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सम्पादकीय
Farmers Protest: किसान खुलेआम उड़ा रहे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां, फिर भी क्यों...?
Tara Tandi
2 Oct 2021 3:40 AM GMT
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सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों को बाधित करने वाले किसान संगठनों को जिस तरह आड़े हाथ लिया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। तिलकराज | सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों को बाधित करने वाले किसान संगठनों को जिस तरह आड़े हाथ लिया, उससे यह उम्मीद बंधती है कि लोगों को अराजकता से मुक्ति मिलेगी, लेकिन जब तक ऐसा हो न जाए, तब तक संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि किसान संगठनों की ओर से दिल्ली के सीमांत इलाकों में सड़कों को बाधित किए हुए दस माह बीत चुके हैं। इसके अलावा वे पंजाब एवं हरियाणा में टोल प्लाजा पर कब्जा किए हुए हैं और कई औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बाहर धरना देकर उनका कामकाज भी प्रभावित कर रहे हैं।
यह आंदोलन के नाम पर की जाने वाली खुली अराजकता ही नहीं, कानून के शासन की अवहेलना भी है। यदि ऐसे अलोकतांत्रिक और अराजक तौर-तरीकों को सहन किया जाएगा तो फिर इससे लोकतंत्र का उपहास ही उड़ेगा। नि:संदेह यह स्थिति इसीलिए बनी, क्योंकि पुलिस और सरकारों के साथ अदालतों ने भी अपनी हिस्से की जिम्मेदारी का सही तरह पालन नहीं किया। यह क्षोभ की बात है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से बार-बार यह कहे जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं कि धरने-प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता।
समझना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया कि उसके आदेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं? सड़कों पर कब्जे तो लोगों को बंधक बनाने वाली हरकत है। इस पर संतोष नहीं जताया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले यह सवाल पूछा कि आखिर राजमार्गों को बाधित कैसे किया जा सकता है और फिर दिल्ली के अंदरूनी हिस्से में धरना देने को आतुर किसान संगठनों को फटकार लगाते हुए कहा कि आपने पहले ही शहर का गला घोंट रखा है। इस फटकार के साथ उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि आंदोलन के नाम पर सार्वजनिक स्थलों से अवैध कब्जे हटें।
आखिर सुप्रीम कोर्ट सरकारों को इन कब्जों को हटाने के आदेश क्यों नहीं दे पा रहा है? सवाल यह भी है कि वह कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए गठित समिति की रपट पर गौर क्यों नहीं कर रहा है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह समिति खुद उसी ने गठित की थी। इतना ही नहीं, यह समिति गठित करते हुए उसने कृषि कानूनों के अमल पर रोक भी लगा दी थी। एक तरह से किसान संगठन उन कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे हुए हैं, जो अस्तित्व में ही नहीं हैं। उनकी जिद है कि इन कानूनों को वापस लिया जाए, लेकिन यदि संसद से पारित कानूनों को किसी के सड़कों पर बैठ जाने से वापस लिया जाने लगा तो फिर किसी कानून की खैर नहीं।
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