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महान क्रिकेटर सचिन तेंदलकर ने भी अपनी बल्लेबाजी पर अधिक ध्यान देने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी छोड़ दी थी
कीर्ति आजाद। महान क्रिकेटर सचिन तेंदलकर ने भी अपनी बल्लेबाजी पर अधिक ध्यान देने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी छोड़ दी थी। अब विराट कोहली भी अपने समय में बहुत अच्छी कप्तानी केबाद अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान देने के लिए टेस्ट की कप्तानी से भी हट रहे हैं। उनके अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन के जो भी चार-पांच साल बचे हैं, उसमें उन्हें अब अपने बेहतरीन प्रदर्शन पर पूरा ध्यान लगाना है। यह अच्छी बात है कि वह अपनी बल्लेबाजी पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं, इसीलिए उन्होंने पहले टी-20 की कप्तानी छोड़ी थी और अब टेस्ट की कप्तानी से भी पीछे हट गए हैं। टीम प्रबंधन ने एकदिवसीय टीम की कप्तानी में पहले ही परिवर्तन कर दिया है।
कोई शक नहीं कि टीम को एक कप्तान ही खड़ा करता है और अच्छा प्रदर्शन पूरे टीम को दिखाना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका दौरे में ही क्या हुआ? गेंदबाजों ने अपना काम ठीक से किया, लेकिन बल्लेबाज उम्मीद और जरूरत पर खरे नहीं उतरे। बल्लेबाजों ने भारतीय टीम को निराश किया। मुझे लगता है, दो खिलाड़ियों को टेस्ट में अवसर देना चाहिए था, सूर्यकुमार यादव और श्रेयस अय्यर, दोनों ने अच्छे रन बनाए हैं। दक्षिण अफ्रीका दौरे की पृष्ठभूमि में विराट कोहली ने कप्तानी छोड़ी है, लेकिन यह उनके खेल या उनके युग का अंत नहीं है। हां, कप्तानी एक जिम्मेदारी है, जिससे वह पीछे हटे हैं। टीम कोई हो, बदलाव की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। कप्तान आते हैं, जाते हैं। भारत ने टेस्ट क्रिकेट में 34 कप्तान देखे हैं और विराट कोहली 40 टेस्ट जीत के साथ भारत के सफलतम कप्तान हैं।
क्रिकेट केएक और सफलतम कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी भी गए थे और विराट कोहली को कमान मिली थी, अब विराट जाएंगे, तो किसी और को कमान सौंपी जाएगी। बदलाव का हमेशा स्वागत करना चाहिए और यह अच्छी बात है कि विराट अपनी मर्जी से पीछे हटे हैं।
तुलना हो रही है, लेकिन महेन्द्र सिंह धौनी से विराट कोहली की तुलना करना उचित नहीं लगता है, दोनों अलग-अलग तरह के खिलाड़ी हैं, लोग तुलना करेंगे, लेकिन ऐसी तुलना से क्या लाभ? क्या आप कपिल देव की कप्तानी की तुलना महेन्द्र सिंह धौनी की कप्तानी से करेंगे? कपिल देव तो उस टीम के कप्तान थे, जो पहली बार भारत के लिए विश्व कप जीती थी। उस दौर से आज के दौर की तुलना भी नहीं हो सकती। उस दौर में तो यहां तक कहा जा रहा था कि इस टीम को विश्व कप टूर्नामेंट में बुलाना बेकार है, लेकिन उसी टीम ने कमाल कर दिखाया था, तब सबकी बोलती बंद हो गई थी। लोगों की धारणा के विपरीत हम लोग जीतकर आए थे। उस दौर की टीम से आज के दौर की टीम की तुलना कैसे की जाए?
