सम्पादकीय

Farmers Protest: बीते 11 महीने से नागरिक अधिकारों की जैसी अनदेखी हुई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल

Gulabi
30 Oct 2021 3:51 AM GMT
Farmers Protest: बीते 11 महीने से नागरिक अधिकारों की जैसी अनदेखी हुई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल
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दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर पुलिस की ओर से बैरिकेड हटाया जाना

दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर पुलिस की ओर से बैरिकेड हटाया जाना, उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण है, जो यहां से गुजरते थे। कृषि कानून विरोधी किसान संगठनों की ओर से राजधानी के सीमांत रास्तों पर डेरा डाले जाने से दिल्ली पुलिस ने ये बैरिकेड इसलिए लगाए थे, ताकि वैसा उपद्रव फिर न होने पाए, जैसा गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर हुआ था। भले ही 11 माह बाद बंद रास्ते खुलने की संभावना बन रही हो, लेकिन अभी इसके प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि इन रास्तों पर आवागमन सुगम हो सकेगा, क्योंकि किसान संगठन तो सड़क बाधित कर बैठे ही हैं।

क्या यह अच्छा नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह दिल्ली पुलिस को बैरिकेड हटाने को कहा, वैसे ही वह किसान संगठनों से भी अपने तंबू हटाने को कहता? क्या यह विचित्र नहीं कि दिल्ली पुलिस को तो जरूरी निर्देश दे दिए गए, लेकिन किसान संगठनों से केवल इतना कहकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई कि वे धरना-प्रदर्शन के नाम पर रास्तों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं कर सकते? क्या 11 माह का लंबा समय अनिश्चितकाल के दायरे में नहीं आता?
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दिल्ली के ही कुख्यात शाहीन बाग धरने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का आदेश-निर्देश प्रभावी साबित नहीं हो सका था। लाखों लोगों के लिए सिरदर्द बना यह धरना तब खत्म हुआ था, जब कोरोना संक्रमण ने सिर उठा लिया था। आखिर दिल्ली पुलिस ने जैसे शाहीन बाग खाली कराया था, वैसे ही दिल्ली के सीमांत रास्तों को क्यों नहीं खाली कराया? दिल्ली पुलिस जो पहल अब कर रही है, वह इसके पहले भी तो कर सकती थी। आखिर यह क्या बात हुई कि बंद रास्तों के कारण लाखों लोग कष्ट उठाते रहे और फिर भी पुलिस बैरिकेड लगाकर बैठी रहे?

नि:संदेह जवाबदेही किसान संगठनों की भी बनती है, जो सड़क पर बैठे होने के बाद भी सारा दोष दिल्ली पुलिस पर मढ़कर आवागमन पर अड़ंगा लगाए हुए हैं। किसान नेता अभी भी जिस तरह संसद तक जाने की बातें कर रहे हैं, उससे दिल्ली में फिर अव्यवस्था फैल सकती है और जिन स्थानों पर कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारी बैठे हैं, वहां से लोगों का आना-जाना भी मुश्किलों भरा बना रह सकता है। ये ठिकाने किसी घटना-दुर्घटना का कारण भी बन सकते हैं। यह अच्छा नहीं कि शासन-प्रशासन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक देश को यह बुनियादी संदेश नहीं दे सका कि सड़कें धरना देने के लिए नहीं होतीं। बीते 11 महीने से आम जनता के नागरिक अधिकारों की जैसी अनदेखी हुई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है।
दैनिक जागरण

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