सम्पादकीय

गिरावट की मुद्रा

Subhi
17 Jun 2022 4:31 AM GMT
गिरावट की मुद्रा
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रुपए की कीमत में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। अठारह पैसे की। इस तरह अब एक डालर की कीमत अठहत्तर रुपए बाईस पैसे पर पहुंच गई है। सरकार एक तरफ महंगाई से पार पाने की कोशिश कर रही है

Written by जनसत्ता; रुपए की कीमत में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। अठारह पैसे की। इस तरह अब एक डालर की कीमत अठहत्तर रुपए बाईस पैसे पर पहुंच गई है। सरकार एक तरफ महंगाई से पार पाने की कोशिश कर रही है, इसके लिए पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाया गया, रिजर्व बैंक ने दो बार रेपो दर में बढ़ोतरी की। उसका कुछ असर खुदरा महंगाई पर दिखा भी। मगर थोक महंगाई अब भी काबू से बाहर बनी हुई है। ऐसे में रुपए की कीमत में लगातार गिरावट का रुख भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।

रुपए का मूल्य घटने का मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत अधिक चुकानी पड़ेगी। बाहर से वस्तुएं मंगाना और महंगा होगा तथा यहां से बाहर भेजना सस्ता। जो विद्यार्थी दूसरे देशों में पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें अधिक खर्च करना पड़ेगा। इसका सबसे भारी असर तेल की कीमतों पर पड़ेगा। भारत अपनी कुल जरूरत का करीब अस्सी फीसद तेल दूसरे देशों से खरीदता है। कच्चे तेल की कीमत पहले ही ऊंची है, रुपए की कीमत गिरने से उसके आयात पर अधिक धन खर्च करना पड़ेगा। स्वाभाविक ही उसका असर देश में तेल की कीमतों पर पड़ेगा। इससे महंगाई एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी। महंगाई के रहते विकास दर ऊंची रख पाना संभव नहीं होता।

रुपए की गिरती कीमत के पीछे एक वजह तो अमेरिकी केंद्रीय बैंक के अपनी ब्याज दरों में पचास आधार अंक की बढ़ोतरी बताया जा रहा है। मगर इसके अलावा दूसरी वजहें भी हैं, जो अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत की तरफ संकेत करती हैं। भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में निरंतर कमी आ रही है। इसकी वजह है कि विदेशी निवेशक तेजी से अपनी पूंजी निकाल कर वापस लौट रहे हैं। दूसरे, नए विदेशी निवेश उम्मीद के मुताबिक आ नहीं पा रहे। आमतौर पर निवेशकों में उदासीनता तभी देखी जाती है, जब वे अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति से चिंतित नजर आते हैं, अपनी पूंजी को सुरक्षित नहीं मानते और वे अपना हाथ खींचना शुरू कर देते है

सरकार बेशक कह रही हो कि अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, मगर हकीकत यह है कि मांग काफी घटी है। यही कारण है कि थोक महंगाई दर लगातार ऊपर का रुख किए हुई है। जब तक बाजार में मांग नहीं बढ़ेगी, तब तक निवेशकों का भरोसा नहीं बढ़ेगा। इसके लिए लोगों की क्रयश्ािक्त बढ़ाना जरूरी है, जो फिलहाल सरकार के वश की बात नहीं लगती। रोजगार के नए अवसर सृजित नहीं हो पा रहे, असंगठित क्षेत्र असुरक्षा के भयावह दौर से गुजर रहा है।

हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी पूरी दुनिया के बाजार पर बुरा असर पड़ा है। आयात-निर्यात का चक्र बाधित हुआ है। मगर भारत के संदर्भ में रुपए की गिरती कीमत की बड़ी वजह यहां की कमजोर अर्थव्यवस्था है। कोरोना पूर्व स्थिति में इसका पहुंचना चुनौती बना हुआ है। सरकार का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ गया है। ऐसे में रुपए की गिरती कीमत को रोकना मुश्किल बना रहेगा।

भरोसा जताया जा रहा है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ेगा, तो रुपए की कीमत नियंत्रण में आ जाएगी। मगर फिलहाल की आर्थिक स्थितियों को देखते हुए निकट भविष्य में इसकी उम्मीद नजर नहीं आती। यानी महंगाई अभी और बढ़ेगी। जब तक सरकार खपत बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित नहीं करती, तब तक विदेशी निवेश आकर्षित करना कठिन बना रहेगा। अर्थव्यवस्था की मजबूती के दावे खोखले ही साबित होते रहेंगे।


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