सम्पादकीय

विश्वास पर फिर प्रहार

Gulabi
22 Dec 2021 6:00 AM GMT
विश्वास पर फिर प्रहार
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अब इस प्रकरण से जुड़ी एक अहम बात वर्तमान सरकार नहीं समझती
अब इस प्रकरण से जुड़ी एक अहम बात वर्तमान सरकार नहीं समझती या समझना नहीं चाहती यह हमें नहीं मालूम। ये अहम बात यह है कि लोकतंत्र में चुनावों का महत्त्व तभी तक कायम रहता है, जब तक सभी दलों का उसकी निष्पक्षता में यकीन रहता है। विश्वास का सीधा संबंध धारणा है।
वोटर पहचान पत्र से आधार कार्ड को जोड़ने के लिए निर्वाचन आयोग को अधिकृत करने का कानून सरकार ने अपने अंदाज में पारित करा लिया है। इस योजना को लेकर कई तकनीकी सवाल उठाए गए हैँ। मसलन, डेटा प्राइवेसी के संभावित हनन की आशंका जताई गई है। साथ ही तेलंगाना/ आंध्र प्रदेश के पूर्व अनुभव के आधार पर यह अंदेशा भी जताया गया है कि आधार कार्ड में शामिल तमाम आंकड़े सत्ताधारी पार्टी तक पहुंच सकते हैं, जिसका इस्तेमाल वह अपनी चुनावी रणनीति को पुख्ता बनाने के लिए कर सकती है। बहरहाल, इन आशंकाओं को अगर दरकिनार कर दें, तब भी एक बड़ा प्रश्न बाकी रह जाता है। यह बात चुनाव प्रक्रिया की अटूट विश्वसनीयता से जुड़ा है। यहां तक खेलों में भी यह माना जाता है कि भागीदार सभी टीमों को वहां समान धरालत मिलना चाहिए। इससे जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है कि नियम ऐसे हों, जिनसे किसी टीम में यह धारणा ना बने कि उससे किसी एक खास टीम को लाभ होगा। इसीलिए अगर मैच के भीतर अगर कभी नियम में किसी हेरफेर की जरूरत पड़ती है, तो ऐसा तभी किया जाता है, जब संबंधित टीमों के कप्तान उस पर सहमत होँ।
अब अगर आधार कार्ड और वोट आई कार्ड को जोड़ने के मुद्दे पर गौर करें, तो ये साफ है कि इस कार्य के लिए विपक्षी दलों की सहमति हासिल नही की गई है। इन दलों ने संसद में संबंधित बिल का जोरदार विरोध किया। अब इस प्रकरण से जुड़ी एक अहम बात वर्तमान सरकार नहीं समझती या समझना नहीं चाहती यह हमें नहीं मालूम। ये अहम बात यह है कि लोकतंत्र में चुनावों का महत्त्व तभी तक कायम रहता है, जब तक सभी दलों का उसकी निष्पक्षता में यकीन रहता है। विश्वास का सीधा संबंध धारणा है। यानी मुमिकन है कि कभी सचमुच कोई गड़बड़ी नहीं हुई। इसके बावजूद अगर किसी पक्ष में गड़बड़ी का शक बैठ गया हो, तो बात बिगड़ जाती है। इस मामले में विपक्षी दलों के मन में कई संदेह हैँ। सरकार ने उन्हें दूर करने के बजाय संसदीय बहुमत की ताकत से आगे बढ़ने का फैसला किया है। इसका असर भारत में चुनावों की साख पर पड़ेगा। पहले से ही ऐसे कई सवाल मौजूद हैं, जिसने साख पर सवाल उठे हैं। अफसोस की बात है कि सरकार को इसकी फिक्र नहीं है कि इससे लोकतंत्र को कितना नुकसान पहुंच सकता है।
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