लोकसभा में मंगलवार को वित्त वर्ष 2022-23 का प्रस्तावित बजट पेश कर वित्त मंत्री ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि सरकार रियायतों के रास्ते पर नहीं, बल्कि सुधारों के रास्ते पर चलेगी। प्रस्तावित बजट अर्थव्यवस्था की तात्कालिक जरूरतों से ज्यादा आने वाले पच्चीस साल को ध्यान में रख कर बनाया गया है। जाहिर है, बजट में सारा जोर ऐसे सुधारों और उपायों पर केंद्रित है जो दूरगामी और स्थायी नतीजे देने वाले हों। इसके लिए ढांचागत विकास परियोजनाओं को रफ्तार देने की बात है।
सड़क, रेलवे, हवाईअड्डा, बंदरगाह, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और आपूर्ति शृंखला को मजबूत बनाने पर काम होगा। इसके अलावा, पच्चीस हजार किलोमीटर राष्ट्रीय सड़कें बनाने, नदियों को जोड़ने और चार सौ वंदे भारत ट्रेनें तैयार करने काम भी इसमें शामिल है। कहा गया है कि इन कदमों से रोजगार के मौके भी बनेंगे। पर बजट में इस समस्या का कोई फौरी समाधान नजर नहीं आ रहा कि मौजूदा बेरोजगारी से कैसे निपटें। इन सारे कामों के लिए बजट में पूंजीगत खर्च में पैंतीस फीसद की बढ़ोतरी कर इसे साढ़े सात लाख रुपए करने का प्रस्ताव है। ढांचागत क्षेत्रों के विकास में भारत की स्थिति वैसे भी कोई संतोषजनक नहीं है, इसलिए इन सब पर खर्च की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि हम ऐसे संकट भरे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए न सिर्फ दूरगामी उपायों, बल्कि तात्कालिक उपायों की जरूरत कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। उस लिहाज से देखा जाए तो जनता को फौरी राहत देने वाले बंदोबस्त कहां हैं? आयकर में कोई राहत नहीं देकर सरकार ने नौकरीपेशा तबके और मध्यवर्ग को निराश ही किया है। इससे यह साफ हो गया है कि सुधार की दीर्घकालीन कोशिशों में कड़वी गोली तो मध्यवर्ग को ही खानी पड़ेगी।
करदाताओं का दायरा बढ़ाने के उपायों पर कुछ होता नहीं दिख रहा। हां, प्रस्तावित बजट में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र के डिजिटलकरण की दिशा में तेजी से बढ़ने की बात साफ है। डिजिडल करेंसी शुरू होगी। इसके अलावा देश के पचहत्तर जिलों में डिजिटल बैंकिंग इकाइयां शुरू की जाएंगी। भले आभासी मुद्रा को कानूनी वैधता प्रदान न की गई हो, पर उससे होने वाली कमाई पर तीस फीसद कर लगा कर सरकार ने अपनी मंशा साफ कर दी है।
बजट किसानों को भी उतना ही निराश करने वाला है जितना कि मध्यवर्ग को। कहने को बजट में कृषि क्षेत्र के लिए योजनाओं का अंबार है, किसानों को हाइटेक बनाने पर जोर है, पर अस्सी फीसद से ज्यादा किसान इतने छोटे और निर्धन हैं कि खेतों में ड्रोन से छिड़काव करने की तकनीक की बात उनके लिए बेमानी लगती है। इस समस्या पर कोई गौर होता नहीं दिख रहा कि किसानों को उनकाबकाया कैसे दिलवाया जाए। अभी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का पिछले सत्र का लगभग डेढ़ हजार करोड़ और चालू सत्र का करीब सात हजार करोड़ रुपए बकाया है।
ऐसे में किसान बजट से कैसे खुश होगा? हां, रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने के लिए सरकार ने रक्षा बजट बढ़ा कर सवा पांच लाख करोड़ रपए कर दिया है। आने वाले वक्त में चुनौतियां कम नहीं है। पैसे का संकट है। हालात को देखते हुए सरकार विनिवेश का लक्ष्य घटा कर अब मात्र अठहत्तर हजार करोड़ रुपए पर ले आई है, जो पिछली बार पौने दो लाख करोड़ रुपए था। बजट को भले दूरगामी विकास वाला बताया जा रहा हो, लेकिन अगर महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं का जल्द इलाज न हो पाए तो ऐसा विकास किस काम का?