सम्पादकीय

देश की छवि बिगाड़ रहे फर्जी कॉल सेंटर, तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं लग पाई कोई रोक

Gulabi
6 Jan 2021 2:17 PM GMT
देश की छवि बिगाड़ रहे फर्जी कॉल सेंटर, तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं लग पाई कोई रोक
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यह किसने सोचा था कि देश में जोरशोर से चलाए जा रहे डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों का एक नतीजा इस रूप में निकलेगा कि

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह किसने सोचा था कि देश में जोरशोर से चलाए जा रहे डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों का एक नतीजा इस रूप में निकलेगा कि टेक्नोलॉजी के जानकार कुछ लोग जब चाहेंगे, जिसे चाहेंगे, लूट लेंगे। ये शब्द चुभ सकते हैं, देश के अभिमान को तोड़ सकते हैं, लेकिन जिस तरह से इन दिनों देश में फर्जी कॉल सेंटरों के जरिये हो रहे गोरखधंधे की फेहरिस्त सामने आ रही है, उससे साबित हो रहा है कि इस फर्जीवाड़े पर तमाम कोशिशों के बावजूद कोई रोक नहीं लग पाई है। तथ्यों के मुताबिक गत साल देश में फर्जी कॉल सेंटरों से दुनिया भर के हजारों लोगों को ठगा गया। इसमें सबसे ज्यादा ठगी अमेरिकी नागरिकों से हुई। करीब 20 हजार अमेरिकियों को इस किस्म के फर्जीवाड़े का शिकार बनाया गया। इस दौरान फर्जी कॉल सेंटरों से करीब 400 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की गई। ठगी का यह सिलसिला नया नहीं है, बल्कि बीते करीब पांच वर्षो से ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं।



एक तोहमत झारखंड के जामताड़ा पर लगती रही है कि यह स्थान दुनिया भर के साइबर क्राइम का गढ़ है, लेकिन अब साबित हो रहा है कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, कोलकाता जैसे बड़े शहरों से लेकर कई छोटे कस्बों में बैठे आइटी के जानकार युवा भी इसमें पीछे नहीं हैं। यदि बात देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर इलाके की हो तो दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की साइबर यूनिट ने बीते साल यहां सबसे ज्यादा 20 से अधिक फर्जी कॉल सेंटरों का भंडाफोड़ किया। इनमें से पांच काफी बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे थे, जिनमें से हरेक में 30 से ज्यादा युवा काम कर रहे थे। साइबर क्राइम यूनिट ने इन फर्जी कॉल सेंटरों के संचालन में एक बड़े अंतर का भी पता लगाया है। पुलिस के मुताबिक पहले ऐसे ज्यादातर मामलों में किसी कॉल सेंटर में काम करने वाला पूरा स्टाफ फर्जीवाड़े में शामिल नहीं होता था। केवल इसके संचालक ही ऐसा करते थे और कुछ युवाओं से यह काम कराते थे, लेकिन अब इन फर्जी कॉल सेंटरों में काम करने वाले सभी स्टाफ को यह बखूबी पता होता है कि वे विदेशियों को तरह-तरह से भयभीत करते हुए उनसे ठगी कर रहे हैं। एक और उल्लेखनीय बदलाव यह पता चला है कि फर्जी कॉल सेंटरों के पकड़े जाने की खबरें पढ़कर ही इन युवाओं के दिमाग में इस तरह से रातोंरात अमीर बनने का विचार आता है और वे आगा-पीछा सोचे बगैर इस धंधे में शामिल हो जाते हैं। इन घटनाओं को देखकर हरेक के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यही हमारे देश की डिजिटल साक्षरता का हासिल है? क्या ऐसे ही साइबर क्राइम करने के लिए हमारे कुछ नौजवान आइटी की शिक्षा हासिल कर रहे हैं? वे लालची हैं या फिर कहीं बेरोजगारी से परेशान होकर उन्होंने साइबर ठगी का यह रास्ता अख्तियार कर लिया है?
ऐसा कोई सगा नहीं..

