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जनतंत्र में हर किसी को धार्मिक आस्था की आजादी है। उसे अपनी आस्था की रक्षा करने का भी अधिकार है। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि कानून की परवाह ही न करें।
जनतंत्र में हर किसी को धार्मिक आस्था की आजादी है। उसे अपनी आस्था की रक्षा करने का भी अधिकार है। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि कानून की परवाह ही न करें। किसी की आस्था अगर दूसरे के अधिकारों का हनन या कानून का उल्लंघन करती है, तो उसे किसी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। मगर शायद निहंग जत्थेबंदी के लोगों को इस मर्यादा की परवाह नहीं। पिछले हफ्ते उन्होंने सिंघू सीमा पर एक युवक का अंग भंग कर इसलिए उसकी हत्या कर दी कि उसने पवित्र ग्रंथ का तथाकथित अनादर किया। किसी के भी धर्मग्रंथ की बेअदबी नहीं होनी चाहिए।
अगर कोई ऐसा करता है, तो उसे कानूनी रूप से दंडित करने का प्रावधान है। मगर निहंग जत्थे के लोगों ने आरोपी युवक को खुद दंडित करना उचित समझा। जब उस मामले की चौतरफा निंदा शुरू हुई तो तीन लोगों ने खुद को जिम्मेदार मानते हुए पुलिस के सामने समर्पण कर दिया। इनमें एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। हरियाणा पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जांच शुरू कर दी। मगर पुलिस की सख्ती पर निहंगों ने धमकी दी है कि अगर हरियाणा पुलिस ने एक भी और सदस्य की गिरफ्तारी की तो वे अपने चार गिरफ्तार सदस्यों को भी छुड़ा लेंगे।
हालांकि यह पहली घटना नहीं है, जब खुद को कानून से ऊपर मानते हुए निहंगों ने किसी मामले में खुद दंड देना उचित माना। कुछ महीने पहले ही पंजाब में जब एक पुलिसकर्मी ने उनसे कोरोना नियमों का पालन करने को कहा, तो उसका हाथ काट डाला था। कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों का आंदोलन चल रहा है। इसके समर्थन में निहंग भी सिंघू बार्डर पर धरना दे रहे हैं।
हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने शुरू से निहंगों को अपने से अलग रखा है। युवक की हत्या पर भी उसने निहंग जत्थेबंदी की आलोचना की। इसलिए कि किसान नेताओं को बिल्कुल भरोसा नहीं है कि निहंग जत्थेबंदी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलने देगी। छब्बीस जनवरी को हुए उपद्रव के समय भी निहंग सदस्य घोड़ों पर सवार भाला और तलवारें लहराते देखे गए थे। लोकतंत्र में किसी बात के विरोध का यह तरीका कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। अगर गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी हुई थी, तो आरोपी को कानून के हवाले किया जाना चाहिए था।
यह अच्छी बात है कि कुछ निहंग सदस्यों ने अपनी जिम्मेदारी मानते हुए पुलिस के समक्ष समर्पण कर दिया। मगर इतने भर से मामला रफादफा नहीं हो जाता। जिस बर्बरता से उस युवक को मारा गया, वह कोई सभ्य समाज की निशानी नहीं है। अपनी आस्था के नाम पर किसी से उसका जीने का अधिकार छीन लेने की आजादी किसी को नहीं दी जा सकती।
पुलिस को कानून सम्मत जांच और कार्रवाई का अधिकार है और अपेक्षा की जाती है कि निहंग सदस्य उसमे सहयोग करें न कि धौंस पट्टी दिखाएं। इस तरह धमाका या भयभीत कर पुलिस को उसके काम से अलग रखने का प्रयास भी कानूनी रूप से दंडनीय है। क्या निहंग इस देश के नागरिक नहीं, जो वे अपनी समांतर सत्ता और व्यवस्था चलाना चाहते हैं। एक के बाद दूसरी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे। उनकी धौंस की परवाह न करते हुए पुलिस से यही अपेक्षा की जाती है कि वह इस मामले पर सख्त और कानून सम्मत रुख अख्तियार करेगी।
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