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- फैसिलिटेशन परिषद : लघु...
पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद, गत 50 वर्षों में प्रदेश ने औद्योगिक विकास के फ्रंट पर काफी प्रगति की है। जहां शुरू में उद्योग के नाम पर कुछ गिने-चुने उद्यम ही थे, आज तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। जाने-माने औद्योगिक घरानों ने प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया है, परंतु आंकड़ों की दृष्टि से देखा जाए जो अभी भी लगभग 98 प्रतिशत उद्यम भारत सरकार द्वारा उद्यम वर्गीकरण की नई परिभाषा के अनुसार ''सूक्ष्म व लघु'' की श्रेणी में आते हैं। सूक्ष्म उद्यम वो हैं जिनमें एक करोड़ रुपए तक का पूंजी निवेश, ''संयंत्र व मशीनरी'' में लगा हो व सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए तक हो। लघु उद्यम वो कहलाते हैं जिनका सालाना कारोबार 50 करोड़ रुपए तक हो व ''प्लांट व मशीनरी'' में निवेश 10 करोड़ रूपए तक हो। उद्योगों के वर्गीकरण के पायदान में सूक्ष्म व लघु सबसे निचली श्रेणी के उद्यम हैं। आए दिन ये उद्यम जो अपना ''उत्पाद व सेवाएं'' दूसरी पार्टी को बेचते हैं, पर समय पर पैसे की अदायगी न होने पर संकट में रहते हैं। कई बार तो जब इनका बहुत सारी कैपिटल (वसूली योग्य राशि) खरीददार के पास फंस जाती है तो ''समुचित कार्यशील पूंजी'' उपलब्ध न होने के कारण ऐसे उद्यमों के बंद होने तक की नौबत आ जाती है। यह भी उद्योगों की रूग्णता का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। यदि अपने धन की वसूली के लिए वे कोर्ट का रुख करते हैं तो सालों-साल फैसला होने में लग जाते हैं। सन् 2006 में भारत सरकार के ''सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालय'' द्वारा ''सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग विकास अधिनियम -2006'', लाया गया जो कि ऐसे उद्यमों की स्थापना व परिचालन को नियंत्रित करता है। इसी अधिनियम के ''चैप्टर-5'' में विलंबित अदायगी (डिलेड पेमंेटस) के शीघ्र निपटान हेतु राज्यों के लिए ''फैसिलिटेशन परिषद'' के गठन की व्यवस्था की गई है। विलंबित अदायगी की सबसे अधिक समस्या सूक्ष्म व लघु उद्यमों के समक्ष आती है। इसी को ध्यान में रखते हुए केवल इन्हीं दो श्रेणियों के लिए फैसिलिटेशन परिषद की व्यवस्था की गई है। फैसिलिटेशन परिषद एक ऐसा ''अर्द्धन्यायिक निकाय'' है, जिसका पदेन सभापति उद्योग विभाग का निदेशक होता है। इस निकाय में राज्य वित्त निगम, राज्य स्तरीय बैंकर समिति तथा औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधि सदस्य के रूप में रहते हैं। अर्द्धन्यायिक निकाय होने के कारण यह एक स्वायत्त निकाय है, जिसकी कार्यप्रणाली पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।