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- घाटे का सौदा साबित...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे कुछ किसान संगठन सरकार की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं दिखते। ऐसे में इसकी पड़ताल आवश्यक हो जाती है कि इन प्रदर्शनकारी किसानों की मांगें कितनी न्यायसंगत हैं? इन मांगों में एक प्रमुख मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी स्वरूप दिया जाए। एमएसपी के उद्भव की जड़ें हरित क्रांति से जुड़ी हैं। तब किसानों को गेहूं और धान जैसे अनाज की 'हाई यील्ड वैरायटी' यानी पैदावार को व्यापक स्तर पर बढ़ाने वाले बीज और तकनीक अपनाकर उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता थी।
स्वतंत्रता के बाद अनाज की किल्लत से निपटने के लिए भारत द्वारा अपनाई गई खाद्यान्न नीति के तीन लक्ष्य थे। अनाज का उत्पादन बढ़े, हर समय पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न भंडारण रहे, किसानों की आय बेहतर हो और अनाज सस्ती दरों पर उपलब्ध हो। हालांकि इन तीनों पहलुओं को एक साथ नहीं साधा जा सकता है।
अगर अनाज का उत्पादन बढ़ेगा तो दाम घटेंगे और किसानों की आय पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। वहीं सरकार किसानों की आमदनी सुरक्षित रखने के लिए कृत्रिम तरीके से उपज की कीमतें अधिक निर्धारित करेगी तो इससे महंगाई बढ़ेगी, जिससे तीसरा लक्ष्य पूरा नहीं होगा। वास्तव में एमएसपी के जरिये कृत्रिम तरीके से कीमतों को प्रभावित करने से उन्हीं फसलों पर पूरा जोर होगा, जो उसके दायरे में आती हैं।