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सोर्स- Jagran
तथाकथित पेगासस जासूसी कांड में सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के निष्कर्ष यही रेखांकित कर रहे हैं कि इस मामले में केंद्र सरकार के खिलाफ सुनियोजित अभियान छेड़ने की जो कोशिश की गई, उसका कोई सिर-पैर नहीं था। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट केवल जासूसी के आरोपों की हवा ही नहीं निकालती, बल्कि यह भी इंगित करती है कि बिना किसी ठोस आधार के दुष्प्रचार का सहारा लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने के साथ देश का समय भी बर्बाद किया गया।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जासूसी का आरोप लगाकर किस तरह न केवल सड़कों पर हंगामा किया गया था, बल्कि संसद में भी आसमान सिर पर उठा लिया गया था। उस दौरान संसद के मानसून सत्र में न के बराबर काम हुआ था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार जो 29 मोबाइल फोन उसे जांच के लिए सौंपे गए, उनमें से केवल पांच में मालवेयर यानी तकनीकी वायरस तो मिला, लेकिन उसे पेगासस साफ्टवेयर नहीं कहा जा सकता।
जहां तक मालवेयर की बात है, वह ऐसे किसी भी तकनीकी उपकरण में पहुंच सकता है, जो इंटरनेट से लैस हो। किसी मोबाइल फोन में मालवेयर मिलने का यही मतलब नहीं होता कि उसके जरिये फोन धारक की जासूसी की जा रही है। कंप्यूटर, लैपटाप, मोबाइल फोन आदि में मालवेयर मिलना आम बात है।
इजरायली कंपनी पेगासस के खुफिया साफ्टवेयर के जरिये भारत सरकार नेताओं, पत्रकारों और अन्य प्रमुख लोगों की जासूसी करा रही है, इस सनसनीखेज आरोप ने तभी दम तोड़ दिया था, जब उन तमाम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की जांच करने वाली विशेषज्ञ समिति को अपने मोबाइल फोन सौंपने से इन्कार कर दिया था। ध्यान रहे कि तथाकथित खोजी पत्रकारिता का दम भरने वाले संदिग्ध किस्म के लोगों ने यह दावा किया था कि पेगासस साफ्टवेयर के जरिये भारत में कम से कम डेढ़ सौ लोगों की जासूसी की जा रही थी।
आखिर क्या कारण रहा कि इन डेढ़ सौ लोगों में से केवल 29 ने ही अपने मोबाइल फोन जांच के लिए सौंपे? इस प्रश्न का यही उत्तर हो सकता है कि ये लोग पहले से यह जान रहे थे कि उनकी ओर से जिस मामले को तूल दिया जा रहा है, उसमें कोई दम नहीं। इस पर हैरत नहीं कि ऐसे लोग अभी भी किंतु-परंतु का सहारा लेकर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करें, लेकिन इसके पहले उन्हें यह बताना चाहिए कि आखिर उन्होंने जांच में हिस्सा क्यों नहीं लिया? अच्छा यह होगा कि यह सवाल स्वयं सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूछा जाए।
Rani Sahu
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