हर कप्तान अपने आप में अनूठा होता है। अच्छा खिलाड़ी बनने के बाद ही कोई कप्तान बनता है। कहीं सफलता मिलती है और कहीं नहीं मिलती। कुछ को ज्यादा सफलता मिलती है, तो कुछ को कम मिलती है। सबकुछ कप्तान के हाथ में नहीं होता है, बाकी दस खिलाड़ी भी तो टीम में खेल रहे होते हैं। अगर टीम के प्रदर्शन में कोई कमी रह गई है, तो इसमें केवल कोहली की क्या गलती है? जो लोग इस खेल को ठीक से नहीं जानते हैं, वे आलोचना कर सकते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में तीसरे टेस्ट की अपनी आखिरी पारी में विराट ने ज्यादा गेंदों पर बहुत कम रन बनाएं, ऐसे लोग वहां के हालात को भूल जाते हैं। विराट के पिच पर टिके रहने को भूल जाते हैं। किसी भी बड़े खिलाड़ी को किसी एक पारी या किसी एक शृंखला से नहीं आका जा सकता। यह सच है कि विराट केनेतृत्व में भारतीय टीम ने अपना उत्कर्ष देखा है। सचिन तेंदुलकर भी विश्व कप नहीं ला सके थे, क्या वह बड़े खिलाड़ी नहीं थे? राहुल द्रविड़ भी विश्व कप नहीं ला पाए, क्या वह बड़े खिलाड़ी नहीं कहलाएंगे? तुलना मत कीजिए कि वह विश्व कप नहीं ला पाए। तुलना कीजिए कि 1983 में आज जैसे बल्ले नहीं होते थे। फोम के पैड होते थे, पैरों में गेंद लगती थी, तो लाल-लाल निशान पड़ जाते थे। हेलमेट नहीं होते थे, तो हम लोग सिर बचाना जानते थे। आजकल गेंद हेलमेट पर बहुत लगती है, क्योंकि खिलाड़ियों को मालूम है कि उनके पास सुरक्षा कवच है। आप कैसे यह फैसला करेंगे कि सचिन तेंदुलकर बड़े बल्लेबाज थे या सुनील गावस्कर? सब अपने-अपने समय के सम्राट रहे हैं।
विराट कोहली को मैं बहुत अच्छे कप्तान के रूप में याद करूंगा। आगे बढ़कर वह नेतृत्व करते हैं। मजबूत इरादा रखते हैं। पहले ऐसा होता था कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी आक्रामक होते थे और हम चुप रहा करते थे। लेकिन अब विराट उन्हीं की भाषा में उन्हें जवाब देते हैं। इससे टीम भी प्रेरित होती है। खेल में हार-जीत तो सिक्के के दो पहलू हैं। विराट एक कप्तान के रूप में आक्रामकता और सकारात्मक सोच की विरासत छोड़कर जा रहे हैं। लड़ाई कोई हो, आपको सकारात्मक सोच से उतरना पड़ेगा, जो आदमी हारने से डरता हो, वह जिंदगी में कभी जीत ही नहीं सकता। विराट की सोच यही थी कि जीत के लिए जाएंगे और अच्छा खेलेंगे। जो यह सोचे कि मुझे हार बचानी है, वह जीतेगा कैसे?
उम्मीद है, विराट आगे बहुत अच्छा खेलेंगे। रोहित शर्मा भी बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं। अपनी कप्तानी में मुंबई इंडियन को चार बार जीत दिला चुके हैं। एक अच्छे कप्तान हैं, उनके अनुभव का फायदा होगा। अब यह चयनकर्ताओं को तय करना है कि किस फॉरमेट में कौन कप्तानी करेगा। मैं चयनकर्ता होता, तो भविष्य की सोचता। किसी ऐसे युवा खिलाड़ी पर भरोसा करता, तो आने वाले पांच-छह साल तक टीम का नेतृत्व कर सके। भारतीय टीम के कोच राहुल द्रविड़ हैं, बहुत सारे खिलाड़ी अंडर 19 में उनके अधीन खेल चुके हैं। उन्हें खिलाड़ियों के बारे में बेहतर मालूम है, अत: अगर कोई युवा कप्तान अगले कुछ साल तक रहता है, तो टीम के लिए ज्यादा अच्छा होगा। 34 वर्षीय रोहित शर्मा ये काम कितने समय तक कर पाएंगे, सोचना चाहिए। मैं चयनकर्ता होता, तो एकदिवसीय कप्तानी रोहित शर्मा को देता और बाकी फॉरमेट में किसी ऐसे खिलाड़ी को आगे लाता, जो लंबे समय तक टीम की कमान संभाल सके।
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