सम्पादकीय

आस्था और भगदड़

Subhi
3 Jan 2022 2:24 AM GMT
आस्था और भगदड़
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नए साल पर वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन करने गए लोगों में भगदड़ मचने से बारह लोगों के मारे जाने और चौदह के जख्मी होने की खबर ने एक बार फिर धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था को रेखांकित किया है।

नए साल पर वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन करने गए लोगों में भगदड़ मचने से बारह लोगों के मारे जाने और चौदह के जख्मी होने की खबर ने एक बार फिर धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था को रेखांकित किया है। इस घटना के पीछे कारण कुछ युवाओं के बीच हुआ विवाद और धक्का-मुक्की बताया जा रहा है। यों वैष्णो देवी मंदिर परिसर की सुरक्षा व्यवस्था और श्रद्धालुओं के दर्शन आदि का प्रबंध काफी व्यवस्थित माना जाता है।

वहां ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया। खासकर नवरात्र के दिनों में वहां खासी भीड़ जमा होती है, पर सब कुछ सुगम तरीके से संपन्न हो जाता है। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वहां दर्शन के लिए जाने की जगहें संकरी होने की वजह से कभी भी ऐसे हादसे की आशंका बनी रहती है। वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने अपनी तरफ से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे हैं, मगर उपद्रवियों के अव्यवस्था फैलाने की मानसिकता को रोकना आसान नहीं होता। इसलिए इस घटना से सबक लेते हुए इस दिशा में नए ढंग से सोचने की जरूरत है।
यह पहली घटना नहीं है जब किसी धार्मिक स्थल पर इस तरह भगदड़ मचने से लोग मारे गए। कई ऐसी घटनाएं पहले हो चुकी हैं। तमाम घटनाओं का सबक यही है कि मंदिर परिसरों के आसपास की जगहें संकरी होने की वजह से हादसों पर काबू पाना कठिन होता है। देश के ज्यादातर मंदिरों के आसपास इस कदर दुकानों आदि का फैलाव होता गया है कि वहां लोगों के आने-जाने के लिए जगहें बहुत कम रह गई हैं। प्रसिद्ध मंदिरों पर त्योहारों और किन्हीं खास दिनों में खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों को मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है।
ऐसे में अगर किसी अफवाह या बदअमनी की वजह से भगदड़ मचती है, तो बहुत सारे लोग कुचल कर मारे जाते हैं। वैष्णो देवी में हुई ताजा घटना ने इस बात की तरफ भी इशारा किया है कि आजकल मंदिरों, धार्मिक स्थलों में बहुत सारे उच्छृंखल युवा आस्था की वजह से नहीं, बल्कि फैशन के चलते, सैलानी की तरह दर्शन करने पहुंच जाते हैं। उन्होंने धार्मिक स्थलों को भी तफरीह का अड्डा बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में भीड़भाड़ के वक्त उन्हें धैर्य नहीं रहता, किसी तरह जल्दी दर्शन आदि करके फुरसत पा लेना चाहते हैं। उनकी इसी प्रवृत्ति की वजह से कई बार विवाद और धक्का-मुक्की की नौबत आ जाती है। वैष्णो देवी में भी यही हुआ होगा।
किसी की आस्था को जांचने का कोई पैमाना तो है नहीं, जिससे उच्छृंखल प्रवृत्ति के लोगों पर अंकुश लगाया जा सके। पर मंदिर परिसरों में संकुचित हो गई जगहों को खोलने पर विचार तो किया ही जा सकता है। फिर यह भी किया जा सकता है कि एक समय में लोगों की अधिक भीड़ न जमा होने दी जाए, उन्हें छोटे-छोटे जत्थों में छोड़ा जाए। हर थोड़ी दूरी पर सुरक्षा दस्ते तैनात किए और मंच बनाए जाएं, जिनके जरिए उपद्रवी किस्म के लोगों पर नजर रखी जा सके। काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर भी इसी तरह संकुचित हो गया था, जहां किसी बड़े हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती थी। सरकार ने उस इलाके को चौड़ा कर दिया है। इसी तरह जिन मंदिरों में भीड़ अधिक इकट्ठा होती हो, उन्हें विस्तृत करने की योजना बनाई जानी चाहिए। वहां प्रकाश आदि की भी मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए।

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