बीते वर्षो में घटित मामलों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले कुछ अर्से से प्राय: हर साल हमारे देश में साइबर क्राइम का कोई न कोई नया रूप सामने आ रहा है। इन मामलों पर अक्सर नजर तभी जाती है, जब कोई बड़ा मामला पकड़ में आता है। जैसे तीन साल पहले वर्ष 2017 में नोएडा में सिर्फ तीन लोगों ने इंटरनेट पर एक पोंजी स्कीम बनाकर सैकड़ों पढ़े-लिखे लोगों को 37 अरब रुपये का चूना लगा दिया था। ऑनलाइन ठगी का यह एक कीíतमान था, क्योंकि इससे पहले देश में इतने बड़े पैमाने पर कोई साइबर घोटाला नहीं हुआ था। वर्ष 2018 में तीन दर्जन लोगों ने इससे भी बड़ा हाथ मारने की कोशिश की। इन लोगों ने इंटरनेट कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के नाम पर फर्जी कॉल सेंटर के जरिये करीब 15 देशों के 50 हजार लोगों को अपने जाल में फंसाकर लूट लिया। इस गिरोह का भंडाफोड़ तब हुआ, जब अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआइ), इंटरपोल और कनाडा की रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस ने गुरुग्राम और नोएडा पुलिस को मामलों की जांच को कहा और इसमें दोनों शहरों के 17 फर्जी कॉल सेंटरों से 42 लोगों की धरपकड़ हुई। इनमें से आठ कॉल सेंटर गुरुग्राम के थे। जबकि नौ नोएडा के। इन लोगों द्वारा की गई साइबर ठगी की जानकारी माइक्रोसॉफ्ट को अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड समेत 15 देशों के लोगों की शिकायत के जरिये मिली थी, जिसमें बताया गया था कि कुछ लोग माइक्रोसॉफ्ट के नाम पर उनके कंप्यूटरों में मालवेयर (एक तरह के कंप्यूटर वायरस) भेज देते हैं और फिर उन्हें निकालने के नाम पर माइक्रोसॉफ्ट का हवाला देकर सौ से एक हजार अमेरिकी डॉलर तक ऐंठ लेते हैं। फर्जी कॉल सेंटरों के रूप में किए जा रहे साइबर फर्जीवाड़े की घटनाओं से यह विचार करने की जरूरत पैदा हुई है कि आखिर जागरूकता की तमाम कोशिशों के बावजूद लोग साइबर ठगों के जाल में फंसने से बच क्यों नहीं पा रहे हैं और क्यों ऐसे मामले बिल्कुल शुरुआत में पकड़ में नहीं आ पाते हैं?

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इंटरनेट के प्रचार-प्रसार का दौर शुरू होने के बाद से यह लगातार कहा जाता रहा है कि भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती साइबर आपराधिक गतिविधियां ही होंगी। यानी इंटरनेट के माध्यम से संचालित की जाने वाली वे आपराधिक और आतंकी गतिविधियां जिनसे कोई व्यक्ति या संगठन देश-दुनिया और समाज को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करे। अभी तक देश में इस तरीके से कई गैरकानूनी काम हुए हैं, जैसे ऑनलाइन ठगी, बैंकिंग नेटवर्क में सेंधमारी, गलत प्रोफाइल बनाकर लोगों-खासकर महिलाओं को परेशान करना आदि, लेकिन अब इसमें सोशल नेटवìकग के जरिये एक किस्म की पोंजी स्कीम चलाना और फर्जी कॉल सेंटरों से पूरी दुनिया के लोगों को ठगना भी जुड़ गए हैं। इसमें शक नहीं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ठगी के दर्जनों तरीके हैं जिनके जरिये लोगों को फंसाया जाता है और उनसे रकम ऐंठी जाती हैं। लॉटरी का झांसा देना, किसी दूसरे मुल्क में वसीयत में छोड़ी गई संपत्ति आपके नाम ट्रांसफर करने के बदले फीस मांगना, विदेश से आए तोहफे की ड्यूटी चुका उसे आप तक पहुंचाना, क्रेडिट-डेबिट कार्ड की हैंकिंग जैसी अनगिनत वारदातें तकरीबन रोज होती हैं। और एक किस्सा बंद होते ही साइबर ठगी का कोई दूसरा नया उदाहरण हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। ऐसे हादसे साबित करते हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में सजगता का सारा मामला एकतरफा है। यानी लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करना तो सीख गए हैं, पर उसके विभिन्न मंचों पर क्या-क्या सावधानियां बरतें-इसका उन्हें कोई आइडिया ही नहीं है। सरकार भी कानून पर कानून तो बनाती रहती है, पर उसके पहरुओं की नींद भी तभी टूटती है जब करोड़ों का घोटाला हो चुका होता है और लाखों लोग अपनी पूंजी गंवा चुके होते हैं।

