऐसे आहार का चुनाव करने में सावधानी बरत सकें। डिब्बाबंद खाद्य लोगों में हृदय रोग का बड़ा कारण बन रहे हैं। भारत में होने वाली कुल मौतों में से करीब सत्रह फीसद हृदय रोग की वजह से होती हैं। पिछले बीस सालों में हृदय संबंधी परेशानियां करीब उनसठ फीसद की दर से बढ़ी हैं। यहां तक कि अब बच्चों और किशोरों में भी हृदय संबंधी परेशानियां बढ़ने लगी हैं, जबकि पहले पचास पार के आयु के लोगों में ऐसी शिकायतें देखी जाती थीं। इसलिए भी अभिभावक डिब्बाबंद आहार के चुनाव में सतर्कता बरतते देखे जाने लगे हैं।
मगर डिब्बाबंद भोजन का कारोबार पिछले दस सालों में इतनी तेजी से फैला है कि अब इसे सामान्य जीवन में सहज स्वीकार कर लिया गया है। इनका स्वाद बच्चों की जबान पर इस कदर रच-बस गया है कि उन्हें घर का बना भोजन पसंद ही नहीं आता। फिर जबसे रेस्तरां और होटलों से घर-घर भोजन पहुंचाने वाली कंपनियों का कारोबार फैला है, अब बहुत सारे शहरी लोग बाजार का भोजन अधिक पसंद करने लगे हैं। पहले रेस्तरां जाकर खाना पड़ता था, अब वही भोजन घर बैठे जो मिल जाता है।
खासकर बहुत सारे ऐसे युवा, जो शहरों में अकेले रह कर पढ़ाई-लिखाई या नौकरी करते हैं, वे प्राय: बाहर से ही खाना मंगा कर खाते हैं। यह तो स्पष्ट है कि बाहर का भोजन चाहे जितनी बड़ी दुकान का क्यों न हो, उसमें स्वाद बढ़ाने के लिए कई चीजें अनावश्यक डाली जाती हैं, जिनका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फिर डिब्बाबंद भोजन, जो कारखानों में बड़े पैमाने पर तैयार किए जाते हैं, जैसे चिप्स, नमकीन, नूडल्स, दुग्ध उत्पाद, शीतल पेय वगैरह, उनमें वसा, कार्बोहाइड्रेट, नमक, चीनी आदि की मात्रा का उचित ध्यान नहीं रखा जाता। उन्हें लंबे समय तक टिकाऊ रखने के लिए कई हानिकारक रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है। उनका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता ही है।
भले अभिभावक मांग कर रहे हों कि डिब्बाबंद तुरंता आहार पर उसमें शामिल पदार्थों का स्पष्ट विवरण दिया जाना चाहिए। मगर इसे समस्या का कोई समाधान नहीं माना जा सकता। अब तो दूर-दराज के गांवों तक में डिब्बाबंद खाद्य ऐसे अंटा पड़ा है कि लोगों की पारंपरिक भोजन शैली ही बिगड़ती जा रही है। ऐसे में कितने लोग डिब्बों पर दर्ज जानकारियां पढ़ कर सतर्क हो पाएंगे। बच्चों में बढ़ती स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हल यही है कि उन्हें घर के भोजन की आदत डाली जाए। मगर जो माता-पिता खुद अपने बच्चों को ऐसा भोजन खिलाने में गर्व का अनुभव करते या अपनी व्यस्त दिनचर्या में इसे आसान समाधान मानते हैं, वे कहां तक बच्चों के संतुलित आहार पर ध्यान दे पाएंगे, देखने की बात है। बिना अभिभावकों की जागरूकता के, भोजन से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से पार पाना चुनौती ही बना रहेगा।
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