सम्पादकीय

फर्जी का संजाल

Subhi
31 Oct 2022 5:04 AM GMT
फर्जी का संजाल
x
मगर कोई भी खबर पहुंचाने के लिए जिस परिपक्वता की जरूरत होती है, अभी उसकी काफी कमी देखी जाती है। ऐसे अनेक मौके सामने आते रहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास खबर के रूप में कोई बात पहुंचती है तो वह उसकी पुष्टि करने के बजाय उसे उसी रूप में आगे दूसरे लोगों को संप्रेषित कर देता है।

Written by जनसत्ता: मगर कोई भी खबर पहुंचाने के लिए जिस परिपक्वता की जरूरत होती है, अभी उसकी काफी कमी देखी जाती है। ऐसे अनेक मौके सामने आते रहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास खबर के रूप में कोई बात पहुंचती है तो वह उसकी पुष्टि करने के बजाय उसे उसी रूप में आगे दूसरे लोगों को संप्रेषित कर देता है।

पहले जब संचार के साधनों का अभाव था, तब एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह की कोई बात पहुंचने में वक्त लगता था और कई बार इसी क्रम में उस बात की तीव्रता कमजोर पड़ जाती थी। लेकिन तकनीकी विकास के इस दौर में बड़ी आबादी की मोबाइल या स्मार्टफोन तक पहुंच बनी है और उनमें से ज्यादातर किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, जो आज संचार और संप्रेषण का सबसे तेज और प्रभावी जरिया बन चुका है।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति बिना पुष्टि किए किसी घटना की जानकारी किसी अन्य व्यक्ति को सोशल मीडिया के माध्यम से भेजता है तो उसके फैलने और उसके प्रभाव की रफ्तार क्या होगी। इसीलिए प्रधानमंत्री ने संवाद के एक सशक्त माध्यम के तौर पर सोशल मीडिया पर किसी खबर या घटना के प्रसार को लेकर देश के नागरिकों को जरूरी संदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि फर्जी खबरें बेहद खतरनाक हैं और उसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं; कोई एक फर्जी खबर भी बढ़ कर राष्ट्रीय चिंता का विषय बनने की क्षमता रखती है, इसलिए उन पर लगाम कसने के लिए देश को उन्नत तकनीक पर जोर देना होगा।

आए दिन यह देखा जाता है कि आम लोग कुछ ऐसे ब्योरे भी बिना किसी हिचक के दूसरों को भेज देते हैं, जो सच्चाई से काफी दूर होते हैं, मगर उनका किसी व्यक्ति और समुदाय पर व्यापक असर भी पड़ सकता है। झूठी और नफरत फैलाने वाली खबरों की वजह से कई बार हिंसा और दंगे तक फैलने की स्थिति आ जाती है।

विडंबना यह है कि फर्जी खबरों को बिना सोचे-समझे प्रसारित कर देना आज एक प्रवृत्ति बनती जा रही है और ज्यादातर लोग किसी भी माध्यम से आई सूचना की सच्चाई की जांच करना जरूरी नहीं समझते। जबकि हाथ में मौजूद जिस स्मार्टफोन और इंटरनेट के जरिए वे फर्जी खबरों को प्रसारित करने के हिस्सेदार बन रहे होते हैं, उसी का इस्तेमाल कर बहुत थोड़े वक्त में किसी खबर की हकीकत की पड़ताल की जा सकती है।

स्मार्टफोन और कंप्यूटर जैसे संचार के साधनों तक जैसे-जैसे लोगों की पहुंच बढ़ती जा रही है, उसके मद्देनजर पिछले कुछ समय से फर्जी खबरों के जरिए अपनी मंशा साधने वालों ने संगठित तौर पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है। जबकि अगर इस माध्यम का सही इस्तेमाल किया जाए तो उपयोगी विचार अपने सच्चे स्वरूप में आम लोगों तक पहुंचाए जा सकते हैं और इन मंचों को उपयोगी बनाया जा सकता है। ऐसा कुछ हद तक हुआ भी है। लेकिन सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों का बेजा इस्तेमाल जिस कदर बढ़ा है, वह वास्तव में चिंता की बात है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि सच का आधार जहां किसी माध्यम को बेहद उपयोगी बना सकता है, वहीं झूठ उसे नुकसान का बड़ा हथियार भी बना सकता है।


Next Story