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- अपराध का चेहरा
Written by जनसत्ता: दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में एक युवती की हत्या का जैसा मामला सामने आया है, उसने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अपराध आखिर किन शक्लों में हमारे आसपास पल रहा है! यों इस वाकये को भी एक आपराधिक घटना के तौर पर ही दर्ज किया जाएगा, लेकिन इसमें भरोसे और संबंध का जो पहलू जुड़ा हुआ है, वह इसे सामान्य आपराधिक वारदात से अलग स्वरूप भी देता है।
दरअसल, जिस युवती को मार डाला गया, वह अपने पुरुष साथी से प्रेम संबंध में थी और दिल्ली में एक किराए के घर में उसके साथ रहती थी। लेकिन इस बीच युवक की शादी किसी अन्य जगह तय हो गई, जिसका स्वाभाविक ही उसकी प्रेमिका ने विरोध किया। इस स्थिति का कोई हल निकालने के बजाय युवक ने मौका पाकर उसकी हत्या कर दी और शव को अपने ढाबे में रखे फ्रिज में छिपा दिया। ऐसा करते हुए उसके भीतर कानून का खौफ भी नहीं जागा कि इसका अंजाम क्या हो सकता है। जानकारी मिलने पर पुलिस ने कार्रवाई की और तब यह समूचा वाकया सामने आ सका।
जाहिर है, अब कानून अपना काम करेगा, लेकिन यह कैसे संभव हो पाता है कि कोई व्यक्ति अपने रुतबे और सुविधा को कायम रखने के लिए उसी महिला के खिलाफ इस हद तक बर्बर हो जाता है, जिसने शायद सब कुछ छोड़ कर उस पर भरोसा किया होता है! गौरतलब है कि हत्या के इस मामले को कुछ समय पहले दिल्ली में ही हुए एक ऐसे मामले की तरह देखा जा रहा है, जिसमें एक युवक ने सहजीवन में रह रही अपनी साथी को मार डाला था।
उसके बाद शव के टुकड़े-टुकड़े करके उसने फ्रिज में छिपा दिया और बाद में जंगल में अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया था। ऐसी घटनाओं के बाद यह सामने आता है कि हत्या की जड़ में संबंधों में हक की मांग थी या फिर आपस में कोई विवाद था। सवाल है कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले युवकों के भीतर अगर आपराधिक मानसिकता नहीं पल रही होती है तो वे संबंधों को लेकर स्पष्टता क्यों नहीं बरतते हैं और विवाद की स्थिति में हत्या तक करने में उन्हें कोई हिचक क्यों नहीं होती!
यह समझना मुश्किल है कि भरोसे की बुनियाद पर खड़े संबंधों के बीच किसी व्यक्ति के भीतर इस स्तर की संवेदनहीनता कैसे उभर आती है कि वह अपनी प्रेमिका को मार डालता है। पहले तो दुनिया से छिपा कर कोई युवक किसी युवती के साथ प्रेम संबंध में या फिर सहजीवन में जाता है, फिर किसी जटिल स्थिति के पैदा होने पर उसका मानवीय हल निकालने के बजाय वह हत्या का रास्ता अख्तियार करता है।
इस तरह के व्यवहार को कैसे सोच-समझ कर की गई किसी पेशवर अपराधी की हरकत नहीं कहा जाएगा? विडंबना यह है कि समाज का दायरा जैसे-जैसे उदार होता जा रहा है, जड़ताओं को तोड़ कर युवा वर्ग नई दुनिया में अलग-अलग तरीके से अपनी दखल दे रहा है, संबंधों के नए आयाम खुल रहे हैं, उसी में कई बार कुछ युवक अपने लिए बेलगाम जीवन सुविधाओं को अपना हक समझ लेते हैं।
जबकि परिवार और समाज की कितनी बाधाओं को तोड़ कर किसी ने उस पर भरोसा किया होता है। निश्चित तौर पर ऐसी घटनाएं कानून की कसौटी पर आम आपराधिक वारदात ही हैं, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि प्रेम संबंधों में भरोसा अब एक जोखिम भी होता जा रहा है!
क्रेडिट : jansatta.com