सम्पादकीय

आस्था बनाम हिंसा

Subhi
13 Jun 2022 5:21 AM GMT
आस्था बनाम हिंसा
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विवादित बयान को लेकर शुक्रवार को जिस तरह विरोध प्रदर्शन हिंसा में बदल गया, उसे अप्रत्याशित नहीं माना जा सकता। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि विवादास्पद बयान देने वाले दोनों नेताओं को गिरफ्तार किया जाए।

Written by जनसत्ता: विवादित बयान को लेकर शुक्रवार को जिस तरह विरोध प्रदर्शन हिंसा में बदल गया, उसे अप्रत्याशित नहीं माना जा सकता। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि विवादास्पद बयान देने वाले दोनों नेताओं को गिरफ्तार किया जाए। शुक्रवार को जब जुमे की नमाज पढ़ी जा रही थी, कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन करते लोग जमा हुए और फिर उनके समर्थन में भीड़ उत्तेजित हो उठी। पत्थरबाजी शुरू हो गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। कुछ जगहों पर आगजनी की घटनाएं भी हुर्इं। यों सबसे अधिक उग्र भीड़ रांची में देखी गई, जिस पर काबू पाने के लिए पुलिस को गोलियां दागनी पड़ी।

उसमें दो लोग मारे गए। मगर देश के अनेक राज्यों में भी इसी तरह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो उठा। जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों में पत्थरबाजी की गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। हालांकि सरकारें इन उग्र प्रदर्शकारियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं, पर फिर एक बार यह सवाल उठा है कि कैसे प्रदर्शनकारी अचानक उग्र हो उठे और प्रशासन उन पर काबू न पा सका। इतनी जगहों पर प्रदर्शन के हिंसक रूप ले लेने के पीछे जरूर कोई साजिश हो सकती है। जिन लोगों ने जुमे की नमाज के लिए जुटे लोगों को उकसाया, उनके मकसद पर शक स्वाभाविक है।

लोकतंत्र में किसी मसले पर विरोध प्रदर्शन करना लोगों का नागरिक अधिकार है, पर हिंसक बर्ताव करना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। किसी को भी किसी की आस्था पर चोट पहुंचाने का अधिकार नहीं है। इसके लिए उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। पैगंबर पर दिए बयान को लेकर दुनिया भर में नाराजगी जाहिर की गई। उस पर सरकार ने संबंधित नेताओं को खिलाफ कार्रवाई की भी है। उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है।

इसलिए अपेक्षा की जा रही थी कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग न्यायालय के फैसले का इंतजार करेंगे और ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिससे देश और समाज में अस्थिरता पैदा हो। पर कुछ शरारती तत्त्वों को शायद यह मुद्दा एक अवसर की तरह हाथ लगा है और वे इसे भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने विरोध प्रदर्शन के लिए मस्जिदों को चुना। सब जानते हैं कि जुमे की नमाज के लिए भारी संख्या में लोग जुटते हैं और उन्हें उत्तेजित कर अपना मकसद आसानी से साधा जा सकता है। वरना उनका मकसद सचमुच केवल विरोध प्रदर्शन करना होता, तो वे कोई और जगह चुनते।


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