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- नींद से जागने की झूठी...
किस-किस को रोइए, क्यों न मुंह ढक के सोइए। लेकिन आप कहां सोना चाहते हैं जनाब? जिनके प्रासाद भव्य और अट्टालिकायें ऊंची हैं, उन्हें तो राजसी पलंगों पर दस-दस गद्दे बिछा कर भी नींद नहीं आती। एक शहजादी की कहानी कभी हमने सुनी थी। ज्यों-ज्यों उसके पलंग के गद्दे बढ़ते जा रहे थे, उसकी नींद और काफूर हो रही थी। बड़े-बड़े वैद्य बुलाए गए कि हमारी बिटिया की नींद लाओ। सब असफल, बिटिया का रतजगा खत्म होने में नहीं न आए। फिर एक गरीब-सी बुढि़या जो कभी इस राजकुमारी की आया थी, लाठी टेकती हुई आई। महाराज से गुज़ारिश की कि अलीजाह अगर हुक्म हो तो हम कोशिश करके देखें। महाराजा ने हिकारत से बुढि़या की ओर देखा। वह अंधेर नगरी के चौपट राजा थे। उन्होंने बूढ़ी की ओर हिकारत से ही नहीं देखा, गनीमत थी कि पहचान लिया। नहीं तो आजकल बूढ़ों को कौन भाव देता है? इंतजार अच्छे दिनों का था, तोहफा मिल गया मंदी का।