कब रुकेगी साइबर सेंधमारी

देश का बैंकिग सेक्टर भी साइबर ठगों के निशाने पर है। आज स्थिति यह है कि लगभग पूरे देश में रोजाना ही डेबिट कार्ड फ्रॉड की दर्जनों शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं। कोई नहीं जानता कि एटीएम फ्रॉड, बीपीओ के जरिये देश-विदेश में ठगी, क्लोनिंग के जरिये क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन-निकासी और बड़ी कंपनियों के अकाउंट एवं वेबसाइट की हैकिंग और फिरौती वसूली की घटनाओं का यह सिलसिला कहां जाकर रुकेगा। हालांकि पहली नजर में ये मामले खुद ग्राहकों के डिजिटल अज्ञान की समस्या ज्यादा लगते हैं। दावा किया जाता है कि ऐसे मामलों में या तो ग्राहक खुद ही किसी फर्जी फोन कॉल पर अपनी डिजिटल पहचान (जैसे अपने एटीएम कार्ड से जुड़े विवरण) दे देता है, लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं है। जालसाजी की बहुत-सी घटनाओं से साबित हुआ है कि उपभोक्ता ने सारी सावधानियां बरतीं, लेकिन हैकिंग अथवा एटीएम मशीनों में अपराधियों द्वारा लगाई गई स्कीमर जैसी डिवाइसों से उनके कार्ड की सूचनाएं (कार्ड नंबर, सीवीवी और पासवर्ड) पढ़ ली गईं, जिनका बाद में दुरुपयोग किया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि बैंकिंग से जुड़े सुरक्षात्मक उपायों की साइबर अपराधियों ने हवा निकालकर रख दी है और वे डिजिटल उपाय करने वाले महारथियों से दो कदम आगे के जानकार साबित हो रहे हैं। इनके घोटाले के तौर-तरीकों को देखकर आज कोई इसे लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता है कि जहां कहीं भी पैसे और सामान के लेनदेन का कोई डिजिटल उपाय काम में लाया जा रहा है, वह फूलप्रूफ है और उसमें धांधली की कोई गुंजाइश नहीं है।
बेरोजगारी या लालच युवा किसके शिकार

सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में भारत खुद को अगुआ देश मानता रहा है। इसके आइटी एक्सपर्ट पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। अमेरिका के कैलिफोíनया में स्थापित सिलीकॉन वैली की स्थापना तक में युवा भारतीय आइटी विशेषज्ञों की भूमिका मानी जाती है। इससे साबित होता है कि देश में आइटी से जुड़ी प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन यदि इन्हीं कुशल युवाओं की एक बड़ी फौज साइबर ठगी करने में संलग्न है तो इसकी एक बड़ी वजह या तो खुद युवाओं का लालच है या फिर बेरोजगारी, जिसकी जकड़ से बाहर निकलने का आसान रास्ता उन्हें हाई प्रोफाइल साइबर क्राइम करने में नजर आता है।

ऐसे में जरूरी हो गया है कि साइबर ठगी की जड़ों पर ही पहला प्रहार हो। जो सरकार और पुलिस ठगी की बड़ी घटना के बाद संदिग्ध लोगों की धरपकड़ से लेकर उनके नेटवर्क का पता लगाने में मुस्तैद नजर आती है, वह किसी साइबर कंपनी और कॉल सेंटर को कामकाज शुरू करने की इजाजत देने से पहले यह पड़ताल क्यों नहीं करती कि आखिर वह किस प्रकृति का काम करने जा रही है? क्या कंपनी एक्ट उसे ऐसी जानकारियां लेने से रोकता है या फिर सरकार का काम सिर्फ कागजी कार्रवाई निपटाने तक सीमित है?
सवाल आसान कमाई के ऐसे हजारों तरीके खोजने और उसमें अपनी पूंजी फंसाकर सिर पीटने वाली युवा पीढ़ी से भी है जो वैसे तो बेरोजगारी का रोना रोती है, लेकिन जब किसी जरिये से उसके पास थोड़े-बहुत पैसे आते हैं तो वह उनका इस्तेमाल ऐसे कामों में करती है जो आगे चलकर गैरकानूनी ही साबित होते हैं। युवा पीढ़ी ही नहीं, प्रशासन भी इन बातों पर विचार करके साइबर ठगी की जड़ों पर प्रहार करेगा तो मुमकिन है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।


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